बैशाख के महिना हा गर्मी के महिना आए,जेनमा धुर्रा उड़ाथे अउ बासी हा गजब सुहाते,फेर प्रकृति के रचना हा घलो उटपटांग आए अभी धुर्रा के जगा मा चिख्ला होवत हे अउ शरबत के जगा चाय हा सुहावत हे। सावन भादो कस गली खोर मा पानी बोहावत हे। लइका धुर्रा के जगा मा चिख्ला ला छपछपावत हे। आदमी हा अपन कर्म मा पर्दा डारत हे अउ प्रकृति ला अड़बड़ कोसत हे।हे भगवान यहा गर्मी के दिन मा बरसात कस पानी बरसावत हस,जम्मो के काम बुता ला तै बिगाड़त हस। प्रकृति के स्वभाव के अन्तर्गत जब मौसम बदल थे,ता हमन प्रकृति ला अड़बड़ चिल्लाथन,पर हमन एको नइ सोचन कि काबर मौसम हा बदलत हे,अउ बेमौसम बरसात आए दिन पानी हा गिरत रथे।
प्रकृति मा मौसम के बदलाव अउ प्रकृति के ऋ तु के उल्टा व्यवहार मा प्रकृति के एको दोष नइ हे। हम मइन्शे के स्वार्थ अउ प्रकृति के नियम के उल्टा हमर काम हरे। हमन गली खोर मा चिख्ला झन होए कहिके गली के संग संग भांठा ला घलो कांकरेटिकरण कर देथन। जंगल रूखराई खेत खार ला हमन जलावत हन। रूखराई ला आए दिन अपन स्वार्थ बर काटत हन। यहां तक के हमन जेन ला हमन गौ माता कथन ओकर संग मा हमन खेल खेलथन हन गौ माता संग प्रकृति ला छोड़ कृत्रिम गर्भाधान ला हम अपनावत हन।अपन स्वार्थ खातिर अइशने कइयों ठन बुता ला हमन प्रकृति के नियम के उल्टा करत हन ता हम जम्मो झन ला प्रकृति के प्रकोप तो सहे ला लागही। प्रकृति हा अपन जगा मा जैसन हावै उसने अभी भी हावै। बदले हावै तो हमर स्वार्थ के सीमा बढ़गे हावै।हमन केवल अपन बारे मा ही सोचथन अउ प्रकृति के नियम के उल्टा हम व्यवहार करथन,अउ प्रकृति ला दोष देथन जो ग़लत आए।
हमर सियानन मन भले कम पढ़ें लिखे रिहीश पर प्रकृति के संग घुल-मिल के राहे अउ प्रकृति ला सजाए बर कोनो कसर नइ छोड़े। जेकर सेति उकर मन के समय मा जाड़ गर्मी अउ बरसात हा एक बरोबर रहे अउ सहज रूप ले प्रकृति के संग अपन आप ला ढाल ले अउ मौसम बदलाव के संग कोनो किस्म के बीमार के शिकार नइ होवै।
