सूरजपुर/भैयाथान@नौसीखिए तहसीलदार के बचकाना फैसले के बाद नायाब तहसीलदार का फर्जी नामांतरण मामला आया सामने

Share


-ओंकार पाण्डेय-
सूरजपुर/भैयाथान,14 सितंबर 2025 (घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ के यशस्वी मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के सुशासन में क्या-क्या देखने को मिलेगा, राजस्व प्रकरणों में तो हर कहीं अव्यवस्था और अन्याय देखने को मिल रही है। जहां नए-नए नियम और बेहतर संतुलन के लिए राजस्व विभाग में व्यवस्था की जा रही है,फिर भी अधिकारियों की मनमानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। अनाप-शनाप फैसला व फर्जी नामांतरण लोगों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। राजस्व न्यायालय में यदि किसी का बोलबाला है, तो वह सिर्फ पैसे का बोलबाला है। कहा जा रहा है कि पैसा दो और फैसला लो। ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। सूरजपुर जिले में ईमानदार कलेक्टर के होने के बावजूद भी तहसीलदार के हाथ गलत काम करने में नहीं कांप रहे हैं। उन्हें कार्यवाही का डर अब नहीं लग रहा है, उन्हें तो लग रहा है कि वह बहुत योग्य हैं, परीक्षा देकर आए हैं, तो कुछ भी फैसला दे देंगे, कुछ भी फर्जीवाड़ा कर देंगे,कार्रवाई कौन करेगा? उनके उच्च अधिकारी सिर्फ अनुशंसा ही करेंगे, कार्यवाही से पहले वह बच निकलेंगे। इसी उम्मीद में वह बार-बार गलती पर गलती कर रहे हैं? पर मामला उनके ऊपर एफआईआर तक नहीं पहुंच रहा है। जिस दिन इन अधिकारियों पर अन्यायपूर्ण फैसले, भ्रष्टाचार आदि कृत्य पर अपराध दर्ज होने लगेगा, उस दिन यह गलत फैसला व कार्रवाई देने से परहेज करने लगेंगे। तहसीलदार हड़ताल से वापसी के बाद और भी मनमाना कार्य करने लगे हैं। क्या इसीलिए वह हड़ताल पर बैठे थे, और सरकार पर दबाव बनाकर अपना बचाव का हथियार ढूंढ रहे थे। सूरजपुर में आए ताजा मामले के बाद यह बात उठने लगा है कि राजस्व विभाग से ईमानदारी की बात सिर्फ बेमानी है। एक तरफ नए नवेले नौसिखिया तहसीलदार के बेजा कब्जा प्रकरण पर फैसले ने मजाक बना दिया, अब उसके बाद इस कार्यालय के नायब तहसीलदार का फर्जी नामांतरण का मामला सामने आ गया है। क्या ईमानदार कलेक्टर सूरजपुर इन दोनों मामलों पर संज्ञान लेकर कार्यवाही करेंगे या फिर पूर्व के तहसीलदार संजय राठौर की तरह यह मामला भी विभागीय जांच के जाल में फंसकर दब जाएगा? वैसे जानकारों का मानना है की सूरजपुर कलेक्टर व ईमानदार अपर कलेक्टर इस मामले में जरूर संज्ञान लेंगे और कार्यवाही भी करेंगे।
फर्जी नामांतरण से राजस्व का भी हुआ नुकसान…होनी थी रजिस्ट्री…कर दिया नामांतरण
किसी व्यक्ति की मृत्यु होने की दशा में उसकी अचल संपत्ति के वारिस दार उसके सर्वाधिक निकट के सगे संबंधी यथा पत्नी,पुत्र वगैरह होते हैं। जिनके लिए फौती नामांतरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर अचल संपत्ति का सीधे नामांतरण नहीं किया जा सकता। हां यह दीगर बात है कि अन्य व्यक्ति के नाम से अचल संपत्ति की रजिस्ट्री कराई जाती है, और शासन को यथोचित शुल्क अदा किया जाता है। इस प्रकरण में जहां भूमि स्वामी की मृत्यु के पश्चात फौती नामांतरण की प्रक्रिया उसकी जीवित पत्नी के पक्ष में होनी चाहिए थी, वह तो हुई नहीं,अपितु किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर नामांतरण किया गया जो कि सरासर गलत और फर्जी है। नायब तहसीलदार के इस फैसले से शासन को राजस्व की हानि भी हुई है।
गलत प्रक्रिया और फैसला राजस्व न्यायालय का,दंड भुगतना पड़ता है पक्षकारों को…
राजस्व न्यायालय में लंबित प्रकरणों की सुनवाई के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन न किए जाने, पैसों से लेनदेन कर फर्जीवाड़ा किए जाने का दंड वास्तविक हकदार और पीडि़त पक्षकार को लंबे समय तक भुगतना पड़ता है। यह सर्वविदित है कि राजस्व प्रकरणों की सुनवाई में काफी लंबा वक्त लगता है, और पीडि़त पक्षकार दर-दर की ठोकर खाते रहते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि राजस्व प्रकरणों की सुनवाई और फैसला आने तक पक्षकारों की मृत्यु भी हो चुकी होती है। अब इसी प्रकरण में भूमि जिस बुजुर्ग महिला के नाम पर की जानी थी, उसे अन्य के नाम पर कर दिया गया। पुनः उस महिला को इस भूमि को प्राप्त करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी,जो की बेहद ही अव्यावहारिक और कष्टप्रद होने वाला है।
पति की मृत्यु के बाद पत्नी के नाम ना चढ़कर भूमि चढ़ गई किसी अन्य के नाम
मिली जानकारी के अनुसार तहसील कार्यालय भैयाथान फर्जी नामांतरण के मामले को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में है। ग्राम पंचायत दनौली खुर्द का यह मामला प्रशासनिक लापरवाही ही नहीं बल्कि राजस्व नियमों की खुली धज्जियां उड़ाने का भी उदाहरण बन गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत दनौली खुर्द स्थित भूमि खसरा क्रमांक 224 रकबा 0.0500 हे. पूर्व में स्व. अमरसाय के नाम दर्ज थी। जानकारों की माने तो राजस्व संहिता 1959 की धारा 109 एवं उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार,किसी भी स्वामी की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का नामांतरण सबसे पहले उसकी जीवित पत्नी/विधवा अथवा वैधानिक वारिसों के नाम होना चाहिए। लेकिन हैरानी की बात है कि स्व. अमरसाय की बुजुर्ग पत्नी के जीवित होने के बावजूद भी उक्त भूमि का नामांतरण सीधे मंजीत के नाम कर दिया गया। राजस्व नियम स्पष्ट करते हैं कि उत्तराधिकार से संबंधित विवाद या दावे की स्थिति में नामांतरण तभी हो सकता है जब मामला न्यायालय (कोर्ट) से निष्पादित हो या सभी वारिसों की सहमति लिखित रूप में दर्ज हो। इस प्रकरण में न तो वारिसों की सहमति ली गई, न ही किसी प्रकार की न्यायालयीन प्रक्रिया पूरी की गई। सूत्रों कि माने तो यह नामांतरण नायब तहसीलदार प्रियंका टोप्पो और पटवारी की मिलीभगत से मोटी रकम लेकर किया गया है। नियमों की अनदेखी और धारा 109 का उल्लंघन सीधा भ्रष्टाचार और दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। इस पूरे मामले के उजागर होने के बाद तहसील कार्यालय में हड़कंप मच गया है।
इश्तहार में फर्जी हस्ताक्षर,जिनके हस्ताक्षर होने का दावा उन्होंने हस्ताक्षर से किया इनकार
सूत्रों की मामले में जो इश्तहार जारी किया गया उसमें एक ही व्यक्ति ने 5,6 ग्रामीणों सहित पंच व चौकीदार का भी फर्जी तरीके से हस्ताक्षर कर दिया। ग्राम पंचायत दनौली खुर्द के सरपंच सपना सिंह के समक्ष पूजा सिंह पंच, अभिमन्यु चौकीदार ने बताया की यह हस्ताक्षर हम लोगों का नहीं है। तथा इंदकुंवर को पंच बता कर हस्ताक्षर किया गया है, लेकिन इंदकुंवर नाम का कोई महिला पंच नहीं है, इससे स्पष्ट होता है की यह सब एक ही व्यक्ति के द्वारा किया गया है। स्पष्ट है कि फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए तहसील कार्यालय से इश्तहार प्रशासन के बाद उसकी मुनादी संबंधितों तक नहीं कराई गई, ना ही संबंधितों के हस्ताक्षर लिए गए। एक ही स्थान पर बैठकर पंचायत प्रतिनिधियों के फर्जी हस्ताक्षर का खेल खेला गया है।


Share

Check Also

अंबिकापुर@गणपति स्थापना समिति:जागृति नव युवक मंडल ने जीता प्रथम पुरस्कार

Share अंबिकापुर,14 सितम्बर 2025 (घटती-घटना)। बाल गंगाधर तिलक गणपति स्थापना समिति,अंबिकापुर द्वारा प्रतिवर्ष की तरह …

Leave a Reply