बस्तर के रिखी का कमाल
भिलाई,12 मई 2025 (ए)। विगत 5 दशक से आदिवासी अंचल के दुर्लभ लोकवाद्यों का संग्रह कर रहे प्रख्यात लोकवाद्य संग्राहक रिखी क्षत्रिय बस्तर के बीजापुर अंचल से देश का सबसे बड़ा ढोल लेकर आए हैं। मरोदा सेक्टर स्थित कुहूकी कला ग्राम में यह विशालकाय ढोल पहुंच चुका है। रिखी क्षत्रिय का कहना है कि अपनी 5 दशक की खोजयात्रा में पहली बार उन्होंने इतना बड़ा ढोल देखा है। बीजापुर जिले के धनोरा ब्लाक के मुसालूर गांव में आयोजित पेन करसाड़ (देव मड़ई) के दौरान उन्हें मुरिया आदिवासी समुदाय के पास यह भोगम ढोल मिला है। रिखी मानते हैं कि लोकवाद्य संग्रह में उन्हें यह बेहद महत्वपूर्ण वाद्य मिला है।
एक क्विंटल वजनी, दो लोग उठाते और बजाते हैं कांवर की तरह
लोक वाद्य संग्राहक रिखी क्षत्रिय ने बताया कि लगभग एक मि्ंटल वजनी भोगम ढोल को सरई बीजा की लकड़ी से बनाया जाता है। इसमें बैल या भैंस का चमड़ा मढ़ा जाता है। इसकी लंबाई 3 फीट है और इसका व्यास 2 फीट का है। रिखी का कहना है कि 3 फीट लंबे लोकवाद्य और भी हो सकते हैं लेकिन 2 फीट व्यास का ढोल देश में कहीं नहीं मिलता है। इस भोगम ढ़ोल को बीजापुर जिले में निवास करने वाले मुरिया आदिवासी अपने जात्रा,करसाड़, शादी-ब्याह,जन्म उत्सव एवं मांगलिक कार्यों में परंपरागत रूप से बजाते आ रहे हैं। लोक वाद्य संग्राहक रिखी क्षत्रिय ने बताया कि बस्तर के आदिवासी अंचल में अप्रैल माह से देव मड़ई शुरू हो जाती है। हाल ही में बीजापुर जिले के धनोरा ब्लॉक में पेन करसाड़ में देव मड़ई का आयोजन हुआ, जिसमें आसपास के ग्रामीण हजारों की तादाद में पहुंचे। यहां ग्रामीण अपने 100 से ज्यादा देवों को सवारी के साथ लेकर आए। रिखी क्षत्रिय का कहना है- यहां दुर्लभ लोकवाद्य की खोज यात्रा के तहत वह भी पहुंचे थे।
