बलरामपुर@एक सिस्टम जो अपराधी को बचाए, और पीडि़त को डराए…क्या वह लोकतंत्र का प्रहरी हो सकता हैं?

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न्याय के लिए दर-दर भटकता एक ग्रामीण,क्या बलरामपुर में जान देकर ही मिलेगा इंसाफ?

बलरामपुर,01 मई 2025 (घटती-घटना)। एक वर्ष से न्याय के लिए संघर्षरत रघुनाथनगर के भोले-भाले ग्रामीण राजकुमार जायसवाल आज भी डर और दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं। जिनसे उसकी रक्षा की अपेक्षा थी वही पुलिस तंत्र और राजनैतिक संरक्षण में है, अब अपराधियों की ढाल बनकर खड़ा हो गया है।
मामला 14 मई 2024 का है जब राजकुमार जायसवाल रोज की तरह तेंदूपत्ता तोड़ने जंगल गया था। लौटते समय बाइक खराब हो जाने से वह देर रात करीब 8-9 बजे जंगल से लौट रहा था, तभी कुछ उत्तर प्रदेश के अपराधियों ने उसकी बाइक रोककर उसके साथ मारपीट की, गाली-गलौज की और नकद पैसे व घड़ी लूट ली। 15 मई को उसने रघुनाथनगर थाने में शिकायत दर्ज करवाई। आश्चर्यजनक रूप से, 16 मई को एक आरोपी खुद राजकुमार के घर माफी मांगने पहुंचा। उसके छोटे भाई ने आरोपी को पकड़कर थाने पहुंचा दिया और थाने में आरोपी का वीडियो बयान भी रिकॉर्ड किया गया, जिसमें उसने लूट की बात कबूल की और बताया कि हर साल तेंदूपत्ता सीजन में यही होता है। लेकिन कहानी यहीं नहीं खत्म हुई, राजकुमार का आरोप है कि थाना प्रभारी ने आरोपियों से करीब 70-80 हजार की रिश्वत लेकर उन्हें बचाने का रास्ता सुझाया। रिकॉर्ड किए गए वीडियो और ऑडियो को पुलिस ने ‘बलपूर्वक लिया गया बयान’ बताकर खारिज करने की कोशिश की। सवाल यह उठता है क्या किसी आम नागरिक के पास थाना परिसर में बल प्रयोग करने की ताकत होती है? ऑडियो में स्पष्ट है कि आरोपी अपनी गलती मान रहे हैं, माफी मांग रहे हैं और पैसे लौटाने की बात कर रहे हैं। फिर यह कैसे बलपूर्वक बयान हो सकता है?
क्या व्यवस्था की चुप्पी न्याय की हत्या है?
पुलिस अधीक्षक बलरामपुर और बाद में सरगुजा रेंज के पुलिस महानिरीक्षक तक गुहार लगाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। अब थक हारकर पीडि़त मीडिया की चौखट पर आया है।
क्या बलरामपुर में न्याय के लिए जान देना पड़ेगा?
कुछ समय पहले पहाड़ी कोरवा की दर्दनाक घटना को लोग भूले नहीं हैं, जिसमें न्याय की उम्मीद में एक आदिवासी को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। क्या अब राजकुमार जायसवाल को भी न्याय के लिए अपनी जान की आहुति देनी होगी?
राजकुमार की गुहार:-
अगर न्याय नहीं मिल सकता, तो साफ कह दें कि संविधान सिर्फ किताबों तक सीमित है, आम आदमी के लिए नहीं।
पीडि़त की मांग:

  • घटना की निष्पक्ष न्यायिक जांच हो।
  • आरोपी पुलिस कर्मियों पर कार्यवाही हो।
  • पीडि़त को सुरक्षा और मुआवजा दिया जाए।
  • दोषियों को शीघ्र दंडित किया जाए।

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