,भुवनेश्वर ,10 अक्टूबर 2021 (ए)। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले जब नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया तो ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजेडी) सहित कई गैर कांग्रेसी दलों ने इसे पसंद किया, क्योंकि यह देश की सबसे पुरानी पार्टी को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानती थी। नवीन पटनायक की अगुआई वाली क्षेत्रीय पार्टी बीजेपी से हाथ मिलाकर एनडीए का हिस्सा बन गई ताकि कांग्रेस को सस्ता से दूर रख सके। बीजेडी-बीजेपी ने 2000 से 2009 तक ओडिशा में गठबंधन सरकार चलाई, लेकिन दोनों पार्टियों की खुशमिजाजी सीट शेयरिंग के मुद्दे पर खत्म हो गई और उनकी राहें अलग हो गईं। गैर-कांग्रेसी मुहिम में शामिल होने के 20 साल बाद, जब सत्ताधारी पार्टी ने कांग्रेस को जमीनी स्तर से उखाड़ दिया, अब वह खुद को मुश्किल परिस्थिति में देख रही है, क्योंकि बीजेपी मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रही है। बीजेडी के एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने भी इस ओर इशारा किया। बीजेडी के नेता अब अहसास करते हैं कि ओडिशा को कांग्रेस मुक्त करने से क्षेत्रीय दल को फायदा नहीं हुआ, बल्कि बीजेपी को उभार का मौका मिल गया।
बीजेपी आदिवासी, दलित, पिछड़े वर्ग का अधिकतर वोट चुनावों में हासिल करने लगी है, जो कभी कांग्रेस के लिए वोट बेस था। कांग्रेस का वोट बेस बनने वाले अल्पसंख्यक भी बीजद से दूर हो गए हैं। अल्पसंख्यक वोट नहीं मिलना भी बीजेपी के लिए ओडिशा में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि ईसाई यहां की कुल आबादी के 2.77 फीसदी और मुस्लिम 2.17 फीसदी हैं। इसलिए बीजेपी की हिंदुत्व नीति ओडिशा में भगवा दल के प्रसार के लिए काफी है।
