26 साल बाद मिला न्याय,महासमुंद में रिश्वत लेने के आरोप पर मिली थी सजा
महासमुंद,19 जुलाई 2025 (ए)। रिश्वत लेने के आरोप में फंसे एक थानेदार की केस लड़ते-लड़ते मौत हो गई। अब करीब 26 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दिवंगत थाना प्रभारी को हाईकोर्ट से राहत मिली है। जस्टिस संजय अग्रवाल ने ट्रायल कोर्ट की सजा को निरस्त कर दिया है।कोर्ट ने माना है कि, जिस रिश्वत की मांग की बात की गई, उसका कोई औचित्य नहीं बनता, क्योंकि शिकायतकर्ता और उसके परिजन को पहले ही जमानत पर रिहा कर दिया गया था। फिर दो दिन बाद उसी जमानत की एवज में पैसे की मांग करने का आरोप असंभव लगता है। मामला महासमुंद के बसना थाने का है। ग्राम थुरीकोना निवासी जैतराम साहू ने सहनी राम, नकुल और भीमलाल साहू के खिलाफ मारपीट की शिकायत दर्ज कराई गई थी। जिस पर बसना थाने में 8 अप्रैल 1990 में एफआईआर की गई थी। जिसमें तत्कालीन थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे ने कार्रवाई की थी। मामला आईपीसी की धारा 324 के तहत जमानती था, इस वजह से तीनों आरोपियों को उसी दिन मुचलके पर रिहा कर दिया गया।लेकिन,इसके दो दिन बाद 10 अप्रैल 1990 को एक आरोपी भीमलाल साहू ने रायपुर लोकायुक्त एसपी को शिकायत की थी। जिसमें बताया कि उसे रिहा करने के बदले में एक हजार रुपए रिश्वत मांगी गई थी। इस शिकायत के आधार पर लोकायुक्त की टीम ने रेड की। जिसमें थाना प्रभारी शेंडे को रंगे हाथों पकड़ा गया था।
भ्रष्टाचार केस में ट्रायल कोर्ट ने सुनाई सजा
इस कार्रवाई के दौरान थाना प्रभारी पर केस दर्ज किया गया। साथ ही उन्हें गिरफ्तार कोर्ट में पेश किया गया। लोकायुक्त ने साल 1999 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 13(1)(ष्ठ) के साथ धारा 13(2) के तहत चालान पेश किया।जिस पर कोर्ट ने थाना प्रभारी को दोषी ठहराते हुए तीन साल कैद और दो हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ शेंडे ने हाईकोर्ट में अपील की थी। अपील लंबित रहते ही उनकी मौत हो गई। जिसके बाद उनकी पत्नी ने अपने पति का केस लड़ा।
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