बिलासपुर,09 जुलाई 2025 (ए)। हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ में भांग की व्यावसायिक खेती की वकालत करते हुए दायर की गई जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी जनहित याचिका तब तक नहीं चलेगी जब तक कि इसमें व्यक्तिगत हित शामिल है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डीबी में हुई। याचिकाकर्ता एस. ए. काले ने जनहित याचिका दायर कर प्रतिवादी अधिकारियों को छत्तीसगढ़ के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए ‘गोल्डन प्लांट’ भांग के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों का दोहन करने सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की। याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से बताया कि उन्होंने 22.02.2024 को सभी संबंधित अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से ज्ञापन देकर पावती ली है। लेकिन, प्रतिवादियों द्वारा अब तक एक भी सामान्य या विशिष्ट कार्रवाई नहीं की गई है जिसमें याचिकाकर्ता को जवाब देना भी शामिल है। इसके अलावा, उक्त प्रतिनिधित्व में, उन्होंने ‘गोल्डन प्लांट’ के कई लाभों पर प्रकाश डाला है,जो कई शोधों और सरकारी रिपोर्टों द्वारा समर्थित हैं। यह दर्शाता है कि इस ‘गोल्डन प्लांट’ में छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए नई पीढ़ी की सोने की खान होने की क्षमता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 (एनडीपीएस अधिनियम) के अनुसार बागवानी और औद्योगिक उपयोगों के लिए भांग की बड़े पैमाने पर खेती भारतीय कानून द्वारा अनुमत है। कोर्ट ने तर्कों के बाद कहा कि अच्छी तरह से स्थापित है कि कोई भी जनहित याचिका तब तक नहीं चलेगी जब तक कि इसमें व्यक्तिगत हित शामिल हो।
बच्चे की परवरिश पिता की भी जिम्मेदारी
हाईकोर्ट में फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें पति ने कहा कि, वो बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्त्रोत नहीं है। जबकि, उसकी पत्नी नौकरी करती है।इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे की शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी से पिता खुद को अलग नहीं कर सकता,चाहे वह बेरोजगार ही क्यों न हो। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने कहा कि पढ़ी-लिखी और कमाने वाली पत्नी होने के बावजूद बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है।
