मनेंद्रगढ़,18 मई 2025 (घटती-घटना)। मनेंद्रगढ़ की बहुमूल्य ऐतिहासिक विरासत भूपेंद्र क्लब की भूमि पर वर्षों से कब्जा जमाए लोगों को न्यायिक चौखट से बड़ा झटका लगा है। प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विवेक तिवारी की अदालत ने 16 मई को बेदखली नोटिस को पूरी तरह वैध ठहराते हुए 16 याचिकाकर्ताओं की दलीलें सिरे से खारिज कर दीं। इन कब्जाधारियों ने तहसीलदार द्वारा 17 अप्रैल को जारी नोटिस को चुनौती दी थी,लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि यह भूमि भूपेंद्र क्लब के नाम पर वैध रूप से दर्ज है और उस पर अवैध कब्जा किसी भी दृष्टिकोण से मान्य नहीं हो सकता। तहसीलदार कार्यालय ने 22 अवैध कब्जाधारियों को अंतिम चेतावनी देते हुए 12 दिनों में भूमि खाली करने का निर्देश दिया था। नोटिस में यह भी स्पष्ट किया गया था कि यदि कब्जा न छोड़ा गया तो प्रशासनिक बल प्रयोग कर कार्रवाई की जाएगी,और निर्माण हटाने की जिम्मेदारी भी पूरी तरह से कब्जाधारियों की ही होगी।इनमें से 16 लोगों ने राहत पाने की उम्मीद में न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, पर अब कानून की मुहर तहसीलदार की कार्रवाई पर लग चुकी है। जनता की मांग फैसले के बाद नागरिकों की स्पष्ट मांग है कि अब प्रशासन को कोई देरी किए बिना पूरी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराकर उसका नियमानुसार उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए। लोग मानते हैं कि इस ऐतिहासिक संपत्ति को पुनः क्लब के उद्देश्यों, सांस्कृतिक,शैक्षणिक और खेल गतिविधियों के लिए पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
1994 में कोर्ट के आदेश पर भूपेंद्र क्लब को सौंप दी गई
राजा ने बेटे के नाम पर दिया था क्लब यह भूमि कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह जूदेव ने 1936 में अपने पुत्र भूपेंद्र सिंह के नाम पर दान की थी। भूपेंद्र क्लब को 30,000 वर्गफीट भूमि दी गई थी,जहां कभी शहर के सांस्कृतिक आयोजन,खेलकूद प्रतियोगिताएं और सामाजिक संवाद हुआ करते थे। 1981 में प्रशासनिक विवादों के कारण यह भूमि राजसात कर ली गई थी,लेकिन 1994 में कोर्ट के आदेश पर फिर से भूपेंद्र क्लब को सौंप दी गई। अफसोस कि तब से अब तक सरकारी उदासीनता और कब्जाधारियों की मिलीभगत के चलते इस भूमि का वास्तविक उपयोग ठप पड़ा रहा।भूपेंद्र क्लब की भूमि पर वर्षों से कुछ लोगों ने न सिर्फ कब्जा किया, बल्कि वहां अवैध निर्माण कर दुकानें बेच डालीं और आज भी वहां से प्रत्येक माह 20000 रुपए से भी से अधिक किराया वसूला जा रहा है।
क्या ये फैसला केवल कब्जा हटाने की इजाजत नहीं, बल्कि यह संदेश है कि सार्वजनिक संपत्ति पर निजी कब्जा अब बर्दाश्त नहीं?
जानकारी के अनुसार,इनमें से कुछ कब्जाधारियों ने हाल ही के वर्षों में यहां दुकानें खरीदी हैं यानी जमीन की अवैध बिक्री और पुनः कब्जा एक सुनियोजित प्रक्रिया बन चुकी थी। शहर का नुकसान शासन को हर महीने लाखों का राजस्व घाटा,स्थानीय जानकारों का कहना है कि यदि प्रशासन इन 22 कब्जों को हटाकर यहां वैध रूप से दुकान निर्माण व आवंटन करे,तो प्रति माह 1 लाख से अधिक राजस्व अर्जित किया जा सकता है,जो नगर के विकास,स्वच्छता और नागरिक सुविधाओं में लगाया जा सकता है। सख़्त संदेश न्यायालय का फैसला केवल कानूनी नहीं,नैतिक जीत भी यह फैसला केवल कब्जा हटाने की इजाजत नहीं,बल्कि यह संदेश है कि सार्वजनिक संपत्ति पर निजी कब्जा अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शहरवासी उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन अब निर्णायक कार्रवाई करेगा और वर्षों से दबे इस मामले को विरासत की गरिमा के साथ पुनर्जीवित करेगा।यह सिर्फ जमीन नहीं,हमारे शहर की आत्मा है और अब उसे पुनः जीवित करने का समय आ गया है।
