चेन्नई@भारत में पहली बार राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना तमिलनाडु में 10 विधेयक बने कानून

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सरकार ने जारी किया नोटिफिकेशन
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उठाया कदम
केरल के राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्यायिक अतिरेक बताया
चेन्नई,13 अप्रैल 2025 (ए)।
भारत के विधायी इतिहास में पहली बार तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना 10 कानून लागू किए हैं। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। जिसमें कहा गया कि इन कानूनों को राज्यपाल आरएन रवि की ओर से स्वीकृति दे गई है। तमिलनाडु सरकार का यह निर्णय देश में ऐसा पहला उदाहरण है, जहां राज्य सरकार ने राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति के बजाय न्यायालय के आदेश के आधार पर कानून को लागू किया है।
18 नवंबर 2023 से लागू
सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद तमिलनाडु सरकार ने दस विधेयकों को अधिसूचित किया है, जिसमें कोर्ट ने
कहा था कि राज्यपाल किसी विधेयक को लंबे समय तक अपने पास रोककर नहीं रख सकते। विधेयकों के अधिसूचित होने के बाद ये अब क¸ानून बन गए हैं। अधिसूचना में बताया गया है कि ये कानून 18 नवंबर 2023 से लागू माने जाएंगे। संबंधित संशोधन विधेयक 19 अक्तूबर, 2022 को तमिलनाडु विधानसभा में पारित कर राज्यपाल की मंज़ूरी के लिए भेजे गए थे। करीब एक साल बाद 13 नवंबर 2023 को राज्यपाल ने इन विधेयकों को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद 18 नवंबर 2023 को ये विधेयक दोबारा सदन में पारित कर राज्यपाल के पास भेजे गए। राज्यपाल ने इसे 28 नवंबर 2023 को राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने की थी ये टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में हाल ही में कहा था, विधेयक राज्यपाल (तमिलनाडु के राज्यपाल) के पास लंबे समय से लंबित थे। राज्यपाल ने सद्भावनापूर्ण तरह से काम नहीं किया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने इस मामले में आठ अप्रैल को सुनवाई की थी।ये पूरा आदेश सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया। इसमें कहा गया है कि राज्यपाल अगर राष्ट्रपति को कोई विधेयक विचार करने के लिए भेजते हैं तो उन्हें तीन महीने में इस पर फ़ैसला लेना होगा।
केरल के राज्यपाल ने कहा- संविधान संशोधन कोर्ट करेंगे तो सदन क्या करेंगे
इधर केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्यायिक अतिरेक बताया है। उन्होंने कहा, कोर्ट संविधान संशोधन करेगा, तो संसद और विधानसभा की क्या भूमिका रहेगी? संविधान में गवर्नर द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा नहीं है। कोर्ट द्वारा 3 महीने की सीमा तय करना संविधान संशोधन जैसा है। दो जज संविधान का स्वरूप नहीं बदल सकते। न्यायपालिका खुद मामलों को वर्षों लंबित रखती है, ऐसे में राज्यपाल के पास भी कारण हो सकते हैं। उन्होंने कहा, केरल राजभवन में कोई बिल लंबित नहीं है। कुछ बिल राष्ट्रपति को भेजे गए हैं। गौरतलब है कि केरल सरकार भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गई है, जिस पर 13 मई को सुनवाई है।


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