लेख@ प्रकृति व धरा की नव स्वरूप ही नूतन वर्ष को गढ़ता है…

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अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार एक जनवरी को पाश्चात्य संस्कृति और पाश्चात्य देशों में नववर्ष मनाया जाता है। इकत्तीस दिसंबर को पूरे रात जग कर एक जनवरी का स्वागत किया जाता है।नुतन वर्ष के रूप में एक जनवरी को लोग खुब इंज्वॉय करते हैं।पर विश्लेषण योग्य बात यह है की क्या एक जनवरी को प्रकृति में,मौसम में या धरा और वातावरण पर कोई नया पन देखने को मिलता है। दिसम्बर और जनवरी की माह में कोई खास अंतर होता है, नही होता, दोनों माह में जबरदस्त ठंड और शीत का दौर चलते रहता है और मानव ठंड में ठिठुरते रहता है,लोग अलाव की तलाश करते रहता है,घर से बाहर प्रवास करनें के लिए लोग सोचता है और जाता भी है तो अपने साथ गर्म कपड़े का व्यवस्था रखता है,और सामान्यतः व्यक्ति अपने स्वास्थ्य गत को ध्यान में रख अपने आप को एक निश्चित दायरे में रखता है। प्रकृति में,मौसम में और धरा में कोई नयापन देखने को नहीं मिलता,तो फिर एक जनवरी कैसे साल का नुतन दिवस होगा।
हमारे भारतीय संस्कृति और हिंदी पंचांग के अनुसार हमारा नववर्ष चैत्र प्रतिपदा शुक्ल एकम् है। हमारे नये वर्ष का प्रथम दिवस चैत्र प्रतिपदा शुक्ल एकम् है। प्रकृति और धरा में नया रूप देखने को बहुत सारा उदाहरण मिलेगा। प्रकृति में बसंत ऋतु नये वर्ष का स्वागत बड़े जोर सोर से करता है। पतझड़ की रवानगी होती है,साथ मे पौधा में नया पन देखने को मिलता है। धरा के वृक्षों और पौधों के तना मैं नया कोपल के कारण पेड़ का स्वरूप अनुपम शोभायमान होता है। मौसम में ठंड का समापन और गर्मी का आगमन होता है।रसराज फलों से लदा होता है, महुआ की पुष्प पूरे वातावरण को मदमस्त करते रहता है,‌ मोंगरा की महक चारों ओर फैलते रहता है।सूरज की रोशनी धरा पर प्रखर होती है। पूरे वसुंधरा के जीव जंतु आनंद से भरा विभोर होता है। चारों ओर पूरे प्रकृति में नया पन,नया उमंग और नया जोश होता है। चैत प्रतिपदा शुक्ल एकम् के दिन पूरे धरा पर मां भगवती का आगमन होता है,फलस्वरूप शुक्ल एकम् से धरा पर भक्ति मय वातावरण निर्मित होता है। सभी लोग अपने अपने घरों की आंगन को रंगोली से सजाते हैं तथा शौर्य, भक्ति, शक्ति,और विजय की प्रतीक भगवा ध्वज को अपने अपने घरों में चौक चौराहे और दैविक स्थलों पर लगातें है, जिससे वातावरण भगवामय हो जाता है। प्रकृति, मौसम ,और धरा के स्वरूप का विश्लेषण किया जाए तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा एकम् के दिन नयेपन की अंबार होता है। अतः यही नयापन ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा एकम् को नववर्ष का स्वरूप प्रदान करता है।
लक्ष्मीनारायण सेन
खुटेरी गरियाबंद (छ.ग.)


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