
कालचक्र का अविराम गतिमान रहना ही उसकी नियति है। उसकी परिधि अपरिमित है और अपरिमेय भी। समय के नियम-अनुशासन से आबद्ध प्रकृति में कालानुकुल परिवर्तन स्वाभाविक है और सुनियोजित भी, क्योंकि जागतिक कार्य-व्यवहार के लिए यह आवश्यक है। यह प्रकृति की सृष्टि संचालन की अपनी व्यवस्था एवं शैली है। यह व्यवस्था जीव-जंतुओं, वनस्पतियों, भूमि,जल,मरुस्थल,गिरि-कानन,पठार-मैदान,सागर-सरोवर, नदी-ग्लेसियर, कृषि-वानिकी इत्यादिक की जीवनचर्या के लिए उचित है और उत्तम भी,किंतु अविवेकी मानव जब अपनी अभीप्सा की पूर्ति के लिए इस गतिमान व्यवस्था में हस्तक्षेप करता है तो उत्पन्न क्षोम एवं विकार संकट के रूप में उपस्थित हो हाहाकार मचाता है। मानव मन की कुत्सित शोषण प्रवृत्ति एवं लोभी दृष्टि का परिणाम सृष्टि में विपर्यय पैदा कर अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सुनामी, बादल फटने, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के रूप में प्रकट होता है। यह प्राकृतिक संकट मानवीय विस्थापन एवं शरणार्थी समस्या का रूप धर प्रदेश और देशों की सीमाओं को लांघता-फांदता है। जब किन्हीं दो या अधिक देशों के मध्य सीमा विवाद, दूसरे देश की वन-खनिज सम्पदा पर बलात् अधिकार करने या आतंकी हमले करवाने के कारण युद्ध की स्थितियां बनती हैं तो मानवता पर संकट का काला धुंआ मंडराने लगता है। युद्ध गरिमामय मानवीय जीवन के लिए कलंक हैं, अभिशाप हैं। वर्षों-वर्षों तक युद्धरत देशों की भूमि बम-बारूद के विस्फोट के ताप को सहती चीत्कार करती है, वायु में घुला जहर नागरिकों के फेफड़े छलनी करता है। भूमि बंजर हो रुदन करती है। संकट के इस भयावह कालखंड में पशु, पक्षी,मनुष्य बेहाल तड़पते हैं, जिन्हें सामान्य जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक भोजन,जल,नींद, शिक्षा,स्वास्थ्य सुलभ नहीं होता। ऐसे संकट काल में देवदूत बन सम्मुख उपस्थित होते हैं मानवतावादी राहत कर्मी एवं बचाव दल। क्षेत्र, रंग, नस्ल, मजहब, भाषा के तमाम विभेदों से परे ये राहत कर्मी अपने प्राणों की चिंता किए बिना अहोरात्र पीडç¸त मानवता की सेवा-साधना में जुटे रहते हैं ताकि उनके चेहरों पर खुशियों का उजाला चमकता रहे। परंतु यह सेवा-पथ इतना सरल नहीं है, जितना दिखने-सुनने में सहसा लगता है। आतंक,अराजकता और अशांति के पक्षधर इनकी राह में कंटक बन उभरते हैं, क्योंकि राहत कर्मियों के दल उनके नापाक मंसूबों पर पानी फेरते दिखाई देते हैं। परिणामत: राहत कर्मियों के ऊपर जानलेवा हमले, अपहरण और स्थान छोड़ चले जाने की धमकियां। जबकि अंतरराष्ट्रीय कानून एवं संधियों के अनुसार बचाव दल एवं राहत कर्मी चिकित्सक,नर्स,रेडक्रास,स्काउट-गाइड आदि संस्थाओं के कार्यकर्ताओं पर हमला नहीं किया जा सकता,बल्कि सुरक्षित रास्ता देने का प्राविधान है। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जारी गत वर्षों के आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष राहत कर्मियों एवं बचाव दल पर औसतन लगभग आठ सौ हमले होते हैं,तीन सौ के लगभग राहत कर्मी सेवा-अनुष्ठान में अपने प्राणों को होम कर देते हैं। बड़ी संख्या में घायल भी होते हैं। बावजूद इसके राहत कर्मी आपदा,विपदा,युद्ध में फंसे विवश कराहते मानव को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए बद्ध परिकर हो सेवा-साधना में जुटे रहते हैं। दवा, भोजन, पानी, राहत कैम्प की व्यवस्था करते हैं। मानवता के ध्वजवाहक ऐसे राहत कर्मियों का सम्मान करने,वैश्विक समुदाय को संकट प्रबंधन और आपदा राहत के महत्व से परिचित कराने, संकट में फंसे व्यक्तियों की सहायता करने एवं उनके मानवाधिकारों की सुरक्षा करते हुए शांति स्थापना के प्रति जागरूक करने के लिए 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में आयोजित करने हेतु संयुक्त राष्ट्रसंघ ने 2008 में महासभा की बैठक में स्वीडन के प्रस्ताव को स्वीकार कर वैश्विक आयोजनों का आरम्भ किया था। तब से प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में विश्व मानवतावादी दिवस मनाकर जन-जन के हृदय में शांति, सख्य, सेवा का भाव जागरण करने का प्रयत्न रहता है। विश्व मानवतावादी दिवस के आयोजनों के सूत्रपात की पूर्व पीठिका समझना भी आवश्यक है। 1945 में
गठित संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व में शांति एवं अहिंसा के पावन परिवेश की सर्जना में विविध कार्यक्रमों के माध्यम से मानवता के पक्ष में अपनी सेवाएं समर्पित करता है, ताकि प्रत्येक मानव के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। उल्लेखनीय है कि विश्व के किसी भी देश एवं भू-भाग में किसी भी व्यक्ति को जन्म से ही धर्म,लिंग,रंग,राष्ट्रीयता एवं जातीयता आदि भेदों से मुक्त हो गरिमामय मानवीय जीवन जीने,शिक्षा प्राप्त करने, स्वतंत्र वातावरण में रहने, मनोभावों को निर्भय हो अभिव्यक्ति करने, जीविका हेतु काम करने, रुचि आधारित धर्म-मजहब पालन करने तथा समानता के साथ व्यवहार किये जाने के मानव अधिकारों की प्राप्ति है। किंतु प्राकृतिक आपदाओं और मानवजनित युद्धादि संकट काल में व्यक्ति के मानव अधिकारों का हनन होता है। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्रसंघ की विभिन्न संस्थाओं द्वारा तथा स्थानीय स्तर पर वैयक्तिक एवं सामूहिक प्रयास राहत एवं बचाव के रूप में किये जाते हैं। बचाव कार्य के दौरान राहत कर्मी भी हताहत होते हैं, कुछ स्वाभाविक प्राकृतिक आपदा का शिकार बन जाते हैं तो कुछ आतंकियों के हमलों में जान गंवाते हैं। वर्ष 2003 में इराक के बगदाद में स्थित संयुक्त राष्ट्रसंघ के क्षेत्रीय मुख्यालय में 19 अगस्त को किये गये आतंकी हमले में 22 व्यक्ति मारे गये थे, जिनमें 17 राहत कर्मी थे। हृदय झकझोरने वाली उस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। और तब, महासभा की बैठक में स्वीडन के प्रस्ताव पर 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में मनाने की संयुक्त राष्ट्रसंघ की मुहर लगी। तब से हरेक वर्ष थीम आधारित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ताकि आमजन भी राहत कर्मियों के त्याग, बलिदान, निःस्वार्थ सेवा को स्मरण कर उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का प्रदर्शित कर सकें। आज के दिन छोटे-बड़े सरकारी एवं गैर-सरकारी आयोजनों के माध्यम से हम न केवल जागरूकता का पावन प्रकाश बिखेर पाएंगे, बल्कि आमजन अज्ञात राहत कर्मी नायकों के योगदान से परिचित-प्रेरित हो सेवा हेतु स्वयं को प्रस्तुत भी कर सकेंगे। इसके लिए वाद-विवाद, भाषण, कविता एवं निबंध लेखन, चित्रकला, प्रश्नोत्तरी तथा संवाद-परिचर्चा आयोजित कर सकते हैं। कह सकते हैं,विश्व मानवतावादी दिवस संकट काल में साथ खड़े राहत कर्मियों की जिजीविषा, मानवीय भावना एवं उच्च आदर्शों के स्मरण का दिन है। हम राहत कर्मियों के अतुल्य योगदान के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं।
प्रमोद दीक्षित मलय
बांदा, उत्तरप्रदेश