लेख@डॉ होमी भाभा के कारण संभव हुआ परमाणु परीक्षण

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भारत में महान परमाणु वैज्ञानिक डा भाभा की योजना को साकार करने की दिशा में पहला कदम था अप्सरा अनुसंधान रिएक्टर का निर्माण जिसे भारत व यूनाइटेड किंगडम की सहायता से सन 1956 में अप्सरा रिएक्टर क्रांतिक यानी चालु हो गया व यूनाइटेड किंगडम द्वारा आवश्यक ईंधन यूरेनियम की आपूर्ति की गई। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह स्वमिंग पुल रिएक्टर है जिसके उपर से सभी नाभिकीय अभिक्रिया दिखाई देता है ।अप्सरा रिएक्टर के पूरा होने से पहले,साइरस रिएक्टर के निर्माण की योजनाएँ तैयार की गईं। कनाडा के सहयोग से भारत के मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में सन 1955 में साइरस रिएक्टर के निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ इसमें ईंधन व भारी पानी की आपूर्ति में यू.एस. की भागीदारी आई। बाद में भारत में ही रिएक्टर के लिए भारी पानी ड्यूटोरियम,फरवरी 1982 में भारी पानी बोर्ड,परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा बनाए जाने लगा। रेडियो आइसोटोप विकसित करने के अनुसंधान रिएक्टरों की जरूरत होती है जिसमें विखंडित कृत्रिम तत्व से रेडियो आइसोटोप बनाया जाता हे जिससे गामा या अल्फा किरणें निकलती है,गामा किरणों के प्रभाव से कैंसर के सेल को खत्म किया जाता है व इन किरणों के प्रभाव से फसल की पैदावार को बढ़ना व खाद्य पदार्थों को बहुत दिनों तक सुरक्षित रखना इसके अलावा वेल्डिंग त्रुटि को पहचान हेतु औधौगिक रेडियोग्राफी में बहुतायत में उपयोग किया जाता है।जैसे गामा-किरणों के विकिरण में आइसोटोप से उत्सर्जित ऊर्जा कृत्रिम रूप से उत्पादित आइसोटोप का गामा रेडियोग्राफी के क्षेत्र में उपयोग होता हैं। अल्फा एमिटर आइसोटोप का उपयोग पेसमेकर, सैटेलाइट बैटरी,व स्मोक डिटेक्टर में किया जाता है। पोखरण परमाणु परीक्षण 2 को 11,मई 1998 में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा बहुत मेहनत से आयोजित किया गया था। पोखरण 2 का कोड वर्ड (नाम ) ऑपरेशन शक्ति था। यह भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण का दूसरा उदाहरण था। पहला परीक्षण,के कोड-का नाम स्माइलिंग बुद्धा मई 1974 में आयोजित किया गया था। इसमें सिर्फ अनियंत्रित नाभिकीय विखंडन के द्वारा किया गया एटम बम का परिक्षण किया गया था लेकिन 11मई,1998 को किए गए परमाणु परीक्षण उससे कहीं और ज्यादा शक्तिशाली था व जिसे हाईड्रोजन बम के नाम से भी जाना जाता है।जब एनपीटी की घोषणा 1970 में हुई थी अब तक 187 देशों ने इस पर साइन किए । इस पर साइन करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते हैं। हालांकि,वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी करती हैं अतः भारत में उस समय स्व इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी उन्होंने देश की रक्षा के लिए परमाणु अस्त्र बनाने की इजाजत दी थी लेकिन अमेरिका के प्रतिबंध लगाने से परीक्षण करने में असमर्थ हो गयीं तब परमाणु वैज्ञानिकों ने अमेरिका को एक ऑफर दिया कि बहुत ही कम लागत में तारापुर में परमाणु बिजली घर लगाकर बिजली पैदा कर अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है क्योंकि परमाणु संयंत्र के बनाने में जुटी वैज्ञानिकों की टीम को ज्यादा समय नहीं लगेगा इस पर अमेरिका सहमत हो गया और परमाणु बिजली घर के परियोजना को मंजूरी दे दी लेकिन कुछ साल बाद जब उसमें बहुत से यंत्र लगाकर कमिशन करना था तो उसे वैज्ञानिकों के अनुसार रणनीति बनाई गई और जब अमेरिका ने संयंत्र को न चलाने की वजह पुछी तो उन्होंने बताया कि उसे चलाने के लिए नाभिकीय ईंधन की जरूरत है और आपने नाभिकीय ईंधन देने पर बैन लगा दिया है अतः अमेरिका ने संयंत्र को चलाने के लिए भारत के लिए उस प्रतिबंध को हटा दिया व तारापुर परमाणु बिजली घर के लिए युरेनियम 238,जो नाभिकीय ईंधन के काम आता है को प्रदान कराया गया और परमाणु बिजली घर चालू हुआ इसके बाद भुक्तशेष परमाणु ईंधन को जमा किया गया जो पुनः परमाणु ईंधन के लिए उपयुक्त होता है लेकिन उसका (-235) का संवर्धन 20 प्रतिशत के आस पास रहता है और इसी ईंधन को परमाणु शस्त्र का पदार्थ मानकर 1974 में पोखरन में परमाणु परीक्षण किया गया लेकिन वो उतना कारगर साबित नहीं हुआ इस परीक्षण के बाद अमेरिका ने संयंत्र पर कड़ी निगरानी रखी व इसके लिए सैटेलाइट लगा दिया गया लेकिन इस कार्यक्रम को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसे आगे बढ़ाने को भारतीय परमाणु वैज्ञानिकों से कहा,बाद में युरेनियम को और संवर्धित कर परमाणु परीक्षण की योजना बनाई गई। पोखरण परमाणु परीक्षण के लिए हमारे वैज्ञानिकों को तैयारी करने और पूर्वाभ्यास करने के लिए दिन रात जुटे रहें सिर्फ डेढ़ साल का समय मिला था। इस मिशन की गोपनीयता को बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता थी। सन 1997 तक भारत परमाणु परीक्षण को लेकर इसे पुनः परीक्षण के लिए भारत के मशहुर वैज्ञानिक डॉ एपीजे कलाम व डॉ आर चितंबरम इसे कई बार उस समय के सरकार के पास जाकर उन्हें जानकारी दी थी लेकिन सीटीबीटी व अमेरिका व अन्य देशों के डर के कारण रोक दिया गया था जब 1998 में स्व पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की सरकार आई तो इसका नेतृत्व करते महान भारतीय वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को पुरी छुट दी उन्होंने कहा आप सभी वैज्ञानिक जब चाहें तब करें मुझे ऐ मत बताइए कब करना है उन्होंने साफ कहा कि पार्टी रहे या नहीं रहे इसकी चिंता नहीं है देश सर्वोपरि है अतः आप जैसे चाहे वैसे करें देश की रक्षा सर्वोपरि है इसके लिए देश के पास परमाणु अस्त्र जरुरी है इसकी भनक अमेरिका को लगी इसके लिए अमेरिका ने नासा में उस समय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को बुलाया और निदेशक पद का ऑफर दिया स्व डॉ कलाम सर ने उन्हें मना तो नहीं किया लेकिन यह मामला फंस गया बने या न बने उन्होंने इसलिए ऐसा किया क्योंकि वो जानते थे मेरे लिए देश सर्वोपरि है और मैं अकेला हूं अतः वो वहां जाकर ऐ जान गए कि भारत के परमाणु परीक्षण को लेकर अमेरिका ने सैटेलाइट लगा दिया है अतः भारत आने के बाद उन्होंने इस कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार की उन्होंने परमाणु परीक्षण से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को बताया कि यहां सैन्य अभ्यास की तैयारी कर उस मिशन को पूरा करने की कोशिश की जाए व यह काम सैटेलाइट जाने के ठीक ढ़ेड (1.5) घंटे के पहले ही करना होगा बाद में इसकी खबर पाकिस्तान के गुप्तचरों ने अमेरिका को बता दिया और अमेरिका ने सैटेलाइट घुमाने की अवधि करीब आधा घंटा कर दिया इससे पहले पता चलता वैज्ञानिकों ने सेना की वर्दी पहने व आधे घंटे के अंदर ही घास फूस का मचान/छत जैसा तैयार कर निचे घुस कर बहुत ही कठिन परिस्थितियों में गठ्ठा खोदने का काम किया जिसमें परमाणु परीक्षण किया जाता है।भारत जब पोखरण में ऑपरेशन शक्ति के तहत सफल परमाणु परीक्षण करने की तैयारी कर रहा था,तो इसकी भनक किसी भी दूसरे देश को नहीं थी। यहां तक की परमाणु परीक्षण होने के बाद भी इसकी जानकारी किसी को नहीं लगी थी। भारत की सरकार के लिए उस वक्त से बहुत चुनौतीपूर्ण काम था,क्योंकि अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए भारत की हरकतों पर पल-पल नजर बनाए रखता था। सीआईए ने भारत पर नजर रखने के लिए अरबों खर्च कर 4 सैटेलाइट लगाए थे। 24 सितंबर 1996 को अमेरिका ने परमाणु विकसित देशों से मिलकर एक संधि सीटीबीटी यानी कांप्रेहेन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी नामक एक समझौता लागू किया गया जिसके जरिए परमाणु परीक्षणों करने के लिए प्रतिबंधित लागू किया गया है यह संधि अस्तित्व उस समय अस्तित्व में आई जब भारत परमाणु परीक्षण के लिए पुरी तरह से तैयार हो गया था। 1997 तक भारत परमाणु परीक्षण को लेकर इसे पुनः परीक्षण के लिए भारत के मशहुर वैज्ञानिक डॉ एपीजे कलाम व डॉ आर चितंबरम के अगुआई में इसे कई बार उस समय के सरकार के पास जाकर उन्हें जानकारी दी थी लेकिन सीटीबीटी मसौदा,अमेरिका व अन्य देशों के डर के कारण इस मिशन को रोक दिया गया था जब 1998 में एनडीए की सरकार आई तो स्व पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने इस मिशन को पुरा करने के लिए वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को प्रोत्साहित किया जो इसका नेतृत्व कर रहे थे डा कलाम साहब को इस मिशन को पुरा करने की पुरी छुट दी उन्होंने कहा आप सभी वैज्ञानिक जब चाहें तब परीक्षण करें मुझे ऐ मत बताइए कब करना है उन्होंने साफ कहा कि मेरी सरकार रहे या ना रहे,पार्टी रहे या नहीं रहे इसकी चिंता नहीं है देश सर्वोपरि है अतः आप जैसे चाहे वैसे करें देश की रक्षा सर्वोपरि है इसके लिए देश के पास परमाणु अस्त्र जरुरी है इसकी भनक अमेरिका को लगी इसके लिए अमेरिका ने नासा में उस समय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को बुलाया और निदेशक पद का ऑफर दिया स्व डॉ कलाम सर ने उन्हें मना तो नहीं किया लेकिन यह मामला फंस गया बने या न बने उन्होंने इसलिए ऐसा किया क्योंकि वो जानते थे मेरे लिए देश सर्वोपरि है और मैं अकेला हूं अतः वो वहां जाकर ऐ जान गए कि भारत के परमाणु परीक्षण को लेकर अमेरिका ने सैटेलाइट लगा दिया है अतः भारत आने के बाद उन्होंने इस कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार की उन्होंने परमाणु परीक्षण से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को बताया कि यहां सैन्य अभ्यास की तैयारी कर उस मिशन को पूरा करने की कोशिश की जाए वैज्ञानिकों ने इसके लिए 11मई,1998 का तारीख तक किया। अतः तय समय के अनुसार भारत ने राजस्थान के पोखरण में 11 मई 1998 को तीन परमाणु परीक्षण किया था जो नाभिकीय विखंडन पर आधारित था उसके बाद 13 मई,1998 को दो और परमाणु परीक्षण कर डाले। इसमें एक नाभिकीय संलयन पर आधारित डिवाईस थे एक अनुमान के अनुसार जो उस समय डेटा के आधार पर बी ए आर सी(पऊवि).व डीआरडीओ ने हासिल किए थे वैज्ञानिकों ने उस समय जो डाटा लिए थे उनके अनुमान के मुताबिक 11मई,1998 को किए गए परमाणु परीक्षण लगभग 15 किलोटन का था और 13मई 1998 को परमाणु परीक्षण में परमाणु परीक्षण के साथ हाईड्रोजन बम परमाणु अस्त्र का भी परीक्षण था जो थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस 45 किलोटन का था जो 13मई 98 को किया गया था पहले एटम डिवाइस का परीक्षण नाभिकीय विखंडन था जो 20 किलोटन का था इसका उद्देश्य बम बनाना हो न हो लेकिन संलयन रिएक्टर बनाने का शुरुआती कदम भी कहा जा सकता है। परीक्षण स्थल का डोज के डिटेक्टर से टेस्ट किया गया जो बिल्कुल सामान्य पायी गई गठ्ठा जरुर बहुत अंदर तक थी अमेरिका इसे मानने को तैयार नहीं था क्योंकि इसे बहुत सुरक्षित तरीके से किया जाना था अतः 9 मई 1998 को मिशन को कामयाब करने के उद्देश्य से उस जगह को मौसम विभाग द्वारा आंधि तूफान का ऐलान किया गया लेकिन 13 मई1998 को इस परीक्षण के कारण पाकिस्तान में भूंकप के हल्के झटके आए जिसके वजह से अमेरिका को मालूम हुआ और अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए लेकिन भारत अपने दम पर बने सामानों के कारण आर्थिक प्रतिबंध का कोई खास असर नहीं हुआ। इसके बाद ही न्यूक्लियर हथियारों वाले देशों की लिस्ट में भारत का नाम शामिल हो गया था। अतः 11 मई 1998 में भारत ने जो पोखरण में ऑपरेशन शक्ति के तहत सफल परमाणु परीक्षण किया था,जो एटम बम था उसके बाद 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट किया उससे परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में इन परीक्षणों के कारण आत्मनिर्भर भारत का सपना पुरा हुआ जिसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। 11 मई 1998 में अलट बिहारी वाजपेयी ने ही 11 मई को नेशनल टेक्नोलॉजी डे के रूप में घोषित किया था। निःसंदेहपूर्व प्रधान मंत्री स्व अटलजी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बहुत बड़ा कदम था जिसमें परमाणु तकनिकी में भारत आत्मनिर्भर हुआ और पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी ने जय जवान,जय किसान के साथ जय विज्ञान का भी शब्द जोड़ दिया। सचमुच भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने मेहनत से असंभव को संभव किया जिसका श्रेय भारत के महान परमाणु डॉ भाभा व अन्य भारतीय वैज्ञानिकों जैसे डॉ कलाम,डॉ आर चितम्बरम व उनकी टीम को जाता है।


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