कुरुद,25 अगस्त 2025(ए)। छत्तीसगढ़ में कई ऐसी परंपराएं हैं, जो आदिम संस्कृति की पहचान बन गयी हैं। कुछ ऐसी ही परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है। यहां गलती करने पर देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है। ये सजा बकायदा न्यायाधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते हैं। आमतौर पर कटघरे और कोर्ट में मुलजिम के रूप में कोई शख्स दिखाई देता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में कटघरे में देवता खड़े होते हैं और उन्हें सजा भी दी जाती है। हीं देवी-देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है। इस यात्रा में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग पहुंचते हैं, जहां अनोखी परम्परा निभाई जाती है। ग्रामीण अंचलों में आयोजित भंगाराव मांई की जात्रा केवल आस्था का उत्सव ही नहीं, बल्कि न्याय की अनोखी परम्परा का भी प्रतीक है। इस जात्रा में मांई के दरबार में देवताओं के बीच विवादों की सुनवाई होती है और दोषी देवता को सार्वजनिक रूप से सजा दी जाती है। जिले के कुर्सीघाट बोराई क्षेत्र में हर साल की तरह इस साल भी भादो माह में भंगाराव माई जात्रा में न्याय की परंपरा की रस्म निभाई गई। जिसमें क्षेत्र के देवी-देवताओं की भीड़ पहुंचे. सुनवाई में दोषी पाए जाने वाले देवी-देवताओं को सजा दी गई. यहां आयोजित जात्रा में श्रद्धालुओं की खचाखच भीड़ लगी रही। ग्रामीण मान्यताओं के अनुसार, भंगाराव मांई न्यायप्रिय देवी मानी जाती हैं। जात्रा के दौरान गांव के लोग एकत्र होकर उनके दरबार में उपस्थित होते हैं। यहां देवताओं के पुतलों या प्रतीक स्वरूप मूर्तियों को लाकर खड़ा किया जाता है।
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