- क्या वर्तमान प्रभारी प्राचार्य सेवानिवृत प्राचार्य के साथ दोस्ती निभा रहे थे?
- दिनदहाड़े महाविद्यालय पहुंचकर सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य कक्ष खोलकर दस्तावेज जला देते हैं,वर्तमान प्राचार्य ने इसकी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज क्यों नहीं कराई?
- 6 महीने तक सेवानिवृत होने के बाद भी पूर्व प्रभारी प्राचार्य ने प्रभार पूरा नहीं दिया और एक प्राचार्य सेवानिवृत भी हो गए, दूसरे को नियुक्त किया गया दूसरे को भी प्रभार 18 जुलाई को मिला
- क्या सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य को दस्तावेज जलाने की अनुमति वर्तमान प्रभारी प्राचार्य ने दिया?


-रवि सिंह-
कोरिया,30 जुलाई 2025 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के अग्रणी महाविद्यालय रामानुज प्रताप सिंहदेव बैकुंठपुर के सेवानिवृत प्रभारी प्राचार्य अखिलेश चंद्र गुप्ता ने महाविद्यालय के दो रिकॉर्ड रूम कक्ष में ताला लगाया और बिना अनुमति उस कक्ष को ना खोला जाए इसका उन्होंने कागज चस्पा किया और 6 महीने तक जिन्हें भी महाविद्यालय का प्राचार्य नियुक्त किया गया उन्हें उन्होंने प्रभार नहीं दिया,एक प्रभारी प्राचार्य तो प्रभार मांगते मांगते थक गए और सेवानिवृत हो गए 6 महीने में ही,वहीं दूसरे प्रभारी प्राचार्य को महाविद्यालय के लिए 7 जुलाई 2025 को नियुक्त किया गया और इसी बीच 12 जुलाई 2025 को सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य अखिलेश चंद्र गुप्ता दिनदहाड़े आते हैं और जिन दो कक्ष को वह ताला लगाकर रखे रहते हैं उसमें से दस्तावेज निकालकर महाविद्यालय प्रांगण में ही जला देते हैं,जिसकी फोटो वीडियो वायरल होती है और यह बात पूरे जिले में फैल जाती है, पर सबसे आश्चर्य की बात तो यह है की दिनदहाड़े सभी कर्मचारियों के बीच सेवानिवृत्त प्राचार्य आकर दस्तावेज नियम विरुद्ध तरीके से जलाकर चले जाते हैं पर उन्हें कोई भी नहीं रोकता है, यहां तक की वर्तमान प्रभारी प्राचार्य इस बात की सूचना पुलिस को भी नहीं देते हैं, इसके बाद सवाल यह उत्पन्न होता है कि क्या वर्तमान प्राचार्य ने ही सेवानिवृत्त प्राचार्य को ऐसा करने की मौन स्वीकृति दी थी या फिर उनके साथ इतने दिन तक काम किया इस वजह से वह विरोध नहीं कर पाए? और ना ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की जहमत उठाई,क्या यह अपने कनिष्ठ होने का फर्ज निभा रहे थे और सेवानिवृत्त प्राचार्य को कानून हाथ में लेने की और उनके कार्यकाल के भ्रष्टाचार को आग में झोंकने की अनुमति दे रहे थे? महाविद्यालय के दस्तावेजों को जलाने के मामले में जितना दोषी सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य है उतने ही दोषी शायद वर्तमान प्रभारी प्राचार्य भी हैं ऐसा अब मानना गलत नहीं होगा,प्रभार नहीं मिला इसके लिए इन्होंने सूचना दी पर उनके गैर हाजिरी में कोई आकर ताला खोल कर दस्तावेज जलाकर चला गया इसकी सूचना यह पुलिस को नहीं दिए, क्या उनके घर में भी ऐसा होता तो क्या इसकी सूचना व पुलिस को नहीं देते,ऐसा सवाल वर्तमान प्रभारी प्राचार्य से हो रहा है? इस मामले में कई सवाल है जिसका जवाब शायद उच्च शिक्षा विभाग के सचिव व संभाग आयुक्त ही जांच करके दे सकते हैं कि इस मामले में दोषी कौन-कौन है वैसे दस्तावेजों को आग के हवाले करने के बाद 18 जुलाई को वर्तमान प्रभारी प्राचार्य को आयुक्त ने ही प्रभार दिलवाया, सेवानिवृत्त प्राचार्य ने प्रभार नहीं दिया,यहां तक की आयुक्त के आदेशों की अवहेलना भी दिखी फिर भी उन पर कार्यवाही करने से उच्च अधिकारी घबरा रहे हैं अब इसका कारण क्या है यह तो वही जानेंगे?
सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य के कार्यकाल में कुछ तो गड़बड़ी हुई थी जिसे वह छुपाना चाह रहे थे जो मामला अब जांच के दायरे में आगया है?
प्रभारी प्राचार्य रहे अखिलेश चंद्र गुप्ता सेवा निवृत्त होते हैं और छः माह तक प्रभार नहीं सौंपने के लिए पूरी मशक्कत करते हैं। उच्च कार्यालय भी थक हारकर बैठ जाते हैं और वह दो कमरों में ताला लगाए एक सुनहरे ऐसे अवसर की बाट जोहते रहते हैं जब उन्हें मौका मिले और वह अपने कार्यकाल के भ्रष्टाचार को आग के हवाले कर सकें और उन्हें वह मौका तब मिलता है जब उनके सबसे करीबी रहे सहायक प्राध्यापक को प्रभारी प्राचार्य का जिम्मा मिल जाता है। वह महाविद्यालय आते हैं और दस्तावजों को आग के हवाले कर देते हैं,वैसे पूरा मामला बिल्कुल फिल्मी है और यह संदेह उत्पन्न करता है कि पूरा कार्यकाल उनका ऐसे ही नहीं बिता इस बीच कुछ तो गड़बडि़यां उन्होंने की कुछ या बड़ा भ्रष्टाचार उन्होंने किया जिसे वह छिपाना चाहते थे और वह मौका पाकर छिपा ले गए और आग लगाकर सबूत मिटा गए। यह मामला उच्च स्तरीय जांच का है और जिसका दायरा वर्तमान और पूर्व सभी प्राचार्यों तक विस्तृत होगा तभी असली सच्चाई सामने आ सकेगी।
क्या सेवा निवृत्त प्रभारी प्राचार्य ने अपने कार्यकाल में महाविद्यालय में अपने रिश्तेदारों को नौकरी लगवाई?
महाविद्यालय बैकुंठपुर से सेवा निवृत्त हुए प्रभारी प्राचार्य के एक दो रिश्तेदार महाविद्यालय में नौकरी कर रहे हैं। इनकी नौकरी प्रभारी प्राचार्य के कार्यकाल के दौरान लगने की बात सामने आ रही है, नौकरी कैसे लगी इस बात को लेकर कोई सवाल नहीं है लेकिन क्या इस मामले में प्रभारी प्राचार्य की भूमिका थी यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं जिसकी जांच अब की जाए ऐसी मांग हो रही है। क्या पद का दुरुपयोग करके ऐसा किया गया और लाभ प्रदान किया गया रिश्तेदारों को यह भी जांच अब आवश्यक है।
क्या सेवानिवृत्ति प्रभारी प्राचार्य के कार्यकाल की जांच सूक्ष्मता से होगी?
सेवा निवृत्त प्रभारी प्राचार्य अखिलेश चंद्र गुप्ता के द्वारा महाविद्यालय के दस्तावेजों को आग के हवाले किए जाने के बाद वह भी तब जब वह महाविद्यालय का हिस्सा नहीं थे यह साबित करता है कि वह भ्रष्टाचार में लिप्त थे और उन्होंने शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में भ्रष्टाचार किया,अब सवाल यह है कि प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आने वाले अखिलेश चंद्र गुप्ता के पूरे कार्यकाल की जांच सूक्ष्मता से होगी या उन्हें अभयदान देने उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा?
टीम गठित करके सेवानिवृत्त प्राचार्य के द्वारा जिन दो कक्षों में ताला लगाया गया था,उसे वीडियो ग्राफी करके खोला गया
बताया जा रहा है कि पूरे मामले में कॉलेज प्रबंधन ने मंगलवार 29 जुलाई 2025 को एक टीम गठित कर उन दो कमरों के सभी सामग्रियों दस्तावेजों की सूची बनाई जिसे छः माह पूर्व सेवानिवृत्त हुए प्रभारी प्राचार्य ने जबरन बंद कर रखा था। 24 पन्नों की सूची इस दौरान बनाई गई है ऐसी भी सूचना है। माना जा रहा है कि इन्हीं दो कमरों के कुछ दस्तावेज सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य ने आग के हवाले किए हैं,और वह ऐसे दस्तावेज हो सकते थे जिससे उनके कार्यकाल का बड़ा भ्रष्टाचार उजागर हो सकता था। कमरों से क्या मिला क्या गायब रहा यह तो कॉलेज प्रबंधन बता सकता है लेकिन अब इस मामले में सोया हुआ कॉलेज प्रबंधन नए प्रभारी बनाए गए प्राचार्य के साथ सक्रिय नजर आ रहा है जो देर से सक्रियता साबित कर रहा है।
आखिर उन दो कक्षों में क्या था दी जिसमें सेवानिवृत्ति प्राचार्य ने ताला लगाकर बिना उनकी अनुमति उन्हें नहीं खोलने का निर्देश चस्पा किया था?
बताया जाता है और ऐसा तस्वीरों में भी देखा गया कि महाविद्यालय के दो कक्षों में ताला बंद था और उसके दरवाजे सील थे और उसपर कुछ लिखा था। यह बंद दरवाजे खुद ओर कागज में एक निर्देश लिए बंद थे जिसपर लिखा था बिना अनुमति न खोला जाए। यह निर्देश जनवरी 2025 में सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य ने चस्पा किया था जिनकी सेवा समाप्ति के तत्काल पश्चात नए प्रभारी प्राचार्य की नियुक्ति कर दी गई थी, जिन्हें तब प्रभारी प्राचार्य बनाया गया था वह कुल छः माह तक प्रभार में रहे फिर भी वह दो कक्षों का प्रभार नही ले सके। तत्कालीन प्रभारी प्राचार्य डॉक्टर जोशी राम कंवर ऐसा नहीं है कि प्रभार प्राप्ति और दो कक्षों के प्रभार के लिए प्रयासरत नहीं रहे,उन्होंने प्रयास भी किया और उन्होंने उच्च कार्यालय से पत्राचार भी किया जहां से सेवा निवृत्त प्रभारी प्राचार्य को प्रभार प्रदान करने कई कड़े निर्देश प्राप्त हुए लेकिन फिर भी दो कक्ष नहीं खोले जा सके और वह डॉक्टर जोशी राम कंवर के कार्यकाल में भी बंद रहे, वैसे ऐसा क्या था उन दो कमरों में जिसका प्रभार अखिलेश चंद्र गुप्ता नहीं देना चाहते थे और जिसे उन्होंने सेवानिवृत्त होने के छः माह पश्चात तब जलाया जब उनके साथ सबसे ज्यादा समय तक साथ निभाने वाले सहायक प्राध्यापक को प्रभार मिला प्राचार्य का। पूरे मामले में वर्तमान के प्रभारी प्राचार्य की भूमिका भी गहन जांच के दायरे वाला विषय है क्योंकि उनके ही कार्यकाल में दस्तावेज जलाए जाने की घटना होती है और वह भी दिनदहाड़े।
क्या दो कमरों में भ्रष्टाचार के कुछ सबूत थे जिसे सेवानिवृत्त प्राचार्य नष्ट करना चाहते थे जिस वजह से उन दो कमरों का प्रभार नहीं दिया था?
महाविद्यालय के दो कमरे बंद थे पूरे छः माह उन्हें खुलवाने की हिम्मत कोई नहीं कर सका और न ही उच्च कार्यालयों के पत्र भी कारगर साबित हुए जो प्रभार संपूर्ण प्रभार के लिए कड़े शब्दों के साथ लिखे गए। महाविद्यालय के दो कमरे लगातार बंद रहे और इस बीच दूसरे प्राचार्य को जिम्मेदारी मिल गई। वैसे सवाल यह है कि क्या था उन दो कमरों में जिसके कारण सेवा निवृत प्रभारी प्राचार्य पूरे छः माह तक इस बात का इंतजार करते रहे कि उसके अंदर रखे दस्तावेजों को वह आग के हवाले कर सकें। क्या उन कमरों में बड़े भ्रष्टाचार के सबूत थे। बताया जाता है कि दस्तावेजों को आग के हवाले करने वाले सेवानिवृत्त प्राचार्य दो दशकों से ज्यादा समय तक महाविद्यालय में सेवा देते रहे और अधिकांश समय वह प्रभारी प्राचार्य ही बने रहे और उनके पूरे कार्यकाल का ही भ्रष्टाचार उजागर न हो जाए इस वजह से उन्होंने दो कमरों में अपने कार्यकाल के सभी भ्रष्टाचार संबधी सबूत इकट्ठे किए और जब उनके साथ सबसे लंबा कार्यकाल गुजारे सहायक प्राध्यापक को प्रभारी प्राचार्य बनाया गया उन्होंने दस्तावेजों को आग के हवाले करने के काम को अंजाम दिया।
क्या सेवानिवृत्त प्राचार्य की पत्नी को प्रभारी प्राचार्य नियुक्त किया गया होता तो सारा मामला रफा दफा हो गया होता?
बताया यह भी जा रहा है कि एक कारण प्रभार नहीं देने के पीछे का यह भी था कि सेवानिवृत्त प्राचार्य की पत्नी खुद सहायक प्राध्यापक हैं और वह इस प्रयास में लगे थे कि अग्रणी महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य की जिम्मेदारी उनकी पत्नी को मिल जाए जिससे वह अपने कार्यकाल के भ्रष्टाचार को बेहिचक आग के हवाले कर सकें उन्हें मिटा सकें। वैसे क्या यही एक मात्र कारण है कि छः माह तक का इंतजार किया गया और जब इसके बावजूद भी सफलता नहीं मिली सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य ने अपने साथ सबसे लंबी अवधि तक कार्य किए सहायक प्राध्यापक के प्रभारी बनते इस घटना को अंजाम दिया। वैसे क्या पत्नी को प्रभार मिलता तो भ्रष्टाचार को आसानी से रफा दफा करते सेवानिवृत्त प्रभारी प्राचार्य और वह तब इस तरह उजागर होने से भी बच जाते यही था उनका प्रयास?
कैसे सेवानिवृत्ति प्रभारी प्राचार्य ने स्टाफ व वर्तमान प्रभारी प्राचार्य के होते हुए दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया?
सेवा निवृत्त प्रभारी प्राचार्य अखिलेश चंद्र गुप्ता ने डॉक्टर जोशी राम कंवर के कार्यकाल में कोई हिमाकत नहीं की और कभी महाविद्यालय जाकर दस्तावजों को आग लगाने का अवसर नहीं ढूंढ पाए। जैसे ही वर्तमान प्रभारी प्राचार्य कार्यभार ग्रहण किए वैसे ही उन्हें मौका मिला और उन्होंने दस्तावेजों को महाविद्यालय के आग के हवाले करना आरम्भ किया। जब वह ऐसा कर रहे थे तब महाविद्यालय बंद नहीं था महाविद्यालय के कर्मचारी मौजूद थे ऐसा बताया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि प्रभारी प्राचार्य वर्तमान और अन्य कर्मचारी क्यों मौन थे क्यों उन्होंने मना नहीं किया ऐसा करने से। यदि प्रभारी प्राचार्य मौजूद नहीं थे तो उन्हें सूचना दी गई, यदि सूचना मिली भी तो प्रभारी प्राचार्य ने क्या किया,उन्होंने क्या पुलिस को सूचना दी? सेवानिवृत्त होने उपरांत कर्मचारी अधिकारी क्या अनाधिकृत व्यक्ति नहीं माना जाता जिस कारण ऐसा करने की छूट दी गई सेवा निवृत्त प्रभारी प्राचार्य को। पूरे मामले में अकेले दोषी अखिलेश चंद्र गुप्ता नहीं माने जाएंगे,इस मामले में हर वह कर्मचारी अधिकारी दोषी है जिसने आग लगाने की घटना देखी सुनी और उसके बावजूद भी न सामने से रोकने की कोशिश की और न पुलिस को इसकी सूचना दी,पूरा मामला अखबार में प्रकाशित होने उपरांत उजागर हुआ वरना मामला रफा दफा हो चुका था सब सभी के बीच तय था ऐसा अब कहना शायद सही होगा।
9 महीने पहले सूचना के अधिकार में मांगी जानकारी पर मिली नहीं…जानकारी चाहने वाला गया अपील में,इस बीच दस्तावेज जलाने की खबर आई,शिकायत करके जांच करने की मांग की…
कोरबा में बैठे एक व्यक्ति को भी महाविद्यालय में हुए भ्रष्टाचार का अंदेशा था जिसे लेकर उसने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी यह जानकारी उसने नवंबर 2024 में मांगी थी,जिस समय प्रभारी प्राचार्य सेवानिवृत नहीं हुए थे फिर भी जानकारी मिली नहीं अब वह अपील में चले गए,अब अपील में जानकारी मिलती है या नहीं यह देखने वाली बात है इसी बीच उन्हें यह पता चला कि महाविद्यालय में सेवानिवृत्ति प्राचार्य द्वारा दस्तावेज जलाए गए, इसके बाद जफर अली ने तमाम जांच एजेंसियों सहित उच्च न्यायालय व उच्च शिक्षा विभाग को शिकायत करते हुए जांच की मांग की है,उन्होंने यह शिकायत ईमेल के माध्यम से करते हुए लिखा कि प्रभारी/अधिकारी खबरों की गंभीरता को देखते हुए छ.ग. में अध्ययनरत छात्र छात्राओं के सर्वांगीण कल्याण हित में स्वतः संज्ञान लेने का कष्ट करें,छ.ग. राज्य सूचना आयोग के पेशी उपरांत खबरों की सत्यता एवं दोषियों पर कड़ी कार्यवाही हेतु तत्काल जांच/उचित कार्यवाही करने के लिए लिखा है,छ.ग. राज्य सूचना आयोग के पेशी उपरांत लगातार न्यूज़पोर्टलो एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों में शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय,बैकुंठपुर के पूर्व प्रभारी अधिकारी पर भ्रष्टाचार,प्रशासनिक अनियमितता और शासकीय दस्तावेजों को अवैधानिक तरीके से नष्ट करने जलाने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। छ.ग. में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण कल्याण हित में उक्त खबरों की गंभीरता को देखते हुए स्वतः संज्ञान लेकर खबरों की सत्यता एवं दोषियों पर कड़ी कार्यवाही आवश्यक है।