गाजियाबाद,06 फरवरी २०२३ (ए)। गाजियाबाद के साहिबाबाद क्षेत्र से साढ़े चार साल की बच्ची का अपहरण कर सिटी फोरेस्ट में ले जाकर रेप के बाद हत्या करने के दोषी सोनू गुप्ता (20) को पॉक्सो कोर्ट ने शनिवार को फांसी की सजा सुनाई।
उसे 20 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया गया है। सोनू बच्ची को 1 दिसंबर 2022 को उसके घर के बाहर से तब उठा ले गया था, जब वह पूजा के लिए फूल तोड़कर लाई थी और जय मां, जय मां गाते हुए खेल रही थी।
कोर्ट ने 66 दिन में आरोपी को सुनाई मौत की सजा
विशेष न्यायाधीश अमित प्रजापति ने इस दरिंदगी को विरल से विरलतम श्रेणी का अपराध मानते हुए दोषी सोनू को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाए जाने का आदेश दिया। 33 पेज के आदेश में अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद में मृत्युदंड की पुष्टि होने के बाद फांसी दी जाए।
इस मामले में 66 दिन में इंसाफ हो गया। दरिंदे के खिलाफ पुलिस ने 28 गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए। 32 दिन में आरोपी का डीएनए परीक्षण कराया और सीसीटीवी फुटेज व 68 पेज की केस डायरी को सबूत के आधार पर कोर्ट में जमा कराया था।
इस दरिंदगी को विरल से विरलतम श्रेणी का अपराध मानते हुए विशेष न्यायधीश अमित प्रजापति ने टिप्पणी की, कहा कि भारत जैसे देश में हिंदू धर्म में बालिका को देवी के रूप में माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है। अभियुक्त सोनू गुप्ता हिंदू धर्म से ही संबंध रखता है। उसने अबोध बालिका के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी।
यह अपराध निर्मम तरीके से किया गया। उसके मुंह में डायपर ठूंसकर गला घोंटकर जान ली गई। इस दौरान बालिका ने जो महसूस किया होगा, उसकी कल्पना मात्र से रूह कांप उठती है।
उन्होंने कहा, अभियुक्त के मन में बालिका के प्रति दयाभाव उत्पन्न न होना उसकी घोर अपराधिक मनोवृत्ति को दर्शाता है। उसने लगभग साढ़े चार साल की कोमल बालिका के साथ दुष्कर्म और हत्या जैसा घृणित अपराध किया है। इसके बाद बड़ी ही चतुराई से अपराध के साक्ष्यों को मिटाने का प्रयास किया। अगर पुलिस तत्परता, सजगता और सावधानी नहीं बरतती तो उसका पकड़ा जाना मुश्किल था।
कोर्ट की टिप्पणी के प्रमुख अंश
- अभियुक्त ने बालिका के साथ क्रूरता और बर्रबता की और क्रूरतम तरीका अपनाकर हत्या की। यह विरल से विरलतम श्रेणी का अपराध है।
- अभियुक्त के अपराध के तरीके और प्रकृति को देखकर उसके प्रति किसी प्रकार की दया उत्पन्न होना स्वभाविक नहीं लगता है।
- इस मामले में अभियुक्त को अधिकतम दंड से दंडित किए जाने पर ही पीडç¸ता, उसके परिवार एवं समाज के प्रति न्याय संभव होगा।
- अभियुक्त को अधिकतम दंड से दंडित किए जाने जाने से ही समाज में न्याय प्रणाली के प्रति सद्भाव व विश्वास उत्पन्न हो सकेगा।
समाज की जागरूकता पर आघात न हो
अभियोजन की ओर से कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजीर के रूप में रखा गया। यह मामला मध्य प्रदेश राज्य बनाम बाबूलाल का था। इसमें 12 अगस्त 2013 को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, सजा दिए जाने की विधि के प्रमुख लक्ष्यों में से एक यह है कि अभियुक्त को उपयुक्त, उचित एवं समानुपाती दंड से दंडित किया जाए। प्रदत्त दंड इतना उदार भी नहीं होना चाहिए कि समाज की जागरूकता को आघात प्रदान करे और दंड प्रणाली के प्रति घृणा उत्पन्न करे।
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