क्या कानून का डर अब लोगों के मन मे नहीं बचा है?

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  • क्या लोग कानून से डरना नहीं उसे खरीदना चाहते हैं?
  • कानून सत्ताधारियों व पैसे वालों के कब्जे में हो गया है क्या?
  • क्या सत्ताधारी व रसूखदारों के अनुसार ही चलेगा देश का कानून?
  • क्या कानून को खुद रक्षा की जरूरत है क्योंकि कानून भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि कानून को मानने कोई तैयार नहीं है?

-:रवि सिंह कटकोना कोरिया छत्तीसगढ़:-

कानून शब्द कहने में बहुत छोटा है पर इस शब्द के मायने पर पूरा देश टिका है इस नाम पर लोगों की उम्मीद होती है इस नाम से न्याय जुड़ा है पर क्या यह कानून न्याय की बजाय किसी की जागीर बनती जा रही है? वर्तमान परिस्थितियों में जिस प्रकार कानून का दुरुपयोग हो रहा है, उससे ऐसा लग रहा है कि कानून को खुद अपनी ही रक्षा की जरूरत है, क्योंकि कानून व्यवस्था कायम करने वाले ही कानून को असुरक्षित कर चुके हैं, न्याय अब उनकी मर्जी से ही मिलेगा जिनके हाथों में कानून की कमान है, पहले एक कहावत थी देर है पर अंधेर नहीं, न्याय देर से मिलता है पर मिलता जरूर है, पर ऐसे शब्द सिर्फ अब बोलने में ही अच्छे लगने लगे हैं असलियत में इस शब्द के मायने कुछ अलग ही हो गए हैं कहा जाए तो सिर्फ यह शब्द अब दिलासा देने के लिए ही बच गए हैं, क्योंकि अब कानून पर लोगों का भरोसा बिल्कुल नहीं रह गया है, क्योंकि इस भरोसे को सत्ताधारी व रसूखदार लोगों ने अपने पैरों के नीचे कुचल रखा है, सत्ताधारी जहाँ अपनी मर्जी से कानून का दुरुपयोग कर रहें हैं वहीं रसूखदार इसे खरीद रहे हैं, कानून मैं बैठे लोग जिनके भरोसे लोगों को न्याय की उम्मीद होती है वह भी अपने स्वार्थ में न्याय का सौदा करने लगे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि कानून राजनीतिक पार्टियों सहित रसूखदारों की जागीर बन गई है। राजनीतिक पार्टियां सत्ता दल रसूखदार जैसा चाहेंगे वैसे ही कानून व्यवस्था कायम होगी, कानून न्याय के लिए नहीं सत्ताधारियों सहित रसूखदारों के इशारों पर चलकर लोगों को कुचलने को तो आगे नहीं बढ़ रहा है यह बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है? कहीं ना कहीं संचार क्रांति कानून व्यवस्था को भी खोखला कर रही है इस समय संप्रदायिक दंगे कराने वाले से लेकर तरह-तरह की आजादी भी जी का जंजाल बनने लगी, सभी आजाद रहना चाहते हैं और अपने अनुसार आजादी की मांग करते हैं और कानून को अपने अनुसार चलने उसका दुरुपयोग करते हैं।
कानून का सही मायने में उपयोग न्याय दिलाने के लिए किया जाना चाहिए और इसी उद्देश्य से देश व प्रदेश में कानून व्यवस्था की व्यवस्था की गई है लेकिन क्या कानून अपना काम सही ढंग से कर पा रहा है यह बड़ा सवाल है। आज सत्ताधारी दल के लोगों को पूरी उम्मीद रहती है उनका पूरा प्रयास रहता है कि कानून उनके अनुसार चले और उनके गलत कार्यों और कृत्यों के बावजूद भी उनका समर्थन करे उन्हें कानून की जद से बाहर रखे वहीं रसूखदारों की भी मंशा रहती है कि कानून उनके अनुसार चले और उनका हित सधता रहे। कानून की रक्षा में रत जिम्मेदार भी सत्ताधारियों सहित रसूखदारों के ही गिरफ्त में रहकर कानून व्यवस्था कायम करना चाहते हैं या कानून व्यवस्था लागू करते हैं ऐसा कहना भी गलत नहीं होगा। आम आदमी न्याय के लिए केवल भटकता है। आम लोगों के लिए कानून के दरवाजे बंद ही रहते हैं वह भी तब तक जब तक उनके लिए किसी सत्ताधारी दल के नेता या रसूखदार का संदेश कानून लागू करने वालों के पास न जाये। कुल मिलाकर कानून गिरफ्त में है और स्वतंत्र होना भी नहीं होना चाहता क्योंकि इससे कानून लागू करने वालों को ही फायदा है। कानून के रक्षक कानून व्यवस्था को किस तरह गिरफ्त में रखना चाहते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह आम लोगों के लिए न्याय के रास्ते मे खुद रोड़े अटकाते हैं और उन्हें न्याय के मार्ग को कठिन बताते हैं। कानून के रक्षकों के इसी प्रयास की वजह से उनका भी हित पूरा होता है और वह आर्थिक रूप से संपन्न हो पाते हैं।
आज कानून के रक्षकों की ही स्थिति की बात की जाए तो एकबात स्पस्ट रूप से समझ मे आ जायेगी और वह यह है कि अर्थसम्पन्नता की लालसा इतनी बढ़ चुकी है कि कानून और न्याय भी बाजारीकृत हो चुके हैं और इसके लिए भी दाम चुकाने की जरूरत पड़ने लगी है। आज जिस तरह से अपराध बढ़ रहा है और अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है उसको देखकर भी लगता है कि कानून अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहा है। आज अवैध कारोबारों की ही बात की जाए तो प्रतिदिन अवैध कारोबार को लेकर खबरे सामने आती हैं खुलेआम सभी कुछ होता सभी देख भी रहें हैं वहीं कानून के रक्षक भी इससे अनभिज्ञ नहीं हैं फिर भी चूंकि इसमें भी रसूखदारों व सफेदपोशों का हांथ है इसलिए कानून के रक्षक इसको लेकर मौन हैं और लगातार मौन बने रहेंगे इसमे कोई शक भी नहीं है।


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