
गरीब बच्चे शोषण के सबसे अधिक शिकार होते हैं 12 जून को पूरे विश्व में बाल श्रम के विरोध में हर साल मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इस काम से मुक्त कराने तथा उन्हें शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। इस दिवस को पूरे विश्व में मनाने का मुख्य उद्देश्य बाल श्रमिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। बाल श्रम आज भारत में एक बहुत बड़ी समस्या है। सरकारें इस बुराई को रोकने के लिए समय-समय पर कानून बनाती रही हैं और दावे भी किए जाते हैं कि इस बुराई को रोकने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन आज भी ढाबों, औद्योगिक इकाइयों और कई अन्य जगहों पर काम करने वाले बच्चे इन सरकारी दावों को झूठलाते नज़र आते हैं। देश में बाल मजदूरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्तमान में गरीब बच्चों का सबसे अधिक शोषण हो रहा है। उन्हें स्कूल भेजने के बजाय बाल मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। अधिकांश बच्चे अपने घरों की बेहद कमजोर आर्थिक स्थिति या फिर अपने माता-पिता के सामाजिक बुराइयों के शिकार होने के कारण काम करने के लिए मजबूर होते हैं। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक,बौद्धिक और सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। बाल मजदूरी में लिप्त बच्चे मानसिक रूप से बीमार होते हैं और बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बड़ी बाधा बनती है। बाल मजदूरी बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती है जो संविधान के खिलाफ है और मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। भारत में बाल मजदूरी के खिलाफ 1986 में एक अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार, उद्योगों में बच्चों को काम पर रखना प्रतिबंधित है। इसके अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी भी फैक्ट्री आदि में काम पर नहीं रखा जा सकता। पंद्रह से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को किसी भी फैक्ट्री में तभी काम पर रखा जा सकता है, जब उनके पास किसी मान्यता प्राप्त डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट हो। इस कानून के अनुसार 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रतिदिन साढ़े चार घंटे काम करना होगा तथा रात में काम करने पर रोक है। दुर्भाग्य से, इतने सख्त कानून के बाद भी बच्चों को होटलों, कारखानों, दुकानों आदि में दिन-रात काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिससे कानून का उल्लंघन हो रहा है तथा मासूम बच्चों का बचपन प्रभावित हो रहा है। आंकड़ों के अनुसार, आज दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं। 50 प्रतिशत भारतीय बच्चे अपने बचपन के अधिकारों से वंचित हैं। उन्हें न तो शिक्षा की रोशनी मिल रही है और न ही उनका सही पालन-पोषण हो रहा है। बाल श्रम के खिलाफ काम करने वाले संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में करीब सात से आठ करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं। ये बच्चे गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते और इनमें से अधिकतर बच्चे बाद में बाल मजदूरी करने को मजबूर हो जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में इस समय 20 मिलियन बाल मजदूर हैं, लेकिन हकीकत में यह आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। देखा जाए तो गरीबी के कारण बच्चे कठोर परिश्रम करते हैं। इसके अलावा बढ़ती जनसंख्या, आवश्यक बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षा की कमी और मौजूदा कानूनों का सही तरीके से क्रियान्वयन न होना भी बढ़ते बाल श्रम के लिए जिम्मेदार हैं। भारत में कई जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता अपने बच्चों को चंद पैसों के लिए ठेकेदारों को बेच देते हैं, जो अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें होटलों, कॉटेज और अन्य कारखानों में काम पर लगा देते हैं, जहाँ इन बाल मजदूरों का अक्सर शोषण होता है। देश से बाल श्रम की इस बुराई को मिटाने के लिए ऐसे बच्चों के परिवारों को गरीबी के चक्र से बाहर निकालना और उनकी शिक्षा के लिए उचित प्रयास करना जरूरी है।