कोरिया@ क्या गरीबों के प्रधानमंत्री आवास में भी जारी है कमीशन का खेल?

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@ जो वास्तव में गरीब और प्राथमिकता वाले हितग्राही, वही हैं वंचित, क्योंकि नहीं दे पाते अग्रिम कमीशन।
@ आवास के मजदूरी भुगतान में भी घपला, मनचाहे व्यक्तियों का भरा जाता है मस्टर रोल
@ आवास मित्र,रोजगार सहायकों और जनपद, जिला के संबंधित कर्मचारियों के प्रभार में फेरबदल से लग सकती है लगाम:उपसरपंच छिंदिया
@ हितग्राहियों के चयन की प्राथमिकता अग्रिम कमीशन के आधार पर:सूत्र
@ डीबीटी होने के बावजूद भ्रष्टाचार का रास्ता तलाश ही लेते हैं भ्रष्टाचारी?
@ जिन हितग्राहियों का कमीशन पहुंचता है पहले,उनकी राशि पहले होती है जारी
@ सिंडिकेट की तरह ग्राम पंचायतों में हो रहा कमीशन और भ्रष्टाचार का खेल
@ आवास मित्र,रोजगार सहायक से लेकर जनपद और जिला कार्यालय के कर्मचारी है संलिप्त:सूत्र
@ स्थानीय रोजगार सहायकों के दबाव के कारण खुलकर सामने नहीं आ रहे पीडि़त
@ सौदेबाजी ऐसी की पुराने निर्मित मकानों को नवनिर्माण बता कर की जा रही राशि आहरण
@ कमीशन का खेल ऐसा की 2002 और 2011 की सूची वाले आज तक वंचित, नवविवाहित जोड़ों का स्वीकृत हो गया आवास
-रवि सिंह-
कोरिया,25 अप्रैल 2025 (घटती-घटना)।
विगत पंचवर्षीय जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी,तो केंद्र की भाजपा सरकार और राज्य की कांग्रेस सरकार के बीच में टकराव होने की स्थिति में प्रधानमंत्री आवास की दशा और दिशा छत्तीसगढ़ में बेहद दयनीय थी। और राज्य के अंश के अभाव में पूरे प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास निर्माण का कार्य ठप पड़ा था। विगत विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था और प्रदेश में सरकार बनते ही 18 लाख आवास निर्माण का वादा किया था। प्रदेश में सरकार बनते ही वादे के अनुरुप पूरे राज्य में गरीबों के लिए बनने वाले प्रधानमंत्री आवास के कार्य में बेहद तेजी आई और प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्रधानमंत्री आवास,प्रधानमंत्री आवास प्लस तथा वर्तमान में प्रधानमंत्री आवास प्लस प्लस के तहत तेजी से प्रधानमंत्री आवास बनने की स्वीकृति मिलने लगी। प्रधानमंत्री आवास की इस योजना में हितग्राही के खाते में आवास की राशि सीधे स्थानांतरित करने का प्रावधान है अर्थात डीबीटी की व्यवस्था है। इसलिए हितग्राही के खाते से गोलमाल करना संभव न पाकर भ्रष्टाचारी और कमीशन खोरों ने इस महत्वाकांक्षी योजना में भी सेंध लगाने की युक्ति आखिरकार निकाल ही ली और कोरिया जिले के विभिन्न ग्राम पंचायतों समेत अधिकांश स्थानों पर प्रधानमंत्री आवास से भी अवैध कमाई का जरिया ढूंढ निकाला।
वर्तमान में आलम यह है कि जिस हितग्राही का सूची में नाम है, चाहे वह किसी भी क्रम में क्यों ना हो, यदि कमीशन की रकम अग्रिम दे दी जाती है, तो वरीयता सूची का क्रम भी बदल दिया जाता है, और कुछ ही समय में हितग्राही के खाते में आवास निर्माण हेतु प्रथम किश्त जारी हो जाती है। अग्रिम कमीशन भी वही हितग्राही दे पाता है, जो सक्षम है। अन्यथा जो वास्तव में गरीब है और जिन्हें प्रधानमंत्री आवास की महती आवश्यकता है, वरीयता क्रम में ऊपर होने पर भी वे तात्कालिक लाभ से वंचित हो जा रहे हैं। स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंचायत में सैकड़ो ऐसे हितग्राही हैं, जो 2002 से लेकर वर्तमान तक आवास योजना से वंचित हैं। जबकि सैकड़ो ऐसे परिवार जिन्होंने पूर्व में इंदिरा आवास योजना अथवा अटल आवास योजना का लाभ ले लिया है, उन्हें भी वर्तमान में प्रधानमंत्री आवास का लाभ मिल गया। पैसे की माया तो ऐसी है कि जिन व्यक्तियों का विवाह हुए साल 2 साल का समय भी नहीं बीता है, उन्हें भी अलग परिवार सूची में सर्वे कर आवास का लाभ दिलाया जा चुका है, या लगातार दिलाया जा रहा है। और यह सब केवल अग्रिम कमिशन का खेल है।
आवास के मजदूरी भुगतान में भी घपला, मनचाहे व्यक्तियों का भरा जाता है मस्टर रोल
शासन द्वारा जारी प्रधानमंत्री आवास की राशि दो तरीके से व्यय की जानी होती है, पहले आवास निर्माण में लगने वाले सामग्री के लिए और दूसरा आवास निर्माण में लगे मजदूरों के मजदूरी भुगतान के लिए। मजदूरों के मजदूरी भुगतान की राशि जॉब कार्ड के द्वारा मस्टर रोल के माध्यम से शासन को प्रस्तावित की जाती है। इसमें भी अधिकांश जगह में घपला देखने को मिल रहा है। नियमत: जिस हितग्राही या परिवार का आवास स्वीकृत हुआ है, मजदूरी की राशि के लिए उनका जॉब कार्ड चालू होना आवश्यक है। परंतु जॉब कार्ड में हेर फेर या कमी बताकर मजदूरी की राशि मनचाहे व्यक्तियों के जॉब कार्ड में चढ़ा दी जाती है,और हितग्राही मजदूरी भुगतान की राशि से वंचित हो जाता है। जो हितग्राही अग्रिम कमीशन आवास के लिए नहीं दे पा रहा, उसे सशर्त अपने मनचाहे व्यक्तियों के जॉब कार्ड में मजदूरी राशि के भुगतान की बात की जाती है। और मजदूरी की राशि को कमीशन के रूप में आहरित कर लिया जाता है।
आवास मित्र,रोजगार सहायकों और जनपद, जिला के संबंधित कर्मचारियों के प्रभार में फेरबदल से लग सकती है लगाम:उपसरपंच छिंदिया
ग्राम पंचायत छिंदिया की नवनिर्वाचित उपसरपंच श्रीमती अंजू जायसवाल ने प्रधानमंत्री आवास के लिए सुशासन तिहार में आए सैकड़ों आवेदन पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए बताया कि वास्तव में कई ऐसे हितग्राही हैं,जिनका आवास बहुत पहले स्वीकृत हो जाना चाहिए था। परंतु आज तक वे आवेदन लेकर भटक रहे हैं। कई शिकायतें भी मौखिक और लिखित रूप से सामने आईं हैं। यदि समय-समय पर ग्राम पंचायत में नियुक्त आवास मित्र एवं रोजगार सहायकों का अन्य पंचायत में प्रभार और फेरबदल किया जाए और इसी क्रम में ऊपरी कार्यालय में संबंधित कर्मचारियों के प्रभार में भी समय अनुसार फेर बदल करते रहा जाए, तो इस प्रकार के श्रृंखला परिवर्तन होते रहने और निरंतर सामंजस्य के अभाव को पैदा कर काफी हद तक भ्रष्टाचार और कमीशन के खेल पर लगाम लगाया जा सकता है। इससे वास्तविक हितग्राहियों के हितों की रक्षा तो होगी ही और कमीशन के अतिरिक्त बोझ से उन्हें राहत भी मिलेगी।
जिन हितग्राहियों का कमीशन पहुंचता है… पहले…उनकी राशि पहले होती है जारी
कुछ आवास के सूचियों का और कुछ शिकायतों के आधार पर यह पाया गया कि जिन हितग्राहियों का नाम वरीयता क्रम में ऊपर था,उनसे अग्रिम कमीशन की मांग की गई और धनराशि न मिलने पर वरीयता क्रम में उनका नाम नीचे चला गया। जबकि इसी सूची में जिन हितग्राहियों का नाम नीचे था, उनकी आवास निर्माण के प्रथम किश्त जारी हो गई। अधिकांश ग्रामीण इस बात की स्वीकृति तो कर रहे हैं कि उनसे आवास के नाम पर खुलेआम पैसा मांगा जा रहा है,परंतु स्थानीय कर्मचारी के भय और दबाव के कारण खुलकर सामने आने और शिकायत करने से डर भी रहे हैं,कि शिकायत करने पर कहीं सूची से नाम ही न गायब कर दिया जाए। आवास की प्रथम किश्त पाने वाले कुछ हितग्राहियों ने बातचीत में यह भी बताया कि आवास प्राप्त करने के लिए उन्होंने 5000 से लेकर 20000 तक का कमीशन दिया है। परंतु शिकायत की बात पर वे यह कहते नजर आए कि,यदि शिकायत करेंगे तो दूसरी किश्त प्राप्त होने में रोड़ा अटक सकता है।
स्थानीय रोजगार सहायकों के दबाव के कारण खुलकर सामने नहीं आ रहे पीडि़त
प्रदेश के पूरे पंचायत में मनरेगा के तहत होने वाले समस्त कार्य के साथ-साथ प्रधानमंत्री आवास जैसी महत्वाकांक्षी योजना के कार्यवाहक पंचायतों में पदस्थ रोजगार सहायक हैं। और अधिकांश जगहों पर यह रोजगार सहायक स्थानीय व्यक्ति ही हैं। प्रधानमंत्री आवास के लिए सर्वे का कार्य हो या वरीयता सूची, इन सब का कार्यभार रोजगार सहायकों के ऊपर है। और सारा खेल यही से प्रारंभ होता है। कमीशन लेकर सर्वे करना, कमीशन के माध्यम से ही ऊपरी कार्यालय से वरीयता सूची में छेड़छाड़ करना, शिकायत की बात आने पर सूची से नाम हटा देने का दबाव या बाद में जारी होने वाली किश्तों के लिए सर्वे न करने की अपरोक्ष धमकी के कारण शिकायत की स्थिति न बनने देना, लगातार इनका मनोबल बढ़ाये जा रही है। और पंचायत में नियुक्त आवास मित्रों के द्वारा भी पहले किश्त के बाद होने वाले निर्माण कार्य उपरांत अगले किश्तों के तत्काल जारी करने की व्यवस्था के एवज में हितग्राहियों से वसूली की जा रही है। कमीशन खोरी के इस खेल में ग्राम पंचायत के आवास मित्र, रोजगार सहायक के अलावा जनपद, जिला कार्यालय में पदस्थ कर्मचारी भी शामिल हैं। सूत्रों से यह जानकारी मिली है।
कमीशन का खेल ऐसा की 2002 और 2011 की सूची वाले आज तक वंचित,नवविवाहित जोड़ों का स्वीकृत हो गया
वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा चलाए जा रहे हैं सुशासन तिहार में प्रधानमंत्री आवास के लिए प्रत्येक पंचायत में सैकड़ो की तादाद में आवेदन आए हैं। उन आवेदनों में से अधिकांश आवेदन ऐसे व्यक्तियों या परिवारों के हैं, जो आवास के लिए 2002 अथवा 2011 की सूची में ही पात्र थे। परंतु आज पर्यंत तक उनके लिए आवास की स्वीकृति नहीं हो पाई है। जबकि जांच की जाए तो पंचायत में बहुतेरे ऐसे आवास मिल जाएंगे जो नव विवाहित जोड़ों के लिए स्वीकृत और निर्मित किया जा चुके हैं। कारण सिर्फ इतना है की अधिकांश वास्तविक हितग्राही,जिन्हें वास्तव में शासन की मदद से आवास की आवश्यकता है,वे अत्यंत गरीब हैं,और अग्रिम कमीशन देकर आवास स्वीकृत कराने की स्थिति में नहीं हैं।


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