लेख@ मुगल शासक अकबर के शासन पर उठते सवाल क्यों?

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अभी एक चर्चा का विषय बना है मुग़ल सम्राट अकबर का एन सी आर टी के पाठ्यक्रम में बदलाव जिसमें पहले अकबर क़ो इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में एक अच्छा मुग़ल शासक बताया गया उसपर कई çफ़ल्म भी बने लेकिन अच्छे इतिहासकार से अहले जानने की कोशिश करें जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल को अक्सर एक महान और सहिष्णु व्यक्ति बताया जाता है जो सही नहीं है ऐ अच्छे इतिहासकार से जाने,अकबर का शासनकाल क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण था, जबकि औरंगज़ेब एक सैन्य शासक था जिसने गैर-इस्लामी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया और गैर-मुसलमानों पर फिर से कर लगाए – एनसीईआरटी की कक्षा 8 की नई सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक प्रमुख मुगल सम्राटों को इसी तरह प्रस्तुत करती है। यदि किसी भी र्ध में मानवता क़ो ही सही माना गया है न ही किसी हिंसा का स्थान है अतः मुगलों का शासन भारत माता क़ो कभी अपना नहीं माना परिवारवाद और हिन्दू पर खुब अत्याचार हुए हैं जिसका विरोध मुसलमानो ने भी किया क्योंकि मुगलों से लोहा लेने वाले सिखों के दशवे गुरुगुरुगोविन्द सिंह ने पहाड़ी राजा से भी युद्ध लड़ना पड़ा जिसमें मुसलमानो की भी संख्या थी और जो मुग़ल के अत्याचार क़ो देखते हुए भी इतना नहीं सोचा कि आपस में बड़ा छोटा का भेदभाव मिटा कर भारत माता का सच्चा सेवक बने इसलिए उस समय इतिहास लिखने वाले ने अपने मन मुताविक इतिहास लिखा इसमें क़ोई संदेह नहीं है यदि ऐसा ना है तो कहाँ किसी मुग़ल शासन में भगवान राम के बारे में कुछ सही लिखा हो जबकी गुरूगोविन्द सिंह ने मुगलों की सेना से लड़े और भगवान राम के अवतार के रूप में आज भी सिख इतिहास में दर्ज है जो न्याय और सत्य दया सेवा का प्रतिक है इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल को अक्सर एक महान और सहिष्णु व्यक्ति बताया जाता है; यह मुगल शासन के उस उज्ज्वल पक्ष को दिखाने की कोशिश है, जिसने हिंदुओं का बेरहमी से कत्लेआम किया और भारतीय संस्कृति के कुछ सबसे मज़बूत स्तंभों – हमारे मंदिरों -को ध्वस्त कर दिया! जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने मुगल साम्राज्य की बागडोर अपने पिता हुमायूँ मुगल के शाही पुस्तकालय की सीढि़यों से उतरते समय दुर्घटनावश गिरने और गंभीर मस्तिष्क आघात से उनकी मृत्यु के बाद संभाली थी। 13 वर्ष की आयु में, युवा अकबर ने 14 फरवरी, 1556 को कलानौर स्थित अपने महल के बगीचे में अपने पिता की गद्दी संभाली। उनकी कम उम्र के कारण, साम्राज्य के मुख्यमंत्री बैरम खान को अकबर का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया गया,जब तक कि वह मुगल सल्तनत के मामलों को संभाल नहीं लेते।सिंहासन पर नज़र गड़ाए, कई अफ़गान शासकों ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी। इन षड्यंत्रकारियों में से एक अफ़ग़ान राजकुमार आदिल शाह था, जो मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर कब्ज़ा करना चाहता था। आदिल शाह के मुख्यमंत्री हेमू को मुग़ल सल्तनत को उखाड़ फेंकने और दिल्ली के आसपास के क्षेत्र पर कब्ज़ा करने का काम सौंपा गया था।अक्टूबर 1556 में,हेमू ने मुग़ल साम्राज्य पर एक आश्चर्यजनक हमला किया,जिसमें मुग़ल सेनापतियों द्वारा अनुभवी युद्ध रणनीतिकार के प्रकोप से बच निकलने के बाद उन्होंने निर्णायक रूप से विजय प्राप्त की। इस व्यापक विजय के बाद, हेमू ने स्वयं को दिल्ली का स्वतंत्र शासक घोषित किया और राजा विक्रमादित्य हेमू चंद्र के रूप में उनका राज्याभिषेक हुआ।बदला लेने की लालसा में, बैरम खान और अकबर ने अपनी सेनाएँ एकत्र कीं और नवंबर 1556 में पानीपत में राजा विक्रमादित्य की सेनाओं से युद्ध किया। युद्ध के दौरान, एक ती राजा विक्रमादित्य की खोपड़ी में जा लगा, जिससे वे अपने हाथी, हवाई पर बेहोश होकर गिर पड़े। बैरम खान के सैनिकों ने बेहोश राजा विक्रमादित्य को पकड़कर सम्राट के सामने पेश किया। बैरम खाँ के हठ पर, अकबर ने अपनी तलवार के एक तेज़ वार से राजा को उसकी सारी सेना के सामने मौत के घाट उतार दिया। वैसे तो युद्ध यहीं समाप्त हो जाना चाहिए था,क्योंकि वैदिक रीतियों के अनुसार सेनापति की मृत्यु के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है। यह सोचकर कि अकबर उनकी रीति का सम्मान करेगा,राजा विक्रमादित्य के सैनिक अपने ठिकानों की ओर लौटने लगे। तब अकबर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे अपने प्रतिद्वंद्वी के प्रत्येक सैनि का पीछा करें और उनके सिर काटकर, उन खोपडि़यों को ट्रॉफी के रूप में वापस लाएँ। इस भयावह घटना के बाद, अकबर ने मारे गए राजा का सिर काबुल स्थित हुमायूँ के हरम में भेज दिया; और विजय के प्रती के रूप में धड़ को दिल्ली में परेड कराया। दिल्ली लौटने के बाद, अकबर ने अपने सैनिकों को मुगल राजधानी के मध्य में विक्रमादित्य के सैनिकों की खोपडि़यों का एक मीनार बनाने का आदेश दिया – जिससे उन्हें गाजी की उपाधि मिली।1567 में,अकबर ने विवाह करो या मरो की नीति अपनाई थी, जिसके तहत उसने राजपूत राजघराने की महिलाओं से विवाह करने का सिलसिला शुरू किया। मेवाड़ के राणा उदय सिंह ने अपनी बेटी का विवाह अकबर से करने से इनकार कर दिया। क्रोधित होकर,अकबर ने मेवाड़ राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया और चित्तौड़ (चित्तौड़गढ़) के किले पर आक्रमण कर दिया, जहाँ 8,000 राजपूत किले की रक्षा के लिए तैनात थे। मुगलों ने किले पर बंदूकों से हमला किया, जिसमें राजपूत सेनापति जयमल मारा गया।जब जयमल की मृत्यु की खबर किले के निवासियों में फैली,तो वहाँ अफरा-तफरी मच गई। अकबर को अपने कब्ज़े वाले किलों की महिलाओं को अपने हरम में यौन दासी के रूप में रखने के लिए बदनाम किया जाता था, लेकिन बहादुर राजपूत महिलाएँ किसी भी तरह से मुगल शासक के हाथों अपना सम्मान खोने को तैयार नहीं थीं। 24 फ़रवरी 1567 की सुबह, चित्तौड़ की राजपूत महिलाएँ मुगल शासकों के हरम में भोग्या के रूप में ले जाए जाने से बचने के लिए चिताओं पर कूद पड़ीं। चित्तौड़ का किला 30,000 हिंदू किसानों का घर था,जिनका मुगल सम्राट अकबर के आदेश पर नरसंहार किया गया।यह युद्ध महाराणा प्रताप सिंह के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिन्होंने बाद में चित्तौड़गढ़ के गौरव को वापस लाने का प्रयास किया। इससे मध्यकालीन भारत के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ।मुगल सम्राट अकबर ने दीन-ए-इलाही धर्म की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने खुद को एक पैगंबर घोषित किया,जिसकी पूजा उनके नए धर्म के अनुयायियों द्वारा की जानी थी। न तो उनके दरबार के बाहर के लोगों ने इस धर्म को अपनाया, न ही उनके अपने बच्चों ने उनके नए धर्म को अपनाया। दरअसल, उनके बेटे जहाँगीर ने एक हिंदू काफिर का सार्वजनिक रूप से कत्ल कर दिया और उसे गाज़ी की उपाधि मिली। अकबर के हरम में 5,000 से ज़्यादा पत्नियाँ थीं, और कुरान में वर्णित होने के कारण, उनके सुन्नी दरबारी उनसे नियमित रूप से पत्नियों की संख्या 4 तक सीमित रखने के लिए कहते थे। कुरान का उल्लंघन करने की उनकी नियमित आलोचना से नाराज़ होकर, उन्होंने हज़ारों पत्नियाँ रखने के अपने नैतिक सिद्धांतों को सिद्ध करने के लिए उन्होंने दीन-ए-इलाही धर्म की स्थापना की, जिनमें रूस और अन्य देशों की किशोर लड़कियाँ भी शामिल थीं।यह मुगल सम्राट के लिए जनता को मूर्ख बनाने और अपनी प्रजा के बीच एक सहिष्णु छवि बनाने के लिए एक प्रचार उपकरण के रूप में कार्य करता था।अतः सही चीज क़ो उजागर करने में परेशानी क्या है सभी मुसलमान एक जैसे नहीं होते लेकिन जो मुग़ल क़ो इससे जोरते हैं अब उस मानसिकता क़ो बदलना चाहिए और धर्म का सही महत्व क़ो जानना चाहिए, ईश्वर एक है और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है.अतः अच्छे इतिहासकार ही हकीकत बता सकते हैं जो सत्य होगा उसे बताना जरुरी है तो बताए नहीं तो इस मुद्दे क़ो शामिल ही ना करें।


संजय गोस्वामी
मुंबई,महाराष्ट्र


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