- क्या पंचायत सचिव संघ सचिवों के भ्रष्टाचार की जांच ना हो जाए…इस वजह से शासन की धमकियों से डरकर नि:शर्त हड़ताल वापस लौटने की घोषणा कर गए?
- एक महीने हड़ताल पर बैठने के बाद बिना निर्णय एवं बिना किसी आश्वासन पंचायत सचिव संघ ने हड़ताल से कर ली वापसी
- पंचायत सचिव संघ के द्वारा हड़ताल से वापसी की घोषणा को लेकर अधिकांश पंचायत सचिवों में आक्रोश
- पंचायत सचिव ही अपने संघ के पदाधिकारियों की कर रहे हैं बुराई और लगा रहे हैं…गंभीर आरोप
- बिना पंचायत सचिवों को जानकारी दिए ही अचानक ही सचिव संघ के कुछ पदाधिकारियों ने कैबिनेट मंत्री से मिलकर बिना शर्त हड़ताल समाप्त कर ली जिसे लेकर पंचायत सचिव मान रहे हैं कि उनके पदाधिकारी भगोड़े हैं:सूत्र

रायपुर/सरगुजा 26 अप्रैल 2025 (घटती-घटना)। पंचायत सचिव संघ के द्वारा अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर एक महीने से हड़ताल किया जा रहा था, एक महीने से पूरे जिले के पंचायतों का कामकाज ठप्प था और ऐसे में अचानक 17 अप्रैल को पंचायत सचिव संघ का हड़ताल समाप्त हो गया वह भी निःशर्त…ऐसा सोशल मीडिया पर देखने को मिला जब सचिव संघ के पदाधिकारी पंचायत मंत्री विजय शर्मा से मिले और बिना किसी शर्त ही जारी हड़ताल खत्म कर दिया,पर सवाल यह उठता है कि जब बिना किसी शर्त ही हड़ताल पर बैठे थे तो फिर क्यों बैठे थे? जब उनकी कोई मांग ही नहीं थी उनकी कोई शर्त ही नहीं थी तो फिर हड़ताल में बैठने की वजह क्या थी? क्या एक महीने के लंबित काम की संख्या बढ़ाना था या फिर प्रशासन को परेशान करना था? या अपने ही संघ के सचिवों पर काम का बोझ बढ़ाना था? क्योंकि एक महीने के हड़ताल के बाद सभी पंचायत के सचिवों पर काम का बोझ बढ़ गया है,एक महीने के काम का अतिरिक्त भार हो गया है,अब इस काम को वह कैसे जल्दी निपटाएंगे यह तो समय बताएगा पर जो सचिव अपने संघ के पदाधिकारियों के कहने पर हड़ताल पर बैठे थे और यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि उनके हितों की मांग करने वाले उनके नेता उन्हें इस हड़ताल का एक अच्छा परिणाम देंगे पर ऐसा कुछ हुआ नहीं यहां तक कि उनके नेता सरकार के सामने झुकते दिखे, बिना शर्त अपना हड़ताल वापस लेते दिखे,अब यह सरकार के दबाव में लिया गया निर्णय था या फिर पंचायत सचिवों के किए गए भ्रष्टाचार जो अक्सर पंचायत में रहते हैं उसकी जांच करने की धमकी देकर कराया गया? या जबरन वाला निर्णय था यह तो अब पंचायत सचिव संघ के पदाधिकारी ही जाने पर निःशर्त हड़ताल खत्म करने को लेकर आलोचनाओं में चारों तरफ घिर गए हैं,सचिव संघ के पदाधिकारी उनके सचिव का ही उन पर से भरोसा उठ गया है,और अपने एक महीने के हड़ताल के दौरान जो परेशानी पंचायत सचिवों को झेलनी पड़ी और हड़ताल खत्म होने के बाद जो परेशानी अब काम अधिक होने की वजह से झेलनी पड़ेगी उसे लेकर अब पंचायत सचिव ही अपने पदाधिकारियों को कोस रहे हैं और उन्हें भगोड़ा बता रहे हैं।
एक महीने के हड़ताल के बीच पंचायत सचिवों पर बढ़ा काम का बोझ
पंचायत सचिवों की हड़ताल पूरे एक महीने चली और बेनतीजा खत्म हो गई या कहा जाए कर ली गई। अब एक महीने के बीच के कई ऐसे काम जो सतत जारी रहने वाले पंचायत स्तर का काम होते हैं का बोझ पंचायत सचिवों पर बढ़ गया है क्योंकि इस बीच वह हड़ताल पर थे और उनके पंचायतों के सतत जारी रहने वाले काम रुके रह गए। इसी बीच सुशासन तिहार का भी शासन स्तर पर आयोजन किया गया और कई या सैकड़ों हजारों आवेदन ग्राम स्तर पर प्राप्त हुए जिनका अब निराकरण पंचायत सचिवों को करना है, कुलमिलाकर पंचायत सचिवों की हड़ताल से उन्हें मिला कुछ नहीं बल्कि उन्हें काम का बोझ इनाम में मिल गया जिसका उन्हें मलाल है।
बोझ तले दबने के बाद भी उन्हें नहीं मिला कोई आश्वासन
पंचायत सचिव भले ही काम के बोझ तले अब दब जायेगें एक माह के काम और सुशासन तिहार के काम उन्हें जल्द निपटाने होंगे लेकिन उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला हड़ताल के बाद भी यह उनकी नाराजगी का कारण है। कुल मिलाकर वह ऐसा मान रहे हैं कि वह हड़ताल में नहीं जाते तो बेहतर रहता क्योंकि हड़ताल का परिणाम शून्य निकलना उनके संघ और उनकी ताकत का भी एक तरह से अपमान है।
उनकी मांगों पर क्या होगा सरकार का निर्णय वह तो आने वाले सालों में पता चलेगा
पंचायत सचिवों की मांगों पर सरकार का क्या निर्णय होगा सरकार क्या उन्हें नियमितिकरण की सौगात देगी क्या वह अपनी घोषणा पत्र के वादे को पूरा करेगी यह आने वाला साल बताएगा। अभी सरकार के साढ़े तीन साल बचे हैं और क्या सरकार अपने ही घोषणा पत्र जो चुनाव पूर्व किया गया घोषणा था उसको पूरा करती है कि नहीं यह देखने वाली बात होगी।
क्या मुख्यमंत्री के रिश्तेदार है पंचायत सचिव संघ के कोई पदाधिकारी जिनके ऊपर बना दबाव और हड़ताल हुआ खत्म?
पंचायत सचिव संघ के कोई पदाधिकारी प्रदेश के मुख्यमंत्री के रिश्तेदार हैं जिनके ऊपर दवाब बना और पंचायत सचिव संघ को हड़ताल बिना शर्त समाप्त करना पड़ा यह भी चर्चा है।