@कविता @ज्ञान समन्दर..

Share


लगा किताबों का मेला है, ज्ञान समन्दर जैसा।
देख-देख कर सिर चकराता, है अथाह ये ऐसा।।
सबसे प्यारी भाषा लगती,राजदुलारी हिन्दी।
बात-बात पर मुँह लटकाती,नहीं लगे जब बिंदी।।
नदी पहाड़ी जंगल घाटी,सबका नाम बताते।
गोल-गोल भूगोल पढ़ें तो,चक्कर खा गिर जाते।।
कभी भाग अरु गुणा करें हम,कभी घटा कर जोड़ें।
अमरबेल सा उलझे दिनभर,माथा कितना फोड़ें।।
अपनी धाक जमा कर बैठी,अंग्रेजों की भाषा।
पढ़ ना पाओ कक्षा में तब,बनता खूब तमाशा।।
कम करवा दो बोझ हमारा,मुश्किल लगे पढ़ाई।
हम नन्हें बच्चों का जीवन,हुआ बहुत दुखदाई।।

प्रिया देवांगन प्रियु
राजिम गरियाबंद
छत्तीसगढ़


Share

Check Also

कविता@किस्मत के भरोसे मत बैठो…

Share जीवन पथ पर लड़ सकते होआगे तुम भी बढ़ सकते होत्याग कर आलस का …

Leave a Reply