
आजकल रूढी¸ प्रथा के नाव ले मनखे मनला छोटे जनाय कस लगथे बदलत दिन बादर मा ये प्रथा ला तियागे के बड़ उदिम करे जाथे, आधुनिक दौर मा येला देहाती, उजबक परम्परा कहीके हिनमान कर देथें। हर आदमी ल जानना चाही कि ये प्रथा ल बदले के कोनो उपायच नइ हे, जोन आदि अनन्त काल ले चलत आवत हे। ये मामला मा पढ़े लिखे मन भटक गेहे।
रूढ़ीवादी के अरथ येहर अइसन बिचारधारा,नजरिया आय जेनहर परम्परा के मूल प्रथा मनला अउ समाज ल महत्ता देथे अउ बदलाव ले इनकार करथे। रूढी¸ प्रथा शब्द के परयोग सामाजिक रीति-रिवाज,नेंग-जोग,तस्तूर बेवहार या अपन बिसवास ल देखाए बर करे जाथें। जोनहर पीढ़ी दर पीढ़ी चलतेच आवत हे जेला समाज,समुदाय के सब्बोझन मिलके सबीकार करथें। येहर अधिकांश अबादी मेरन हाबे जेनहर जीवन ला परभावित करथे।
रूढ़ीप्रथा नइ रही ता समाज, गाँव-देहात,देश-बिदेश के पहिचान मेटा जाहि अउ बजारवाद झपा जाहि। पराचीनकाल ले पुरखा मनले चलत आवत सामाजिक,धार्मिक, राजनीतिक प्रथा ला रूढ प्रथा कहीथें। येहर जनम, बिहाव,मरन संसकार के मेन घलोक हे।
सांसकिरतिक अरथ रूढ़ीप्रथा लोक सांसकिरतिक बिरासत रीति-रिवाज अउ परम्परा ला बढ़ाथे,ओहर जन परम्परा ल बटोरथे अउ आगू बढ़ाए के परियास करथे।
धारमिक स्वरूप
अगर सहर कोती ला छोर देय जाय ता रूढी¸प्रथा गाँव देहात समाज म बियाप्त हे। जेन लोक परब मा झलकथे। हर गाँव मा बारा जात के बररगियाँ रइथे। छत्तीसगढ़ के अकती (बीज परीक्षण) तिहार ले लेके होरी तिहार तक मा रूढ़ीप्रथा समाय हे। जिहाँ गाँव मा देवी-देवता के कोनो साछात स्वरूप नजर नइ आवय । बीना हाथ-गोड़,आँखी-कान के देवी-देवता (पराशक्ति) ला मानथें। ओमनला भुइयां मा बिराजे के अधिकार हे,एकर अलावा कोनो दुसर देवी-देवता ल गाँव मा सदा दिन रेहे के कोनो अधिकार नइ हे। सगा-सोदर,पहुना बरोबर आ जा सकत हे।
आजकल परबुधिया मन गाँव के देवी-देवता ल बिगारे के उदिम मा लग गेहे। माता देवाला के तिरसूल-बाना ला टारके मुरती पधारत हें । वइसने साड़हा देव के राहत ले दुसर मुरती ल मानथें। नइ जाने तेन मन कहीथे सबो एकेच आय,अइसन बेवस्था ग्राम संसकिरति म बिकरिती लाय के उदिम आए। जंवारा के जगा बिजली ल नइ बार सकस,ठाकुर देव ल अनाज के जगा मिठई नइ खवाय जाय,घर मा सियान के राहत ले दुसर के मुड़ी मा पागा नइ बाँधे जाय। हमर पुरखामन मुरख नही बिद्वान रिहिन हे जेन गाँव बसाके अनाज उगा सकथें ओमन मुरती तको बना सकत रिहीन हे फेर पाखंड के जाल मा नइ फंसना चाहिस। गाँव के देवता धामी मउखिक विधान मा हे लिखित मा नही। रूढ़ चिन्ह कोनो बिसेस संरचन,बिसेस संकेत आदि आदि ला देखाय बर बनाय जाथे अउ उही बिचार मा रूढ़ (स्थिर) हो जाथे। जइसे सड़क के साइन बोर्ड, संकेतक चिन्ह, अलग अलग नकसा, नदी, तरिया, पेड़,पहार, तिरसूल,धजा,बैरग, खंभा, देव ठाना-बाना। पुरखा के मठ (गुड़ी) अरपन,तरपन,समरपन के भाव । रूढ़ी ताकत येला अहसास करे जा सकत हे जइसे घरसन,हवा, चिपचिपाहट,कठोर अउ नरम,तनाव, खिंचाव,धरती,पानी,आगी,हवा अगास के परभाव ल समझना, मउसम के मुताबिक काम-बुता करना। येकर उदाहरन कोनो तिहार,बर-बिहाव मा बिसेस रीति-रिवाज । (लिंग अधारित) महिला-पुरुष के नेग-जोग,बिसेस परकार के भोजन कुछ इस्थिति मा चीज ला इस्थिर रखना कोनो चीज के नइ होय ले काम ल रोक देना। पर बदलाव नइ करना। मानव के रूढç¸वादी धारना ),दलित मनके बारे मा उच्च जाति के मनमा छाप हे कि दलित मन गंदा,अनपढ़, कमजोर होथे।(2) सब मुसलमान मन आतंकवादी होथे।(3) भले आदिवासी कतरो मानवतावादी शांति पिरिय ब्यक्ति रहाय धारना हे आदिवासी मन जंगल मा रहथे अउ नक्सलाइड बनथें।(4) भगवान मन बावा-जोगी बनके भीख मांगे ल आथे। भगवान के किरपा ले मनखें सुखी-दुखी होथे। (5) लिम्बु-मिर्चा,झाड़ फूंक,करिया टीका लगाए ले कोनो जादू टोना नइ लगे।(6) हुम-धूप, मोमबत्ती, अगरबत्ती, नमस्कार, चमत्कार ले मनखे के जिनगी मा बहार आथे। (7) जाति धरम, वर्ण के अधार ले पद,गद्दी मा बइठारना सामाजिक असमानता ऊंच-नीच भेदभाव करना। निष्कर्ष रूढ़ीवादी प्रथा मा सकारात्मक,नकरात्मक के दूनो भाव छुपे हे ये इस्थान, बेरा बखत मा लागू होथे। जेला इनकार नइ करे जा सके। रूढç¸वादी प्रथा ला जड़ से समापत नइ करे जा सके गाँव-बस्ती, समाज के नीति नियम,बिधी-विधान बिगड़ जाहि आदमी जात ले बेजात हो जाहि,पुरखा के मारग नंदा जाहि आदमी जनम धरे के बाद पशु-पंछी जर्सी गोल्लर कस अजाद हो जाहि। फेर ब्यक्ती के सारवजनिक जीवन बर रूढç¸वादी नइ होना चाहि कोनो ला जाति-धरम,वर्ण,रंग रूप के अधार ले छोटे बड़े नइ मानना चाहि, सासन, परसासन के कारज मा समानता होवय सबो ला बारी-बारी ले गद्दी मा बइठे के अधिकार मिलय । सबो के धरम,संसकिरती के रकछा होवय।।