कविता@तेरा सही हो जाना…

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तू जैसा है वैसा क्यों बनाना चाहते हो?
उसे उसी के तरह
अपनाते क्यों नहीं?
होंगे उसमें बहुत से खामियाँ
अनेक अच्छाई भी होंगे
पर खामियों को नजरअंदाज करो
नेक गुणों को देखो
कोई भी व्यक्ति दूसरे की तरह
नही बन पाता है
चाहे उसे कितने भी उदाहरण दे लो
कितना भी समझा लो
पर किसी का व्यक्तित्व सुधरेगा नही
तुम अपनी तरह
सिद्धांतवादी मत बनाओं
हर ठौर में यह काम नही आता
समयानुसार चलना पड़ता है
रास्ता देखकर बदलना पड़ता है
यही तेरा हर जगह सही हो जाना
भी गलत है
वर्तमान समय में नियमानुसार चल पाना
पूर्णतः गफ लत है ।।


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