घुमन्तु गीत सीरीज@ शून्यता

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आज मैं ऑफिस से जल्दी निकल आयी, मन में एक शून्यता थी, एक अजीब सी शून्यता! उसी शून्यता को मन में लिए हुए मैं किसी अवचेतना में गाड़ी चलाती चली जा रही थी। इसी अवचेतना में मैं गंगा घाट पर जा पहुंची, मन में शून्यता जस की तस व्याप्त थी, और मैं उसी शून्यता के साथ माँ गंगा की ओर अपलक निहारे जा रही थी, मन विचारविहीन था और मैं मौन। तभी अचानक एक आवाज़ आयी,आंटी झुमके ले लो न!
मैंने देखा वहां एक छोटी सी बच्ची एक स्टैंड पर बहुत से झुमके टाँगे खड़ी हुई है।
मैंने कहा, अरे जितनी बड़ी तुम नहीं हो उतना बड़ा तो स्टैंड उठा रखा है।
एक झुमका ले लो न आंटी उसने फिर से कहा। हालांकि मैं ये सब पहनती नहीं, फिर भी यूँ ही मैंने कहा , अच्छा ठीक है, अपनी पसंद से एक जोड़ा दे दो। मैंने सोचा किसी को दे दूँगी। उसने एक सुन्दर सा नगजड़ा मोर पंख के डिज़ाइन का झुमके का जोड़ा मुझे दिया,ये मेरी मम्मी को बहुत पसंद था, आप ले लो
पसंद था? हाँ, अब वो मर गयी, उसको कैंसर हो गया था, यहीं मणिकर्णिका पर उसको जला दिया, मैंने देखा था छुप कर! अब मैं इधर ही झुमके बेचती हूँ, मम्मी इधर ही कहीं होगी न, तो मुझे यहाँ घूमना अच्छा लगता है आंटी।
तुम्हारा नाम क्या है बच्चा? तुम स्कूल नहीं जाती?
नहीं, कौन भेजेगा इस अभागी गौरी को स्कूल, पप्पा तो कब के ऑफ हो गए थे, मम्मी ही तो सब करती थी न, अब मैं खुद ही अपना पेट पालती हूँ आंटी।
मैं एकदम निःशब्द उसे सुनती जा रही थी, फिर मैंने उससे पूछा, अच्छा गौरी, सुनो, मेरी एक मित्र हैं, वो तुम्हारे जैसी बच्चियों को पढ़ाती हैं, क्या तुम पढ़ना चाहती हो?
उसने शब्दों में कुछ नहीं कहा, पर उसकी आँखों की चमक और बड़ी सी मुस्कान स्वयं में उत्तर थे।
अब वो मेरी मित्र की संस्था के सौजन्य से स्कूल जाने लगी है, खुश है, और मैं उसे अपनी स्कूटी पर बिठाकर अक्सर उसी घाट पर ले जाती हूँ, हम दोनों वहां बहुत देर तक बैठते हैं, बहुत सारी बातें होती हैं, बहुत देर हम दोनों चुपचाप बैठे हुए अपनी-अपनी माँ को माँ गंगा में देखते हैं, फिर मैं उसे उसके हॉस्टल छोड़कर वापस आ जाती हूँ। जो शून्यता लिए हुए मैं उस रोज़ घाट गयी थी, वह अभी भी मुझमें कहीं सुप्त पड़ी हुई है, बीच बीच में जागृत होती है, अमूमन मैं उसपर काबू पा लेती हूँ। लगता है, ऐसे ही कुछ और गौरियों को तलाश रही हूँ, शायद बहुत सी बच्चियों की पढ़ाई पूरी करने का माध्यम बन जाऊँ तो शून्यता परिपूर्णता बन जाए, शायद…
प्रियंका अग्निहोत्री गीत
काशी,उत्तर प्रदेश


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