कोरिया/एमसीबी@स्वास्थ्य विभाग के तंत्र पर एक ग्राउंड रिपोर्ट,क्या झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे है ग्रामीणों की सेहत?

Share


-राजन पाण्डेय-
कोरिया/एमसीबी,01 सितंबर 2025 (घटती-घटना)। हमने जिलेवार स्थितियों को समझने का प्रयास किया तो पता चला कि सरकारी अस्पताल व डॉक्टर के लिए झोलाछाप डॉक्टर किसी वरदान से कम नहीं है, अस्पतालों तक पहुंचने वाली भीड़ को वह अपने अनुभव से इलाज करके रोक देते हैं, और आश्चर्य की बात तो यह भी है की दूरस्थ अंचल क्षेत्र के ग्रामीणों को इन झोलाछाप डॉक्टर पर भरोसा है और उन्हें इनसे अपने ठीक होने की उम्मीद है सरकारी अस्पताल व डॉक्टर कि यदि बात की जाए तो यह उन लोगों के लिए ठीक है जो थोड़ा पहुंच पकड़ वाले हैं सोर्स पैरवी वाले हैं और पैसे से भी सक्षम है ऐसे लोगों का ही इलाज वहां पर आसानी से हो पता है और वहां के डॉक्टर कर्मचारी भी इन्हें ही वस्तविक सुविधा दे पाते हैं,बाकी जो निरीह ग्रामीण होते हैं उन्हें ऐसी सुविधा मिल पाना मुश्किल है,क्योंकि वह सिस्टम से लड़ नहीं पाते सिस्टम के खिलाफ बोल नहीं पाते, इसलिए वह झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ही रहना ज्यादा मुनासिब समझते हैं,यही कारण है कि आज अविभाजित कोरिया जिले में आबादी 7 लाख से ऊपर है और यहां पर सभी अस्पतालों की संख्या व बेड की संख्या उतनी नहीं है कि प्रतिदिन 10000 लोगों का वह इलाज कर सकें। हमने इसकी ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करने का प्रयास किया तो एक बड़ी चीज सामने आई वह यह है कि कोरिया जिले में सारे शासकीय अस्पतालों को मिला कर बेड 700 से अधिक नहीं है पर यदि जनसंख्या का एक प्रतिशत लोग भी बीमार होते हैं तो उनकी संख्या उस बेड के चार गुनी है, जबकि सरकार के इंफ्रास्ट्रख्र वाले अस्पताल वह उनके स्टाफ काफी आधुनिक है फिर भी यह ग्रामीण के इलाज के लिए कारगर नहीं है, यह हम नहीं यह बात ग्रामीणों का कहना है।
ग्रामीणों का कहना है कि झोलाछाप डॉक्टर भले पैसे लेते हैं पर घर पहुच सुविधा देते हैं और बात करने का तरीका भी उनका हमारे लिए अच्छा होता है पर वही अस्पतालों में जाकर धक्का-मुक्की की परेशानी उठाते हुए उन्हें अपना इलाज कराना पड़ता है जो इस समय सरकारी अस्पतालों की स्थिति को बयां करता है। यदि स्वास्थ्य मामले में यदि कोई इस समय सबसे ज्यादा सरकार को लाभ पहुंचा रहा है तो वह झोलाछाप डॉक्टर ही है जो बहुत बड़े भीड़ को अस्पताल आने से पहले रोक देते हैं, यदि वह भीड़ अस्पताल पहुंचेगी तो अस्पताल उस भीड़ को संभालने के लिए तैयार नहीं होगा, सरकारी डॉक्टरों की स्थिति यह है कि वह सिर्फ वेतन अच्छा खासा लेते हैं पर उस वेतन के एवज में उनकी जो जिम्मेदारी है उसका पूरा लाभ ग्रामीणों को नही मिल पाता वे अपनी सुविधाओं के लिए हड़ताल पर जाते हैं, सरकार पर दबाव बनाते हैं पर वही उनके हड़ताल पर जाने के बाद जो दिक्कतें आती हैं उसे भी झोलाछाप डॉक्टर ही संभाल कर रखते हैं, क्योंकि वही एक ऐसा वर्ग है जो घूम घूम कर ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराता है भले से ही उसके एवज पैसा लेता है, पर ग्रामीणों को भरोसा भी उन्हीं पर है, क्योंकि बड़ी बड़ी इमारत वाले सरकारी अस्पताल में वह उस सुविधा को नहीं पाते हैं, इस पर सरकार को गहन चिंतन करना चाहिए और अस्पताल के कर्मचारी व डॉक्टरों की कार्यशैली को सुधारने के लिए एक नियम कठोर बनना चाहिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए यह तो तैयार रहते हैं पर सरकार के मंशा अनुरूप सुविधा नहीं दे पाते हैं।
ऐसी कहानियां क्षेत्र के ग्रामीण अंचल की हैं…
आज के आधुनिक जमाने में भी और सरकार की सुख सुविधा वाले स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच भी हम वह तस्वीर देख रहे हैं जो पूर्व के समय देखा करते थे जिस समय यह सुविधा नहीं थी,एक मामला है तबियत खराब थी,बच्चा पूरा दिन उल्टी करता रहा, सरकारी अस्पताल 22 किलोमीटर दूर है और वहां कोई नहीं मिलता, गांव के फलाने भैया को बुलाया, उन्होंने दो इंजेक्शन लगा दिए,शाम तक बच्चा ठीक लगने लगा, यह ऐसी बहुत सी कहानियां क्षेत्र के ग्रामीण अंचल की हैं दूरस्थ एवं पहुच विहीन क्षेत्रो में चिकित्सा के नाम पर भरोसा किसी एमबीबीएस डॉक्टर पर नहीं,बल्कि ‘झोलाछाप’ कहे जाने वाले नीम-हकीमों पर होता है।
बाजार का खेल,दवा कंपनियों का नया टारगेट
झोलाछाप डॉक्टर फार्मा कंपनियों का एक नया टारगेट हैं. बड़ी कंपनियां गांव के दुकानदारों को सेल्समैन बनाकर मुनाफा कमा रही हैं, दवाएं बिना प्रिस्कि्रप्शन के बिकती हैं, और कुछ ब्रांड्स तो खासतौर पर झोलाछापों के लिए बनाए जाते हैं।
झोलाछापों की दुनिया,अवैध लेकिन ज़रूरी?
इन झोलाछापों में से कई आयुर्वेद, यूनानी की डिग्रीधारी होते हैं. कुछ ने किसी नर्सिंग होम में साल-दो साल काम कर लिया, वहीं से सीखा, सरकारी दृष्टिकोण से वे अवैध हैं, लेकिन सामाजिक यथार्थ यह है कि उनकी सेवाएं ही गांव के लिए जीवनरेखा हैं।
क्या है विकल्प?
स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत की जाए पीएचसी/सीएचसी को दवा, डॉक्टर और सुविधाओं से लैस किया जाए. गांवों में 24म7 प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों,झोलाछापों को प्रशिक्षित किया जाए,स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त कोर्स कराकर इन्हें कम-जोखिम बीमारियों के इलाज की वैधता देने पर विचार कर सकती है।
झोलाछाप डॉक्टर एक ज़रूरत, या फर एक चुनौती?
झोलाछाप डॉक्टर कोई समाधान नहीं हैं,लेकिन वे उस विफलता की परछाईं हैं,जो ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र की हकीकत को उजागर करती है,जब कोई डॉक्टर नहीं होता, तब एक नीम-हकीम ही देवता बन जाता है,अगर गांवों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं चाहिए,तो सिर्फ झोलाछापों पर कार्रवाई करने से कुछ नहीं होगा, ज़रूरत है एक मजबूत, ज़मीनी और संवेदनशील स्वास्थ्य नीति की जो शहरों से नहीं, गांवों से शुरू हो।
क्या 3 लाख की जनसंख्या में 4 सौ बेड काफी हैं?
कोरिया जिले के कुल अस्पतालों की बेड संख्या महज 4 से 5 सौ के बीच है जबकि जिले की जनसंख्या लगभग 3 लाख 18 हजार के आस पास है ऐसे में यदि जिले की कुल जनसंख्या का 1 प्रतिशत या 1 प्रतिशत का भी आधा यानी दशमलव 5 प्रतिशत लोगो की भी यदि तबियत खराब होती है और वो अस्पताल में एडमिट होते हैं तो मरीजों की संख्या लगभग 1600 होती है जबकि बेड की संख्या महज चार से पांच सौ ही है , जबकि पूरे क्षेत्र में इन दिनों वायरल फीवर और सर्दी खांसी का प्रकोप फैला है वही एन एच एम के कर्मचारी हड़ताल पर हैं ऐसे में जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था झोलाछाप और स्थानीय मेडिकल स्टोरों ने सम्भाल रखी है यह कहे तो अतिशयोक्ति नही होगी।
झोलाछाप क्यों हैं ज़रूरी? एक बड़ी विडंबना
एक तरफ सरकार इन्हें गैर-कानूनी घोषित करती है, दूसरी तरफ ये डॉक्टर ग्रामीणों की एकमात्र सहारा हैं. एक बुजुर्ग बताते हैं हमको अस्पताल जाना है तो रोज़ी-रोटी छोड़नी पड़ेगी, बस का किराया, दवा, और लाइन में लगकर खड़े रहो, लेकिन झोलाछाप डॉक्टर आएंगे घर पर, तुरंत दवा देंगे, 50-100 में काम हो जाएगा।
बड़ी बीमारियों का गलत इलाज, खतरनाक खेल
यह भरोसा कई बार जानलेवा भी बनता है जिले में कई बार ऐसे मामले भी आये है जिसमे गांव में इलाज में झोलाछाप ने गलत इंजेक्शन दे दिया, जिससे मरीज की स्थिति बेहद खराब हो गई परिजनों ने केस भी नहीं किया, क्योंकि ‘डॉक्टर’ तो गांव का अपना ही था। डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत मे काफी मात्रा में चिकित्सा सेवाएं अनियमित या अप्रमाणित स्त्रोतों से ली जाती हैं, ग्रामीण इलाकों में यह संख्या बहुत अधिक होती है।
क्या झोलाछाप डॉक्टर:गांव की पहली और आखिरी उम्मीद?
जिले के दूरस्थ एवं ग्रामीण वानांचल में जो व्यक्ति इंजेक्शन लगा देता है उसे लोग डॉक्टर साहब कहते हैं. वे किसी मेडिकल कॉलेज से नहीं पढ़े, न ही उनके पास कोई प्रमाणित डिग्री है, लेकिन 15 वर्षों से बुखार, उल्टी, डायरिया से लेकर मलेरिया तक का इलाज कर रहे हैं. पूछने पर वे कहते हैं,हमारे पास अनुभव है, गांवों में ऐसे झोलाछाप ‘डॉक्टरों’ की संख्या बहुत है, वे अक्सर किराए की दुकानों या अपने घर के बरामदे में ‘क्लिनिक’ चलाते हैं, उनके पास कुछ सिरिंज, टेबलेट्स, कुछ टॉनिक की शीशियां और सबसे अहम तुरंत इलाज का भरोसा होता है।
सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की अनुपस्थिति
मीडिया सूत्रों के हवाले से राष्ट्र्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, भारत में लगभग 40 प्रतिशत ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है,कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिलों का है जिसमे हमारा कोरिया एमसीबी जिला भी शामिल है।
लगभग 7 लाख की जनसंख्या पर 200 से भी कम डाक्टर
कोरिया जिले की जनसंख्या की बात करें तो 2011 की जनगणना अनुसार अविभाजित कोरिया जिले कि कुल जनसंख्या 6 लाख 65 हजार थी जिला विभाजन उपरांत कोरिया जिले की जनसंख्या लगभग 3 लाख 18 हजार है बाकि एमसीबी की जनसंख्या है, मतलब कोरिया एमसीबी की पूरी जनसंख्या की बात करे तो आज 7 लाख से अधिक है, वही जिले में डॉक्टरों की संख्या पर गौर किया जाए तो जिले के सरकारी अस्पतालों में एमबीबीएस लगभग 100 से 150 डॉक्टर उपलब्ध है जिसमे बांड पर कार्य कर रहे डॉक्टरों के अलावा विशेषज्ञ भी शामिल है वही सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार आयुर्वेदिक चिकित्सक बीएएमएस जो अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं उनकी संख्या भी 30 से 35 के ही आस पास है। कुल मिलाकर बात टोटल आकड़ो पर गौर किया जाए तो जिले के सभी प्राथमिक सामुदायिक और जिला अस्पताल सहित शहरी स्वास्थ्य केंद्रों को मिला कर कुल चिकित्सको की संख्या 150 से कम ही है।
जिले के अस्पतालों की संख्या और स्थिति

प्रदेश के कोरिया जिले में लगभग 10 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है जिनमे 2 शहरी स्वस्थ्य केंद्र भी शामिल हैं, वहीं 3 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जिसमे सोनहत पटना और रामगढ़ शामिल हैं और एक जिला अस्पताल है, जिले अधिकांस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एम बी बी एस डॉक्टर उपलब्ध नही हैं और जहां हैं भी तो बांड वाले चिक्तिसक उपलब्ध है जो पूर्णतः स्थायी नही है। इस प्रकार 10 पीएचसी 3 सी एच सी और 1 जिला अस्पताल मिला कर लगभग 75 के आसपास एमबीबीएस डॉक्टर उपलब्ध हैं और 8 से 10 आयुष चिकित्सक उपलब्ध हैं। वही उक्त उक्त अस्पतालों की बेड संख्या पर गौर करें तो सभी पीएच से में शासन स्तर से 10 बेड की स्वीकृति है और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 30 बेड की स्वीकृति है जबकि जिला अस्पताल में 100 बेड स्वीकृत है हालांकि सभी अस्पतालों में मरीजों की सुविधा के अनुरूप बेड की संख्या स्वीकृत बेड की संख्या के विरुद्घ बढ़ा दी गई है। इस आधार पर देखा जाए तो लगभग 300 बेड के आस पास पूरे जिले के अस्पतालों की व्यवस्था शासन स्तर से स्वीकृत है लेकिन फिर भी स्थानीय स्तर पर प्रभारियों ने मरीजों को बेड मिल सके इस लिए बेड बढ़ा रखे हैं जिसके बाद माना जाए तो लगभग 4 सौ से अधिक मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था उपलब्ध है। जबकि एम सी बी जिले में गौर करें तो जनकपुर ब्लॉक में एक समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 100 बेड के अलावा, प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्र बहरासी,माड़ीसरई,भरतपुर कुँवरपुर कोटाडोल सभी 1 लगभग 10 बिस्तरीय हैं वही सामुदायिक स्वस्थ्य केंद्र रतनपुर, खड़गवां, सलका उधनापुर 30 बिस्तरीय उधनापुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा मनेन्द्रगढ़ सिविल अस्पताल और जिला अस्पताल चिरमिरी हैं, कुल मिलाकर एम सी बी जिले के अस्पतालों में लगभग 5 सौ बेड की व्यवस्था उपलब्ध है जिसमे लगभग 100 के आस पास चिकित्सक सेवा प्रदान करने में जुटे हैं


Share

Check Also

अंबिकापुर@गणपति स्थापना समिति:जागृति नव युवक मंडल ने जीता प्रथम पुरस्कार

Share अंबिकापुर,14 सितम्बर 2025 (घटती-घटना)। बाल गंगाधर तिलक गणपति स्थापना समिति,अंबिकापुर द्वारा प्रतिवर्ष की तरह …

Leave a Reply