
उत्पादन के चार साधन होते हैं…भूमि,श्रम,पूंजी और उद्यम। लेकिन इन चारों में श्रम सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि श्रमिक ही अपने परिश्रम के द्वारा भूमि का प्रयोग करता है, पूंजी का संचय करता है तथा उद्यमकर्ता का निर्माण करता है। किसी भी देश का विकास उस देश में उपलब्ध श्रमिकों की मात्रा,उनके प्रशिक्षण, ज्ञान तथा कार्य कुशलता पर निर्भर करता है! संभवत यही कारण है कि विश्व के अधिकांश भागों में 1 मई को राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। असल में 1 मई को मजदूर दिवस मनाने की परंपरा अमेरिका से हुई जब कुछ मजदूर संघों ने दिन में ज्यादा से ज्यादा 8 घंटे काम करने और इससे ज्यादा काम करने के लिए ओवरटाइम की मांग की। तभी से विश्व के अधिकांश देशों में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाने लगा है। मजदूर दिवस मनाए जाने के पीछे मजदूरों की अपनी कुछ जायज मांगे मनवाना है जैसे
उचित मजदूरी दी जाए,8 घंटे से ज्यादा काम ना कराया जाए,8 घंटे से ज्यादा काम कराए जाने पर ओवरटाइम दिया जाए,सप्ताह में एक दिन वेतन सहित छुट्टी दी जाए, दुर्घटना या मृत्यु होने पर उचित मुआवजा दिया जाए,काम करने के स्थान को सुरक्षित बनाया जाए, चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए,संतान होने के समय महिला श्रमिकों को वेतन तथा चिकित्सा संविधान समेत छुट्टी दी जाए, सेवानिवृत होने पर प्रोविडेंट फंड तथा ग्रेच्युटी दी जाए,छटनी ना की जाए आदि आदि। 1 मई को मजदूर लोग लाल झंडा के साथ अपनी मांगों को मनवाने के लिए प्रदर्शन करते हैं,रेलिया निकलते हैं,भाषण देते हैं,स्मरण पत्र,मेमोरेंडम देते हैं। यहां यह बताना है अप्रासंगिक नहीं होगा कि श्रम दिवस के जनक पीटर मैगकायर तथा मैथ्यू मैगुअर नाम के दो व्यक्ति थे। आमतौर पर अपनी मांगों को बनवाने के लिए मजदूर लोग मजदूर संघ या ट्रेड यूनियन बनाते हैं। मजदूर संघ मजदूरों के द्वारा स्वैच्छिक तौर पर उनकी मांगों को मालिकों से मनवाने की एक संस्था होती है। वह दो प्रकार के काम करती है. संघर्ष आत्मक तथा कल्याणकारी! संघर्ष आत्मक कार्यों में मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल करना,जुलूस निकालना, धरना देना, बाईकाट करना शामिल होते हैं। जबकि कल्याणकारी कार्यों में मजदूरों के रहने के लिए व्यवस्था करना, शिक्षा तथा चिकित्सा का प्रबंध करना आदि शामिल होते हैं। समय-समय पर श्रम संघों तथा मिल मालिकों में बातचीत होती रहती है और उचित मांगे बिना किसी तकरार के मान ली जाती हैं। कई बार मजदूरों को मालिक औद्योगिक इकाई के प्रबंध में भी शामिल कर लेते हैं। अगर कभी मजदूर तथा मिल मालिकों में उपर्युक्त बातों में से किसी बात पर सहमति नहीं होती तो इसे निपटाने के लिए त्रिपक्षीय समितियां ट्रिब्यूनल्स होते हैं। जिनमें मिल मालिक, श्रमिकों तथा सरकार के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इस प्रकार की त्रिपक्षीय समितियां जिला स्तर पर तथा राज्य स्तर पर होती हैं। इसके अलावा श्रम न्यायालय लेबर कोर्ट्स ही है। यहां यह जानना दिलचस्प होगा की 1917 में जब रूस में क्रांति आई तब वहां पर श्रमिकों की सरकार बनी थी जिसे गर्वमेंट ऑफ द प्रोटेलॉरिएट कहते हैं। 1924 में इंग्लैंड में पहली बार लेबर पार्टी की सरकार बनी थी। इन सब बातों से पता चलता है कि श्रमिक न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक तौर पर भी कितने महत्वपूर्ण है। हमारे देश में श्रमिकों के हित को ध्यान में रखकर कई प्रकार के श्रम कानून बनाए गए हैं जिनमें न्यूनतम मजदूरी,काम के घंटे,मातृत्व सेवा लाभ,मुआवजा, ग्रेच्युटी आदि बातें शामिल है। समय-समय पर श्रमिकों के हित को ध्यान में रखकर श्रम कानूनों में संशोधन भी किए जाते हैं। लेकिन अभी तक जो बात हमने कही है वह अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के बारे में कही है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था में 80त्न श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले हैं जैसे खेती बाड़ी, सड़कों तथा इमारतों के निर्माण में काम करने वाले लोग,घरों में काम करने वाले नौकर आदि। बेशक अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने श्रमिकों के कल्याण के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए हो लेकिन किसी भी देश में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को कोई सुविधा नहीं मिलती, कोई न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे, ग्रेच्युटी या पेंशन,छुट्टी आदि नहीं मिलते। आवश्यकता इस बात की है कि जब हम अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाएं तो ना केवल संगठित क्षेत्रों बल्कि असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा को भी ध्यान में रखें अन्यथा मजदूर दिवस मनाना एक नाटक तथा दिखावा बनकर रह जाएगा।
प्रोफेसर शाम लाल कौशल
रोहतक-124001( हरियाणा)