
ईरान और इजराइल की टकराव की आग में अब अमेरिका भी खुलकर कूद चुका है। अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फोर्डो,नतांज और इस्फहान पर इतिहास का सबसे सफल सैन्य हमला किया नॉर्थ्रॉप बी-2 स्पिरिट, जिसे स्टील्थ बॉम्बर के नाम से भी जाना जाता है। एक अमेरिकी भारी रणनीतिक बमवर्षक है,जिसमें कम-अवलोकनीय स्टील्थ तकनीक है जिसे घने विमान-रोधी सुरक्षा को भेदने के लिए डिज़ाइन किया गया है। दो लोगों के चालक दल के साथ एक सबसोनिक फ़्लाइंग विंग, विमान को नॉर्थ्रॉप (बाद में नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन) ने प्रमुख ठेकेदार के रूप में डिज़ाइन किया था, जिसमें बोइंग, ह्यूजेस और वॉट प्रमुख उपठेकेदार थे, और इसका उत्पादन 1988 से 2000 तक किया गया था। बमवर्षक पारंपरिक और थर्मोन्यूक्लियर हथियार गिरा सकता है। जैसे कि अस्सी 500-पाउंड वर्ग (230 किग्रा) एमके 82 जेडीएएम जीपीएस-निर्देशित बम,या सोलह 2,400-पाउंड (1,100 किग्रा) बी-2 स्पिरिट2016 में प्रशांत महासागर के ऊपर उड़ान भरता हुआ पाया गया यह बहुत ही खतरनाक बम हैं जो कंक्रीट को चिरता हुआ 200 फिट नीचे जाता है और सब तबाह कर देता है और 6 बम बर्षक बम से तो प्लांट के अंदर में कुछ भी नहीं बजेगा उसमें उस परमाणु प्लांट के अंदर काम करने वाले लोग भी मारे गए होंगे क्योंकि यह दुनिया का ऐसा बम है धरती के अंदर बहुत तेजी से जाता है औऱ जीपीएस व लेजेस से लैस है। अतः ये लक्ष्य को जीपीएस सिस्टम पता लगाता और जोरदार धमाका करता है। अतः ईरान के तीनो परमाणु स्थल नस्ट हुए हैं। बेपन ग्रेड को वहाँ से उससे पहले निकाल लेना इतना आसान नहीं है यदि शिफ्ट ही कर दिया तो फिर कौन से प्लांट में ले जाया गया होगा वो भी तो कहीं गया ले गया होगा यह बिल्कुल वही सामग्री है और कितने समय में वेपन बनेगा यह सब खबर ठीक नहीं लग रहा है। जहाँ तक खबरों ऐ दिखया जा रहा जो जानकारी के अभाव मे हैं रेडिशन लीक होने का कारण यह है की यह जमीन के बहुत अंदर था और बमवर्षक बी-2 बम एक नहीं 6 नम गिते अतः एक के एक मिट्टी के अंदर ही दब गए होंगे खैर अमेरिका को इसमें कूदना नहीं चाहिए क़ोई कुछ भी बना रहा है तो उसमें उसकी टेक्नोलॉजी लगी है। इससे उस देश द्वद्ग अमेरिका के प्रति नफरत होगा। ये ईरान व इजराइल की लड़ाई थी लेकिन जब इजराइल मे ईरान के तरफ दागी गई मिशायल से इजराइल को जो झटका लगा है वो भी ईरान की ताकत है जो मिशायाल टेक्नोलॉजी में काफी प्रगति की भारत को दोनों देश को शांति बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए। युद्ध हमेशा नुकसान ही होता है। इजराइल में ईरान की मिसायल इस कदर कोहराम मचा है टेलीवीजन प्रर मीडिया द्वद्ग इजराइल की छवि खराब हो रही है। लोगों मे डर का माहोल पैदा हो गए हैं। आखिर कब तक बामशेल्टर मे रहेंगे
कार्टर प्रशासन के दौरान उन्नत प्रौद्योगिकी बॉम्बर परियोजना के तहत विकास शुरू हुआ,जिसने मैक 2-सक्षम बी-1 बॉम्बर को आंशिक रूप से रद्द कर दिया क्योंकि एटीबी ने ऐसा वादा दिखाया था,लेकिन विकास संबंधी कठिनाइयों ने प्रगति में देरी की और लागत बढ़ा दी। अंततः, कार्यक्रम ने विकास, इंजीनियरिंग,परीक्षण,उत्पादन और खरीद सहित प्रत्येक 2.13 बिलियन (2024 में 94.17 बिलियन) की औसत लागत पर 21 बी-2 का उत्पादन किया।प्रत्येक विमान के निर्माण में औसतन एसएस 737 मिलियन की लागत आई,जबकि कुल खरीद लागत (उत्पादन, स्पेयर पार्ट्स, उपकरण, रेट्रोफिटिंग और सॉफ्टवेयर समर्थन सहित) औसतन प्रति विमान 929 मिलियन (2023 में 91.11 बिलियन) थी। परियोजना की काफी पूंजी और परिचालन लागतों ने इसे अमेरिकी कांग्रेस में विवादास्पद बना दिया, यहां तक कि शीत युद्ध के समापन से पहले भी सोवियत क्षेत्र में गहरी हमला करने के लिए डिज़ाइन किए गए एक स्टील्थ विमान की इच्छा नाटकीय रूप से कम हो गई थी। नतीजतन,1980 और 1990 के दशक के अंत में सांसदों ने 132 बमवर्षकों की योजनाबद्ध खरीद को घटाकर 21 कर दिया बिना ईंधन भरे इसकी रेंज 6,000 नॉटिकल मील (11,000 किमी; 6,900 मील) से ज़्यादा है और एक बार हवा में ईंधन भरने पर यह 10,000 नॉटिकल मील (19,000 किमी; 12,000 मील) से ज़्यादा की उड़ान भर सकता है। यह 1997 में लॉकहीड स्न-117 नाइटहॉक अटैक एयरक्राफ्ट के बाद एडवांस्ड स्टील्थ तकनीक से डिजाइन किए गए दूसरे एयरक्राफ्ट के रूप में सेवा में आया था। मुख्य रूप से परमाणु बमवर्षक के रूप में डिजाइन किए गए बी-2 का पहली बार 1999 में कोसोवो युद्ध में पारंपरिक, गैर-परमाणु आयुध गिराने के लिए इस्तेमाल किया गया था। बाद में इसका इस्तेमाल इराक,अफ़गानिस्तान, लीबिया,यमन और ईरान में किया गया। संयुक्त राज्य वायु सेना के पास 2024 तक सेवा में उन्नीस बी-2 हैं; एक 2008 की दुर्घटना में नष्ट हो गया था और 2022 में दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हुए दूसरे को संभावित मरम्मत की लागत और अवधि के कारण सेवा से सेवानिवृत्त कर दिया गया था। वायु सेना ने 2032 तक बी-2 को संचालित करने की योजना बनाई थी लेकिन ईरान के परमाणु सयन्त्र पर हमले में उसके तीनो परमाणु सयंत्र नस्ट हो गए लेकिन परमाणु सयन्त्र को इस तरह बनाया जाता है कि भूकंप आने पर भी उसे कुछ नहीं होता है अगर हमसे पूछेंगे तो मेरे अनुसार परमाणु सयन्त्र साल दो साल में नहीं बल्कि उसे बनने में 10-15 साल तक लग जाता है और संवर्धित यूरेनियम वह यूरेनियम है जिसमें आइसोटोप पृथक्करण नामक प्रक्रिया के माध्यम से आइसोटोप यूरेनियम-235 का प्रतिशत बढ़ाया गया है। प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले यूरेनियम में थोड़ी मात्रा में यू-235 (लगभग 0.72 प्रतिशत) होता है, लेकिन परमाणु रिएक्टरों और हथियारों में उपयोग के लिए इस प्रतिशत को बढ़ाने की आवश्यकता होती है ताकी फिशन रिएक्शन हो सके और जिसे कण्ट्रोल करने पर परमाणु रीक्टर बनता है लेकिन अधिकतर देश इसे परमाणु अस्त्र बनाने का काम करते है यह यूरेनियम का ही आसोटोप है नुक्लियर सेंटर में कार्य करने वाले लोग अपने देश के टॉप स्टूडेंट होते हैं क्योंकि उसमें तकनिकी के साथ साथ रेडीएशन को कण्ट्रोल करना भी एक चुनौती होती है परमाणु सयंत्र का डिज़ाइन बहुत ही जटिल प्रक्रिया है और उसमें गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण है और आईएईए के नियम के अनुसार होता है और यह फैसिलिटी में बहुत खर्चे होता है रोबोटिक का इसमें बहुत सावधानी से प्रयोग में लाया जाता है अतः यह किसी भी देश के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था होती है और इससे जो रेडियोआइसोटोप निकलते हैं वो कैंसर,फल को अधिक समय तक जाता रखना रेडियोग्राफी में काम आता है अतः ये किसी देश की टेक्नोलॉजी है जिसमें अभी भी शोध है इसलिए ऐ कहना की उससे पहले ही वेपनग्रेड यूरेनियम को वहाँ से निकाल लिया गया है तो सही नहीं होगा क्योंकि रेडियोएक्टिव मटेरियल को लुका या छिपा कर नहीं लाया जा सकता है यूरेनियम को वहाँ से हटाना मुश्किल है क्योंकि सेंट्रीफ्यूज सिस्टम जहाँ इनस्टॉल है वहाँ बहुत सालों के बाद ऐ बना होगा और ऐ फल सब्जी जैसा नहीं है कि तुरंत वहाँ से हटा ली जाए उसपर सीआईए की सेटेलाइट लगी होती सबसे आम वाणिज्यिक विधि सेंट्रीफ्यूज का उपयोग करती है। ये मशीनें उच्च गति पर प्रतिशत 6 गैस को घुमाती हैं, जिससे भारी-238 को हल्के-235 से उनके द्रव्यमान अंतर के कारण अलग किया जाता है। हल्का -235 सेंट्रीफ्यूज के केंद्र के पास केंद्रित होता है, जबकि भारी -238 बाहरी किनारे पर चला जाता है अतः यूरेनियम जो परमाणु वेपन के लिए ईरान बना रहा था जैसा की नेतान्याहू ने इसके लिए ट्रम्प को धन्यवाद कहा लेकिन अपने घर खंडहर बन रहा है उसे शांति पूर्ण तरीके से रोकने के लिए सीजफायर के लिए प्रयास करना चाहिए क्योंकि इस जंग मे दुनिया मे आर्थिक संकट आ सकती है. अतः नहीं शांति की ओर जाएं नहीं तो दोनों तरफ से सब बर्बाद हो जायेगा..भारत ने 1998 मेँ अमेरिका के दबाब के बाद भी परमाणु परीक्षण किया ऐ भारत की सबसे बड़ी सफलता है जिसमें देश के वैज्ञानिक़ो का श्रेय जाता है जो बहुत पहले से तैयारी की जा रही थी लेकिन स्व तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी का देश के प्रति समर्पण भारत के इतिहास क़ो बदल कर रख दिया और उस समय नहीं कर पाता क्योंकि जिस तरह आज अमेरिका का दबाब सीधे हमले की धमकी दे रहा है और खुद ही परमाणु हथियार का जखीरा रखे हुए है ऐ खबर बिलकुल गलत है कि ईरान क़ो ाअमेरिका की हमले की जानकारी दि थी क्योंकि क़ोई भी देश अपने स्थल पर किसी भी हनले की इजाजत नहीं देगा और जहाँ तक मैटेरियल हटा लेने की बात है वो तुरंत नहीं हटाया जा सकता क्योंकि रेडियोएक्टिव मेटेरियल इतना जल्द नहीं लाया जा सकता और अमेरिका करोड़ो का बी 2बमबर्षक क़ो ईरान मेँ क्यों भेजता और परमाणु सयन्त्र मेँ एक सिस्टम क़ो इतना जल्दी नहीं हटाया जा सकता है उसमें पाईपिंग टैंक लैब और शिल्डिंग कंक्रीट का दीवारों क़ो वहाँ से तुरंत कैसे हटा सकते हैं और प्लांट की कीमत अरबो मेँ होती है और क़ोई देश अपने धरती पर किसी भी हमला उसकी संप्रभुता होती है अमेरिका और इजराइल क़ो धैर्य से काम लेना चाहिए था इससे पुरे विश्व मेँ आर्थिक संकट आ जाएगी और किसी देश की अपनी टेक्नोलॉजी होती है उसे नस्ट करना उचित नहीं है लेकिन भारत क़ो तटस्थ भूमिका लेनी चाहिए क्योंकि ऐ गाना है सिकंदर और पौरस की ही थी लड़ाई तो मैं क्या करुँ, भारत क़ो शांति के काम लेना चाहिए प्रदर्शन से क्या होगा हमारे देश मेँ क़ोई हमला नहीं है तो उससे क्या फायदा, क्या अमेरिका की जंग कौन कूदेगा क्योंकि लड़ाई मेँ बर्बादी ही बर्बादी है। अतः खुद ईरान इजराइल क़ो जबाब दे रहा है क्या जरुरत थी बिना मतलब हमला करना अब इजराइल खुद ही ईरान के हमले से उसका देश खंडहर होते जा रहा है। ये उसकी नाकामी क़ो दुनिया देख रही है अतः शांति से काम लेना चाहिए क्योंकि नुकसान की भरपाई करने मेँ सालों लग जायेगा.ऐ युद्ध धर्म के लिए हो रहा जहाँ येंरूशेलम क़ो लेकर है जहाँ तीन देशों का अपना अपना धर्म स्थल है जैसे इस्लाम के लिए अलअक्सा मस्जिद है जो मुस्लिम देश के लिए तीसरा बड़ा धर्म स्थल है वहीँ यहूदी का वेस्टन वाल है जहाँ खुद नेतान्याहू ईरान के अमेरिका के हमले के बाद खुद गए वहीँ इसामसीह का भी पवित्र स्थल है इसलिए ट्रम्प गॉड का कई बार नाम ले चूंके हैं। किस्चिन के बहुत बड़ी संख्या अमेरिका मेँ है इसलिए उसे किसी भी हाल मेँ वहाँ अरब देशों के कब्ज़ा नहीं होने देगा यें बहुत पुराना इतिहास है जिसमें हजारों की तादाद मेँ जान गईऔर अभी ही सीरिया मेँ सत्ता परिवर्तन के बाद चर्चे पर फियादिन हमला हुआजो आई एस आई एस ने किया अतः यें भ्रम है क्योंकि ईश्वर एक है और मानवता ही धर्म है।
संजय गोस्वामी
मुंबई,महाराष्ट्र