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कविता@काबर साथ दिही …

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ओखरे पेट म लात मारे के
करत हवस तैयारी,
आसिरवाद लेहे बर
घोंडत हस ओखर गोड़ म
का हवय तोला बीमारी,
राजनीति करत हस तैं हर
कइसे हम पतियाबो,
तोर करम कुकरम ल देखेहन बाबू
आउ धोखा काबर हम खाबो,
अपन बाप ल बाप नइ कहस
दूसर ल बाप बनाथस,
एक गोठ म खड़े नई रहस
सपना भारी देखाथस,
नंगरा हस तैं जनमजात ले
भरोसा करे के काबिल नई हस,
जब जब सत्ता मिलिस हे तोला
हाथ गोड़ तैं हमरे टोरेहस
हमर बिस्वास म शामिल नई हस,
सरबस नास करे के नीति ओखर
ओही नियम ल तहूं अपनाथस,
जात पात ल कोरा म धर के
सपना हमला बड़े देखाथस,
हमर भरोसा जीते बर अउ
पहिरना हे मुड़ी हमर हाथ ले साफी,
तभे भरोसा करबो हम हर
जब घोलण्ड घोलण्ड के मांगबे माफी,
फेर एतका कन नई हे तोर म दम,
जीईच मरिस हे जउन हमर बर
ओही ल अघुवा मानबो फेर हम।


राजेन्द्र लहिरी
पामगढ़
छत्तीसगढ़


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