- समिति प्रबंधक ने हमाली राशि का पैसा धान खरीदी प्रभारी के खाते में डाला,उन्होंने उस पैसे को 25 हमालियों के खाते में डाला…क्या 25 हमाली उस पैसे को निकाल कर प्रभारी विवेक को वापस दिया?
- हमाली राशि किसानों की तरफ से मजदूरों की मेहनताना राशि है…पर क्या इस राशि का मजा समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रभारी लेता है?
- प्रत्येक समिति में होने चाहिए पंजीकृत हमाल,जो करें किसानों का काम और शासन से लें भुगतान
- पूरे प्रदेश के समितियों में हमाली राशि का गबन बहुत बड़ा मामला
- हमाली राशि किसानों की तरफ से मजदूरों की मेहनताना राशि है…पर क्या इस राशि का मजा समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रभारी लेता है?


-ओंकार पाण्डेय-
सूरजपुर,07 जून 2025 (घटती-घटना)। सरकार समर्थन मूल्य पर किसानों को समृद्ध बनाने के लिए धान खरीदी करती है,ताकि किसान अधिक से अधिक खेती कर सके, और फसल का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें। यही वजह है कि छाीसगढ़ में धान की खेती बहुत अधिक होती है, क्योंकि सरकार एमएसपी राशि के साथ बोनस राशि देकर किसानों को प्रोत्साहित करती है, कि किसान अपने सभी जमीनों पर धान की फसल लगाए, और सरकार उनकी फसल से उपजे धान को हर साल खरीदती है। छाीसगढ़ में भाजपा सरकार इस समय किसानों का धान 3100 रूपए प्रति मि्ंटल खरीद रही है और किसान धान बेच भी रहे,पर धान खरीदी केंद्रों में हर साल सरकार को बहुत नुकसान भी होता है, वह नुकसान कहीं ना कहीं किसानों के धान को तोलवाने,उठाने में जो मजदूर लगते हैं उस राशि को जिसे हमाली के नाम से लोग जानते हैं, सिर्फ यह राशि आती है यह सब जानते हैं पर इस राशि का लाभ किसे मिलता है यह लोग नहीं जानते,यह राशि वास्तव में तो आता किसानों के लिए ताकि किसानों को अपने धान को उठाने,तोलवाने में मजदूर ना लगे,वह मजदूर समिति या धान खरीदी केंद्र में व्यवस्था की जाती है,और उस मजदूरों के लिए हमाली की राशि हर समिति व धान खरीदी केंद्र को दिया जाता है,ताकि किसानों पर आर्थिक बोझ ना बने। पर वह जो सरकार हमाली राशि देती है उस राशि का का लाभ सिर्फ समिति प्रबंधक व धान खरीदी केंद्र प्रभारियों को होता है,ना तो वह पैसा मजदूरों का मिलता है और ना ही वह पैसा किसानों को मिलता है। किसान अपनी मजदूरी, मजदूर को दे देते हैं और हमाली की राशि कोई और डकार जाता है।
यह बात इसलिए सत्य मानी जा रही है क्योंकि यह लड़ाई अभी सूरजपुर के सोनपुर धान खरीदी केंद्र से शुरू हुई है। जिस पर पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों सहित लोगों की नजर है, यहां पर लड़ाई हमाली राशि के भुगतान को लेकर हैं,जहां एक तरफ किसना का कहना है कि हम मजदूर को अपने धान तोलवाने चढ़वाने,सिलवाने के लिए मजदूरी देते हैं, तब वह मजदूर काम करते हैं। वहीं समिति कहता है कि हम मजदूर को वह पैसे दे रहे हैं,तब वह किसान का काम कर रहे हैं। किसानों से कोई पैसा नहीं लिया जा रहा, पर वही मजदूरों का कहना है कि हमाली की राशि उन्हें समिति नहीं दे रही है और मजदूर समिति से उम्मीद भी नहीं रखते हैं,क्योंकि वह तत्काल किसान से यह राशि प्राप्त कर लेते हैं पर इस बार पैसे हजम करने की लड़ाई ने पूरी पोल पट्टी ही खोल कर रख दी है। सोनपुर धान खरीदी केंद्र में किसानों ने कलेक्टर सूरजपुर को शिकायत किया है कि हमाली राशि किसान मजदूरों को तत्काल भुगतान कर देते हैं,इसलिए उस पैसे को किसान के खाते में दिया जाए,पर वही हमाली मजदूर का कहना है कि यह राशि हमें मिलती ही नहीं है,इसीलिए यह पैसा हमारे खाते में दिया जाए। सोनपुर धान खरीदी केंद्र प्रभारी ने सिर्फ 25 नाम को चुना है,और कहा है कि इन्हें ही हमाली राशि मिली है,जबकि उस समिति के बाकी को कहना है कि हमें भी राशि नहीं मिली है। उस समिति में तकरीबन 100 से 150 मजदूर है पर धान खरीदी प्रभारी ने सिफऱ् 25 मजदूरों को ही भुगतान किया है फिर बाकी मजदूरों का भुगतान कौन करेगा? यह पर एक भी पंजीकृत हमाल नहीं है फिर भी 25 हमाल को भुकतान कैसे हुआ?
समिति प्रबंधक ने हमाली राशि को धान खरीदी प्रभारी के निजी खाते में किया ट्रांसफर
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकारी राशि का बंदरबांट समितियों में हो रहा है। धान खरीदी सोनपुर प्रभारी विवेक के द्वारा समिति प्रबंधक सतेश्वर से 25 हमालियों की मजदूरी भुगतान करने की मांग की जा रही थी, जिस पर सतेश्वर ने विवेक के खाते में 25 हमालियों की राशि लगभग 6 लाख 20 हजार ट्रांसफर कर दी,वह भी उनके निजी खाता में। जबकि शासकीय पैसा निजी खाता में ट्रांसफर नहीं होना चाहिए था, कायदे से यह पैसा सीधे हमाल के खाते में डीबीटी के माध्यम से होना चाहिए था। वहीं पैसा मिलने के बाद धान खरीदी प्रभारी विवेक ने उस पैसे को अपने निजी खाता से 25 हमालियों के खाते में ट्रांसफर कर दिया, अब सवाल यह उठता है कि क्या यह सब जो हुआ वह नियम से सही है या फिर गलत? क्या इसकी जांच सहकारिता विभाग के उच्च अधिकारी कर पाएंगे या फिर उन्हीं के शह व दबाव में यह सब चल रहा है।
क्या सिर्फ 25 मजदूरों के खाते में दिखावे के लिए गया पैसा,बाकी फिर वापस निकाल कर कैश में आया धान खरीदी प्रभारी के पास?
सूत्रों का एक बहुत बड़ा दावा है वह दावा कहीं ना कहीं सच्चाई पर मोहर भी लगाता है। सूत्रों का कहना है कि किसान व मजदूर दोनों हमाली राशि पर अपना हक बता रहे हैं,पर समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रबंधक उस पैसे पर अपना ही हक जाता रहे, इस का लाभ सिर्फ समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रभारी को हुआ। धान खरीदी केंद्र में हमाली राशि भेजने का उद्देश्य है कि किसानों को लाभ हो सके। यह पैसा पूरे छत्तीसगढ़ के धान खरीदी केंद्र में आता है, पर यह पैसा सिर्फ किसी को लाभ पहुंचाता है तो वह है समिति प्रबंधक व धान खरीदी केंद्र प्रभारियों को। इसके अलावा भी एक बहुत बड़ा भ्रष्टाचार होता है वह है एक्सेस धान खरीदी का। यानी कि किसान का खाता जितना है उतना धान वह बेच नहीं पाते हैं,पर उनके बचे खाते में समिति के लोग ही बाहर का धान बेचते हैं। और तो और,राइस मिलों के मिली भगत से किसानों के बकाया खातों में फर्जी धान चढ़ाकर खरीदी दर्शा दी जाती है। और राशि का आहरण किसानों को दबाव देकर कर लिया जाता है। यह तो एक अलग तरह का भ्रष्टाचार है,पर अभी जो बात हो रहा है वह सिर्फ हमाली यानी की मजदूरी राशि का बात हो रहा है। सोनपुर धान खरीदी केंद्र में डेढ़ सौ के लगभग मजदूर हैं, और वह मजदूर जो राशि उन्हें सरकार से मिलती है उसे राशि पर काम नहीं करते हैं,क्योंकि वह राशि उन्हें कम लगती है। इसलिए वह किसानों से ही पैसा लेते हैं,और उनका धान तौलते हैं,सिलते हैं और धान के चट्टा पर चढ़ाते हैं। किसान भी अपने धान को बेचने के लिए इसका भुगतान कर देते हैं, पर जो राशि किसानों की मजदूरी को बचाने के लिए आती है, उस राशि का भोग तो वहां के कर्मचारी करते हैं। इस बार कर्मचारियों की लड़ाई में यह बात तो साफ हो गई कि वह पैसा सिर्फ आता मजदूरों के लिए है,पर उसको खाता कोई और है। इस बार सतेश्वर समिति प्रबंधक से धान खरीदी केंद्र प्रभारी विवेक के द्वारा 25 मजदूरों की राशि अपने खाते में ले ली जाती है,लेने के बाद उस पैसे को 25 मजदूर में ट्रांसफर कर दिया जाता है,फिर उन 25 मजदूरों से कैश में पैसा वापस ले लिया जाता है। यही असली सच्चाई थी,जिस पैसे के लिए लड़ाई थी अब यह लड़ाई पैसे मिलते के साथ ही खत्म हो गई है। पर इस लड़ाई में पूरे नियम कायदे कानून के धज्जी उड़ाई गई है। पर उसके बावजूद भी अधिकारी आंख में पट्टी बांधे हैं और कान में रुई डाले बैठे हैं।
फिर आने वाला है धान खरीदी का समय, अब हमाली राशि का भुगतान का सिस्टम बदलेगा या फिर पुराने ही ढर्रे पर चलेगा
कुछ महीने बाद फिर से धान खरीदी केंद्र में धान खरीदी होगी,जो तय है पर इस बार सोनपुर धान खरीदी केंद्र से जो समस्या उठी है,यह समस्या पूरे संभाग में ना हो,इसके लिए क्या सहकारिता विभाग नई रूपरेखा बनाएगा? क्या हमाली की राशि किसानों के खाते में दी जाएगी। क्योंकि किसान मजदूर का भुगतान स्वयं नगद करते हैं,नहीं तो मजदूर उस किसान का काम नहीं करते हैं। जबकि मजदूरी भुगतान के लिए समिति प्रबंधक धान खरीदी केंद्र प्रबंधन की जिम्मेदारी है,पर वह भी अपने सामने किसानों को पैसा मजदूरों को देते हुए देखते हैं,और वह चाहते भी हैं कि मजदूरों का भुगतान किसान कर दे। और मजदूर अपनी मजदूरी के लिए समिति के पास ना आए,और जो पैसा समिति में आया है वह पैसा उनके नाम पर समिति प्रबंधक व धान खरीदी केंद्र प्रभारी हजम कर जाए, जो इस बार हुआ भी। पर इस बार किसानों की मांग है कि वह पैसा किसानों के खाते में सीधा धान खरीदी के पैसे के साथ दे दिया जाए, ताकि चिक चिक वाली स्थिति ना बनी रहे। क्योंकि वह पैसा हकीकत में किसान का पैसा है, जिस पर भ्रष्टाचार करना वहां के लोगों का अधिकार हो गया है। यदि यह स्थिति पूरे प्रदेश में बदलता है,तो भ्रष्टाचार भी कम होगा और किसानों को मिलने वाली मजदूरी राशि का लाभ मिलेगा।
सोनपुर का मसला जल्दी सुलझे, यही चाह रहे पूरे संभाग के समिति प्रबंधक व धान खरीदी केंद्र प्रभारी…इनकी वजह से कहीं सभी को ना हो जाए नुकसान
आदिम जाति सेवा सहकारी समितियों का हाल किसी से छुपा नहीं है, ना तो वहां स्थाई कर्मचारी हैं,ना ही जवाब देह व्यक्ति। इसीलिए समितियां में भ्रष्टाचार अपने चरम पर होता है। ऊपर से नीचे तक पूरा सिस्टम आपस में मिला हुआ है,और शासकीय राशि का बंदरबांट लोग अपना हक समझने लगते हैं। इसका खुलासा ना हो,किसान जागरूक न हो,इसके लिए तरह-तरह के प्रपंच रखे जाते हैं। और यही कारण है कि सोनपुर समिति का मामला भी धीरे से निपट जाए, ताकि इस मामले का हलचल पूरे संभाग और प्रदेश में ना हो, इसका इंतजार अधिकांश समिति प्रबंधक,धान प्रभारी कर रहे हैं। यदि मामले में ज्यादा तुल पकड़ा और आने वाले समय में किसान अपने जायज हक के लिए खड़े हो गए, तो करोड़ों की राशि का बंदरबांट होना आसान नहीं रह जाएगा।
सहकारिता विभाग के अधिकारी भी क्या दबाव देकर निजी खाते में ट्रांसफर करवाया पैसा ताकि सुलझ जाए मामला?
सोनपुर धान खरीदी केंद्र का मामला सामने आने के बाद और किसानों द्वारा अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए सामने आने की स्थिति में समिति में कार्यरत कर्मचारी के अलावा उच्च अधिकारी भी संभवत मामले को दबाने के लिए सहकारिता विभाग के अधिकारी भी इस मामले में जुड़ गए हैं। और दबाव देकर सेटिंग द्वारा 25 व्यक्तियों के खाते में हमाली राशि का भुगतान का दिखावा किया जा रहा है, ताकि और आवाज बुलंद होने ना पाए और मामला सुलझ जाए। लेकिन हंगामा के बीच लोग इतना तो जरूर समझ रहे हैं कि केवल 25 व्यक्तियों के खाते में ट्रांसफर किए गए पैसे, एक दिखावा और ढोंग है। आगे जल्द ही इसका खुलासा होगा।