कविता@ मेरा तो कुछ भी नहीं…

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मैं तो बिल्कुल पागल था जोकि
मेरा मेरा कहने में जिंदगी गुजार दी
असल में मेरा कुछ भी नहीं है।
जो यह मेरा सुंदर शरीर है ना यह
भी मेरे मां-बाप का दिया हुआ है।
जो मैं खुद को अकलमंद समझता हूं ना
मां-बाप और गुरुओं से मिली है मुझे।
जिस बढç¸या मकान में रह रहा हूं मैं
यह भी मुझे मां बाप ने बना दिया है।
जो मेरे बेटे और बेटी है ना उनको भी
नए रिश्ते मुझसे छीन ही लेंगे आखिर में।
मेरा बेटा पत्नी का होकर अलग हो जाएगा
और मेरी बेटी को मेरा दामाद ले जाएगा।
जो शरीर परमात्मा ने दिया है ना मुझको
एक दिन वह पंचत्व में विलीन हो जाएगा।
उम्र भर की मेहनत के बाद जो मैंने पैसा
कमाया है उस पर बच्चों का हक हो जाएगा।
दुनिया का यह गोरख धंधा देखकर मुझको
समझ में आया है यहां तो कुछ भी मेरा नहीं।
न तन मेरा है,न धन मेरा है,न औलाद मेरी है
ऐसा लगता है दुनिया में सजा भोगने आया था
दुनिया के फिजूल के फिजूल के लफ्ड़ों में
पड़ने से अच्छा मैं राम नाम ही जप लेता।
इससे मुझे पाप से मुक्ति और सुकून मिलता
सोचता हूं इस दुनिया में आकर मैंने क्या कमाया।


प्रो.शामलाल कौशल
रोहतक
हरियाणा


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