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कविता @ बाल श्रमिक…

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आज एक नए युग,
भारत का उदय हो रहा।
देश में बहुत से, बाल
युवा अंधेरों में जी रहा।
अपने जिंदगी तंग आकर, होटल
ढाबा कारखाना में काम कर रहा।
हालात और गरीबी से मजबूर,
श्रमिकों के समक्ष गहरा रहा।
जिनके हाथों में कलम किताब,
वो मजदूरी दिहाड़ी कर रहा।
बच्चे देश का निर्माण भविष्य,
भारत का संविधान भी कह रहा।
गरीबी की खातिर पेट के लिए,
दो वक्त रोटी कमाने निकल रहा।
पढ़ने लिखने खेलने कूदने के
दिनों में, ईट के भट्ठों में तप रहा।
मां के ममता का साया, पिता का दुलारा,
मेहनत मजदूरी से कीचड़ में लिपट रहा।
पढ़ेंगा लिखेगा आगे बढ़ेगा कामयाबी गढ़ेगा,
जन-जन में यह नारा लग रहा ।
जिनके नादान पग, कोमल हाथों पे,
जिंदगी की पीड़ा से मजदूरी कर रहा
अभागा बचपन, नम नयनों की धारा,
बाल श्रमिक दुखों का गाना गा रहा।


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