लेख @ संस्कार और संस्कृति का अनुसरण भी शिक्षा का एक अभिप्राय

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सोहन अपनी बिटिया सुमन को उच्च शिक्षा के लिए महानगर भेजना चाहता था उनका एक ख्वाब था की मैं कालेज की पढ़ाई नियमित रूप से नहीं कर पाया तो क्या हुआ मैं अपने बच्ची को अच्छे स्थान और अच्छे विश्व विद्यालय में पढ़ाऊंगा। यह सोच लेकर सोहन अपनी बिटिया सुमन को दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाता हैं। अब सुमन दिल्ली की परिवेश में अपने आप को ढालने का प्रयास करती है। दिल्ली की चका चौंध में सुमन खोने लगी, और अपने मूल काम पढ़ाई में व्यस्त हो जाती है। अब दीपावली पर्व का एक सप्ताह का अवकाश घोषित होता है। अतः दीपावली अवकाश पर सुमन अपने गांव तुलसीपुर आती है। दीपावली पर सोहन अपने बिटिया के लिए बहुत सारा आतिशबाजी का समान और तीन जोड़ी सुंदर सुंदर परिधान लाता है। सुमन आतिशबाजी समान देखकर गदगद हो जाती है। अब पापा के पसंद से आए सूट पर सुमन खामियां निकालने लगती है, सुमन कहती हैं क्या पापा आप एकदम देहाती जैसे कपड़े ले आए,इतना सुन सोहन कहता है बेटा तुम इसके पहले तुम मेरे कोई भी पसंद पर सवाल नहीं उठाते थी। हर एक पसंद को हमेशा पसंद करते थी पर आज कैसे बेटा,सुमन कहती है पापा ये कपड़ा पुराने जमाने की है और मुझे अभी नये जमाने की चाहिए।सोहन इन कपड़ों को तत्काल वापस कर देता है। सुमन कहती हैं पापा मुझे एक फोन की आवश्यकता है तो सोहन अपने बिटिया को एक आई फोन ला के दे देता है। सुमन कहती हैं पापा मुझे पांच सौ रूपए और चाहिए तो सोहन कहता है क्या करेंगी बेटा अभी पैसा को और,तो सुमन कहती हैं पापा फोन की सुरक्षा के लिए फोन में स्क्रीन गार्ड और कवर लगाऊंगी । सोहन अपनी बिटिया को पैसा दे देता है। सबेरे सोहन अपने बिटिया सुमन से बोलता है देखो बेटा जिस प्रकार एक फोन की सुरक्षा के लिए स्क्रीन गार्ड और कवर की आवश्यकता है उसी प्रकार बेटा हमारे मर्यादा की सुरक्षा के लिए हमारे शरीर का पूर्णतः ढका होना अनिवार्य है, और तुम मैंने जो तुम्हारे लिए कपड़ा लाया था उनको पुराने जमाने की सूट है बोल दी इस कारण मैं इस कपड़ा को वापस कर दिया। देखो बेटा हम कहीं भी रहें हमें अपना मर्यादा संस्कार और संस्कृति कभी भूलना नहीं चाहिए। पापा के बात सुन सुमन की आंख पानी से भर जाती है। सुमन कहती हैं पापा मुझे क्षमा करना मैं आपके उद्देश्य को समझ नहीं पायी। कोई बात नहीं बेटा जब जगे तब सबेरा कह कर बिटिया की पीठ थपथपा है, और कहता है बेटा शिक्षा का एक अभिप्राय हमारे संस्कार और संस्कृति का अनुसरण करना भी होता है। एक समय था जब आदमी भौतिक संसाधन और शिक्षा के अभाव में रहा करता था तो भी वह अपने संस्कार संस्कृति और मर्यादा को कभी भूला नहीं, पर आज व्यक्ति के पास हर दृष्टिकोण से परिपूर्णता है फिर भी मर्यादा को लांघने में कोई कसर नहीं छोड़ता। आज शिक्षा अपने चर्म सीमा पर है अर्थात एक आदमी को जीवन यापन के लिए जितनी मात्रा में शिक्षा की आवश्यकता है प्रायः सभी के पास है। शिक्षा का अभिप्राय केवल जीवन स्तर को उच्चा उठाना, आर्थिक रूप से मजबूत होना अधोगत भौतिक संसाधन का विकास होना ही नहीं साथ में अपनी संस्कृति और संस्कार का अनुसरण करना भी होता है।


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