- फर्जी अंकसूची के आधार पर शिक्षाकर्मी की नौकरी करने वालों पर शासन क्यों मेहरबान है
- क्या नियुक्ति के बाद शिक्षाकर्मी के दस्तावेजों का सत्यापन कराना विभाग की जिम्मेदारी नहीं है
- क्या फर्जी डीएड अंकसूची की शिकायत में नोटिस सिर्फ दिखावा है या कार्यवाही की जाएगी
-राजेन्द्र शर्मा-
खड़गवां,10 सितंबर 2025 (घटती-घटना)। जिला एमसीबी के ब्लॉक खड़गवां में एक लम्बे समय से खड़गवां ब्लॉक में पदस्थ शिक्षा कर्मी के भ्रष्टाचार एवं धोखाधड़ी की खबरें सामने आती रहती हैं इनमें से कुछ पर कार्यवाही होती है और कुछ अपने पैसों और पावर एवं पहुंच के दम पर खुद को बच्चा भी लेते हैं ऐसे ही कई मामला खड़गवा ब्लॉक में जहां फर्जी जाति प्रमाण पत्र फर्जी डीएड अंकसूची एवं अन्य दस्तावेजों के आधार पर शिक्षा कर्मी नौकरी कर रहे हैं जो बड़े आराम से बिना किसी शिकवा शिकायत एवं रोक-टोक के पिछले सोलह वर्षों से नौकरी भी कर रहे हैं मामला खड़गवा मुख्यालय से लगे ग्राम पंचायत ठगगाव प्राथमिक शाला डूमरबहरा का है जहां पर पदस्थ शिक्षा कर्मी सरिता साहू आ. शंकर लाल साहू के डीएड की अंकसूची जिसके आधार पर शिक्षा कर्मी वर्ग 3 की भर्ती में शिक्षाकर्मी की नौकरी प्राप्त कि है। ये डी एंड की अंकसूची भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ से 2008 में जारी हुई है। जो पूर्ण रूप से फर्जी है ये हम इसलिए कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में अभी तक इस संस्था का कोई पंजीकरण नहीं हुआ है। या ये कहा जाए की ये डीएड अंकसूची पूर्णतः फर्जी है। यह अंकसूची जिस संस्था से जारी किया गया है उस संस्था का यूजीसी द्वारा जारी विवि की सूची में नहीं है जबकि भारत सरकार कि बेवसाइट में ये यूनिवर्सिटी फेंक यूनिवर्सिटी दिखा रहा है ये डीएड की अंकसूची उत्तर प्रदेश लखनऊ से 15 जुलाई 2008 को जारी हुआ है इस संस्था के संबंध में भारत सरकार की यूजीसी की बेवसाइट पर देखने से स्पष्ट फेंक यूनिवर्सिटी की सूची में इस भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ यूनिवर्सिटी का नाम दर्ज है जहां से इस सरिता साहू आ. शंकर लाल साहू शिक्षाकर्मी को डीएड कि अंकसूची जारी हुई है। भारत सरकार के बेवसाइट में इस यूनिवर्सिटी का नाम कहीं पर अंकित नहीं है जिसकी जानकारी बेवसाइट पर दर्ज की है विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के द्वारा भारत देश में संचालित फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची भी जारी कर इन फेंक यूनिवर्सिटी की जानकारी पहले भी समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी है उसके बाद भी कोरिया और एमसीबी शिक्षा विभाग के अधिकारी द्वारा इन फर्जी डीएड की अंकसूची कि जांच एवं अन्य दस्तावेजों के आधार पर फर्जी नौकरी करने वाले शिक्षाकर्मियों के दस्तावेजों की कडाई से जांच क्यों नहीं की गई? और शिक्षा विभाग के अधिकारीओ के द्वारा इन्हें पूरा संरक्षण भी दे रखा है जिसके कारण ये पिछले 16 सालों से फर्जी होने के बाद भी शिक्षाकर्मी की नौकरी धड़ल्ले से कर रहे हैं?
नियुक्ति निरस्त का है नियम
शिक्षा विभाग के द्वारा नियुक्ति आदेश कि सामान्य शर्तें में स्पष्ट उल्लेख है आदेश क्रमांक/1732/सथा/0शि.क.नि./जप/2010 दिनांक 9/10/2010 के कंडिका 5 में स्पष्ट उल्लेख नियुक्ति उमीदवार द्वारा प्रस्तुत शैक्षणिक अर्हता एवं अन्य प्रस्तुत प्रमाण पत्रों को प्रथम दृष्टया सत्य मानकर कि गयी है यदि भविष्य में कभी भी उमीदवार द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्र अवैध कूटरचित व फर्जी पाया गया तब नियुक्ति तत्काल निरस्त कर दी जायेगी एवं संबंधित के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता के प्रावधानानुसर दंडात्मक कार्यवाही संस्थित कि जाएगी।
सत्यापन पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं
क्या चयन सूची में अभ्यर्थी के नाम आने पर दस्तावेजों की गहराई से जांच की जाती है कि जिस विश्वविद्यालय या संस्थान से प्राप्त डिग्री ली गई है यह निम्नानुसार है या नहीं। वर्ष 2007 एवं 2010 में चयनित शिक्षाकर्मी के डीएड अंकसूची की गंभीरता से जांच की जाए तो कई शिक्षाकर्मी की डीएड फर्जी अंकसूची का पर्दाफाश होगा? खड़गवां विकासखंड में वर्ष 2010 में हुई शिक्षाकर्मी भर्ती में कई बार फर्जी एवं भ्रष्टाचार के आरोप लगे मगर सिर्फ जांच के नाम पर खानापूर्ति कर फर्जी अंकसूची एवं अन्य सभी दस्तावेजों का क्या हुआ ये जांच का विषय है?
क्या योग उम्मीदवारों को उनका हक मिलेगा
इस तरह के फर्जी डीएड अंकसूची से शिक्षाकर्मी की नौकरी करने वालों पर कार्यवाही नहीं की जा रही है? जिससे योग्य उम्मीदवार आज भी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं ? जो इस पद के प्रमुख दावेदार थे क्या उन्हें शिक्षा विभाग के अधिकारी न्याय देगा या पूर्व की भांति जांच में ले देकर मामले को निपटा देंगे?