रायपुर,29 सितम्बर 2021 (ए)। शिक्षा विभाग में सालों से चली आ रही व्यवस्था को खत्म कर गुणवत्ता जांचने वालो को ही गुणवत्ता देने का काम दे दिया है। राज्य परियोजना कार्यालय से जारी आदेशानुसार संकुल समन्वयकों को पूर्व की भांति जानकारियों के आदान प्रदान एवं विभिन्न गैर शिक्षकीय कार्यों में संलग्न किया जा रहा है। आज भी उन्हें कोरोना ड्यूटी, जनगणना कार्य, टीकाकरण, खेलकूद, विभिन्न प्रशिक्षण व अन्य कार्यों में लगाया जा रहा है,जानकारी आदान प्रदान में उनका सारा समय चला जाता है। इस कारण से वे अपनी मूल शाला में अध्यापन कार्य के लिए नहीं जा पाते हैं, जबकि उन्हें प्रतिदिन अपनी मूल शाला में तीन पीरियड पढ़ाना है उसके बाद संकुल का काम भी देखना है।
डीपीआई ने जिलो को अपने संज्ञान में लेने का निर्देश जारी कर कहा है कि अब संकुल समन्वयक केवल शालाओं में जाकर केवल अकादमिक समर्थन के लिए नहीं है वरन उन्हें अपने स्कूल को अपने संकुल में सबसे बेहतर करते हुए अन्य शालाओं के लिए आदर्श शाला के रूप में प्रस्तुत करने की भी जिम्मेदारी है।
ऐसा लगता है कि शिक्षा विभाग के कर्ता धर्ता संकुल समन्वयक को लेकर बड़े स्तर पर जानकारी और डेटा के आधार पर यह निर्णय लिए है। वे इस बात को स्वीकार चुके है कि अनेक शिक्षक समन्वयक बनकर अफसर गिरी करते हैं ना तो उनका स्कूलों में कोई रिकॉर्ड होता है ना ही उनकी कोई ब्लाक में एंट्री होती है। कई समन्वयक निरीक्षण के नाम पर अपने से वरिष्ठ प्रधान पाठकों पर धौस जमाने से बाज नही आते।
शासन ने तंत्र में खामी को देखकर संकुलों का पुनर्निर्माण किया,उसके बाद भी पुराने लोग शिक्षा विभाग की योजनाओं का प्रचार प्रसार करने के संकुल समन्वयक बन बैठे है। अधिकांश सीएसी शासन के नए निर्देशों के अनुसार एक तरफ गैर शिक्षकीय कार्यो पर आपत्ति भी करते है,किन्तु मूल शाला और संकुल की स्कुलों के अकादमिक स्तर में वृद्धि के लिए किसी भी संकुल समन्वयक के द्वारा शाला में अध्यापन कार्य नहीं कराया जाता है ।
संकुल प्राचार्य को संकुल की शालाओं का प्रशासकीय नेतृत्व सौंपा जा चुका है, उसके बाद भी संकुल समन्वयक पुराने ढर्रे पर काम कर रहे हैं, लाजिमी है शालाओं के अकादमिक स्तर में वृद्धि और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के दायित्वों का पालन शोबाजी की भेंट चढ़ रहा है।
मालूम हो प्रदेश में 5500 संकुलो के अंतर्गत प्रदेश 50 हज़ार से ज्यादा शासकीय स्कूल आते है,समन्वयक का पद अस्थायी है।संकुल प्राचार्य व्यवस्था लागू हो जाने के बाद डाइंग कैडर (समाप्तप्राय) हो गया है,विभाग के सेटअप से भी इसे हटा लिया गया है। संकुल पुनर्गठन की प्रक्रिया में वरिष्ठ प्राचार्य को संकुल प्रभारी का दायित्व दिया गया है। शासन की मंशा के अनुसार पुराने संकुल समन्वयक को मूल शाला में रहकर शिक्षा गुणवत्ता में बढ़ोतरी करना प्रमुख लक्ष्य रखा गया है ।जिला और ब्लाक के अधिकारियों के द्बारा शासन के आदेश का पालन नहीं हो रहा है। इसका जवाब डीपीआई के पास भी नही होगा । समन्वयक भी अवसर का लाभ उठाकर उंगली से पोछा लगाने का काम करते हुए इस व्यवस्था से राजी है भी और नही भी है। लेकिन यह तय है कि राज्य परियोजना कार्यालय के बहुत से काम अब कौन और कैसे किस व्यवस्था के तहत व्यापक रूप में होगा। यह सवाल बराबर बना रहेगा। वर्तमान हालत देख कर यही लगता है कि प्रिंसपल साहब से तो नही बन पाएगा
स्कूल शिक्षा विभाग में सशक्त मॉनिटरिंग तंत्र के अभाव में संकुल व्यवस्था दिनोंदिन दम तोड़ते जा रही है,फलतः शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं और शैक्षणिक गुणवत्ता स्तर अभिवृद्धि सम्बंधी पायदानों में छत्तीसगढ लगातार पिछड़ते जा रहा है।
स्थानीय नेताओं की जुगाली करके संकुल समन्वयक बने अनेक शिक्षक न तो स्कूल का भला कर पा रहे हैं न हीं संकुल का। सर्वविदित है शिक्षा विभाग में लेन-देन वाली दुकान की प्रमुख कुंजी समन्वयक के बिना बीईओ, डीईओ, परियोजना कार्यालय का पत्ता नही हिल पाता है।अधिकारी बदल जाते है समन्वयक बने रहते है।वे संकुल के 50- 60 मास्टरों का बास बन जाते है।
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