कोरिया@क्या रावण के अहंकार का रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे राजनीतिक लोग?

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-रवि सिंह-
कोरिया,08 अगस्त 2025 (घटती-घटना)। भगवान, जिन्हें ईश्वर भी कहा जाता है, एक सर्वोच्च शक्ति है जिसे कई धर्मों और संस्कृतियों में पूजा जाता है। यह वह शक्ति है जो सृष्टि की रचना, पालन और संहार करती है, और जिसे अक्सर परम सत्य,असीम ज्ञान,और अनंत शक्ति का प्रतीक माना जाता है। भगवान की अवधारणा विभिन्न धर्मों में अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सामान्य तौर पर,भगवान को एक ऐसे अस्तित्व के रूप में देखा जाता है जो इस ब्रह्मांड का निर्माता और शासक है,और जो सभी प्राणियों का पालन-पोषण करता है। कुछ धर्मों में, भगवान को एक व्यक्तिगत देवता के रूप में पूजा जाता है,जैसे कि हिंदू धर्म में विष्णु,शिव,और दुर्गा, या ईसाई धर्म में पिता,पुत्र,और पवित्र आत्मा। कुछ अन्य धर्मों में,भगवान को एक निराकार शक्ति के रूप में देखा जाता है,जैसे कि अद्वैत वेदांत में ब्रह्म, या इस्लाम में अल्लाह। भगवान शब्द का अर्थ है ईश्वर या परमात्मा,जो एक सर्वोच्च सत्ता,एक दिव्य शक्ति,या एक पूजनीय देवता को संदर्भित करता है,यह शब्द भारतीय धर्मों में,विशेष रूप से हिंदू धर्म में,एक शक्तिशाली और पूजनीय व्यक्ति या देवता के लिए उपयोग किया जाता है,यह भी उतना ही सही है कि व्यक्ति एक अदृश्य शक्ति को भगवान मानता है, जिसका एक रूप मानकर उसकी पूजा अर्चना करता है,यह भी उतना ही सही है कि व्यक्ति की श्रद्धा में भगवान है पर क्या भगवान के नाम पर कुछ व्यक्ति ही अधर्म कर रहे हैं, राजनीति की आड़ में कहीं भगवान को तो अपमानित करने का प्रयास तो नहीं हो रहा, भगवान आपके अंदर की सच्ची श्रद्धा है जिनका अवलोकन आप अपने मन में करते हैं, उनके प्रति आपके अंदर एक भय भी होता है आप यह भी सोचते हैं कि भगवान तो सब जानते है, आदमी से किसी चीजों को छुपा सकते हैं पर भगवान से आपको छुपाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है,आपके अंदर का भय यह बता देता है कि आप कुछ ना कुछ गलत किए हैं, जिस वजह से भगवान का डर आपके अंदर रहता है, पर आज के समय में भगवान को राजनीति के बीच में खड़ा कर दिया गया है, भगवान को लेकर राजनीति हो रही है जबकि भगवान पूरे संसार में ब्रिजमन है जिन्हें कोई भी एक जगह नहीं दे सकता, क्योंकि उनकी दी हुई जगह पर आज मनुष्य अपना जीवन यापन कर रहा है पर आप किसी एक स्थान पर भगवान को रखकर यदि आप यह बताना चाह रहे हैं कि अपने भगवान को स्थान दे दिया है तो यह आपकी गलतफहमी, यह गलतफहमी बहुत बड़ी है जो आज की राजनीति में देखने को मिल रहा है,धर्म की लड़ाई छेड़ रहा है और ऐसे धर्म की लड़ाई में चंद स्वार्थी लोग सब कुछ भूल कर अपने आप को भगवान से भी क्या सर्वोच्च मानने लगे हैं, यह सवाल तब उत्पन्न हो रहा है जब सोनहत में महादेव के नाम से राजनीति की प्रकाष्ठा पर की जा रही है, चंद लोगों के द्वारा अपने नेता को खुश करने के लिए या उनके हां में हां मिलाने के लिए स्वर से स्वर मिलने के लिए वह महादेव को भी अपने अधीन समझने लगे? धर्म की आड़ में कहीं पाप तो नहीं कर रहे? क्योंकि पाप तो मन में है क्योंकि कोई भी धर्म की पूजा का तभी सफल होता है जब कोई व्यक्ति बिना स्वार्थ के भगवान के लिए भावनात्मक मन से कोई कार्य करता है, क्योंकि मन भी भगवान को समर्पित होता है, राजनीति में सबसे ऊपर उठने के लिए सच्चे शक्ति व सच्चे भक्त की आवश्यकता होती है ना कि दिखावे की और वह भी भगवान के नाम, पर जो बहुत समय तक नहीं चलता है सर्वोच्च तो वही होता है जो सही सोच के साथ लोगों के हित के साथ आगे बढ़ता है ना कि किसी को ठेस पहुंच कर वह अपनी सर्वश्रेष्ठता तय करता हो।सोनहत में रेणुकेश्वर महादेव नाम पर बढ़े विवाद पर भरतपुर सोनहत विधायक ने पटाक्षेप करने की कोशिश की है, जनपद पंचायत अध्यक्ष एवं जिला पंचायत सदस्य के अगुवाई में सनातन गौरव मंच द्वारा सोनहत में विराजित महादेव का सोनेश्वर महादेव के रूप में अभिषेक किया था, विगत दिनों इस मामले में स्वयं विधायक ने पटाक्षेप किया,और ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर महादेव मंदिर और महादेव चौक किया,इस पर सनातन गौरव मंच ने प्रसन्नता जाहिर की, साथ ही यह भी कहा कि सोनेश्वर महादेव के रूप में क्षेत्रीय जिला पंचायत सदस्य और जनपद पंचायत अध्यक्ष के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने नाम दिया है तो यह नाम भी महादेव का हम सदैव मानेंगे, महादेव के कई रूपों में यह स्वरुप दिव्य है, सोनहत के सोनेश्वर महादेव और कटगोड़ी के सिद्धेश्वर महादेव की अपार महिमा का प्रभाव क्षेत्र में दिख रहा है, सनातन गौरव मंच द्वारा पूरे क्षेत्र में भक्ति भाव और सनातन जागरण के लिए कार्य किया जाएगा, इस पूरे मामले में सभी ने देखा कि कैसे राजनीति के लिए महादेव को भी नहीं छोड़ा गया, जहां एक मूर्ति स्थापित करने के लिए तमाम विधियों का पालन किया जाता है,मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है सब चीज नियम के साथ मुहूर्त में किया जाता है और यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है पर क्या राजनीति के लिए यह सब काम भी हड़बड़ी में बिना विधि विधान के किया जा सकता है? सिर्फ राजनीति के लिए या फिर किसी एक समूह को नीचा दिखाने के लिए महादेव पर भी ऐसा हक जताया जा रहा है कि वह मेरे हैं एक पक्ष बता रहा है कि वह मेरे हैं पर पूरा संसार जान रहा है कि वह सभी के हैं पर भगवान पर भी अपना अधिकार जमाने के लिए क्या रावण के अहंकार का रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे राजनीतिक लोग? पहले तो दूसरे धर्म या फिर राजनीतिक वजह से आनन-फानन में शिवलिंग रख दिया गया और उसके बाद अब वहां पर महादेव चौक का नाम भी तय कर दिया गया अब यह सब सिर्फ अहंकार ही माना जा रहा है?


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