- ट्रस्ट की बैठक में लिया गया था निर्णय रोप-वे निर्माण के लिए,ठेकेदार के बीच हो गया था अनुबंध अब उसे निरस्त करने की तैयारी
- ट्रस्ट को श्रद्धालुओं की सुविधा की फिक्र नहीं कमाई की फिक्र ज्यादा?
- मुख्यमंत्री के उपस्थिति में हुआ था रोप-वे लगाने का अनुबंध पर अब निरस्त करने की तैयारी क्यों?
- इंग्लिश में अनुबंध हुआ था साइन नहीं पढ़ पाए ट्रस्ट के लोग:सूत्र
- जब इंग्लिश नहीं समझ में आता था तो फिर हिंदी में अनुबंध क्यों नहीं बनवाया, ट्रस्ट व ठेकेदार के बीच होने वाले अनुबंध को…
-ओंकार पाण्डेय-
सूरजपुर,07 जून 2025 (घटती-घटना)। सूरजपुर जिले में मां कुदरगढ़ी धाम काफी प्रसिद्ध है यहां पर श्रद्धालुओं की आस्था बहुत है, दूर-दूर से लोग कुदरगढ़ी मां के दर्शन करने पहुंचते हैं,यहां का इतिहास काफी पुराना है माता के दर्शन के लिए लोगों को कई लगभग 1000 सीढियां चढ़ना पड़ता हैं,तब माता के दर्शन होते हैं चैत्र रामनवमी के समय काफी भीड़ यहां होती है, बहुत विशाल मेला का आयोजन होता है यहां पर बहुत पुराना ट्रस्ट भी बना हुआ है,जो प्रशासन की मदद से यहां की देखरेख व व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाता रहा है। यहां पर पहाड़ी की लंबी ऊंचाई को देखते हुए रोप-वे की मांग बहुत लंबे समय से हो रही थी,क्योंकि बहुत सारे श्रद्धालु शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं जो सीढ़ी चढ़कर माता के दर्शन नहीं कर पाते हैं,जिसे देखते हुए रोप-वे लगाने की मांग हो रही थी,पर यह मांग इसलिए पूरी नहीं हो रही थी क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा पैसा लग रहा था और सरकार यहां पर पैसा खर्च करने से पीछे हट रही थी, अभी जब वर्तमान में भाजपा सरकार आई तब सूरजपुर के पूर्व कलेक्टर रोहित व्यास,वर्तमान कलेक्टर एस जयवर्धन व ट्रस्ट के निर्माण समिति के अध्यक्ष भीमसेन अग्रवाल ने एक बहुत अच्छी योजना लाई,जिसमें बिना पैसे के ही रोप-वे लग जाएगा,इसकी रूपरेखा तैयार की गई मुख्यमंत्री के समक्ष यह प्रस्ताव पर लोगों की मोहर लग गई और ठेकेदार के बीच अनुबंध साइन भी हो गया,इस अनुबंध के तहत ठेकेदार अपने पैसे से रोप-वे तैयार करने की बात कही और 33 साल तक उसे जो पैसा आएगा वह ठेकेदार का होगा,ताकि उसका लागत व मेंटेनेंस का पैसा निकल सके, तपश्चात उसे ट्रस्ट को सौंप देता या फिर नए सिरे से अनुबंध होता जैसे ट्रस्ट चाहता पर अचानक 2 महीने बाद ट्रस्ट के अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारी को यह बात समझ आई कि उनके ट्रस्ट को फायदा नहीं हो रहा है,इसके बाद इन्होंने फिर से आनन फानन में ट्रस्ट की बैठक रखी और पुराने ठेकेदार के अनुबंध को निरस्त करने की बात कही जाने लगी, वहीं सूत्रों का दावा है कि यह लड़ाई सिर्फ दो नेताओं के वर्चस्व की है जहां पर रोप-वे लगे इस पर कोई पहल नहीं कर रहा था वहां पर निर्माण समिति के अध्यक्ष भीमसेन अग्रवाल ने एक बहुत अच्छी योजना लाई वह योजना सभी को पसंद आई और उसका श्रेय भीमसेन अग्रवाल को मिलने लगा, जो बात शायद ट्रस्ट के अध्यक्ष को ना गवारा गुजरी होगी, इस वजह से ट्रस्ट के अध्यक्ष और सदस्य इस पूरे मामले को एक अलग ही मोड अब दे रहे हैं वहीं जिस ठेकेदार को वह रोप-वे देना चाह रहे हैं उससे उन्हें आंतरिक लाभ होगा ऐसा सूत्रों का दावा है।
पुरानी मांग को पूरा होने में आखिर अड़चन क्यों उत्पन्न कर रहे हैं ट्रस्ट के अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी?
मां कुदरगढ़ी के दरबार में सब तरह के भक्त आते हैं जो शारीरिक रूप से स्वस्थ है वह तो मां के दरबार में सीढ़ी चढ़कर दर्शन कर लेते हैं पर मां के कुछ ऐसे भी भक्त है जो दिव्यांग निशक्तजन है जो मां के दरबार पर पहुंचते तो है पर उनके तक नहीं पहुंच पाए, नीचे से मत्था टेक लेते है इसी वजह से कुदरगढ़ में रोप-वे की मांग काफी लंबे समय से हो रही थी ताकि सब तरह के भक्तों को मां के दर्शन कराया जा सके, मुख्यमंत्री के आगमन पर यह सब संभव भी हो गया था क्योंकि दूर दृष्टि रखने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता व ट्रस्ट निर्माण समिति के अध्यक्ष भीमसेन अग्रवाल ने रोप-वे लगाने की एक योजना बताई जिसमें बिना सरकारी खजाना सहित ट्रस्ट के खजाने को खाली किए बिना ही रोप-वे लग सकता था वह योजना थी, कि एक ठेकेदार यहां पर रोप-वे लगाने को तैयार हो गया था वह भी अपने पैसे से और रोप-वे से होने वाली कमाई से उसका संचालन व मेंटनेंस करता और श्रद्धालुओं को नॉमिनल दर पर सुविधा मुहैया कराता, यह योजना सभी को पसंद आई और सारी तैयारी भी हो गई ठेकेदार व ट्रस्ट के बीच प्रशासन ने अनुबंध भी कर दिया उसे अनुबंध पर अंतिम मोहर मुख्यमंत्री के आगमन पर लग गई, उस अनुबंध का फोटो भी सार्वजनिक हो गया पर अनुबंध के दो महीने बाद उस रोप-वे में ट्रस्ट के अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी ही अड़चन पैदा कर बैठे।
जब उनके ट्रस्ट को फायदा नहीं हो रहा था तो फिर उन्होंने अनुबंध क्यों किया?
जब ट्रस्ट को फायदा नहीं हो रहा था तो फिर ठेकेदार के साथ अनुबंध क्यों किया गया? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सूत्रों का कहना है कि ट्रस्ट अपने लाभ न होने की वजह से इस अनुबंध को निरस्त करने की फिराक में है और उसे न दे दूसरे ठेकेदार को देना चाहते है जो ट्रस्ट को फायदा पहुंचा सके लंबा कार्यकाल को छोटा कार्यकाल बनाना चाह रहे हैं, पर सवाल इसलिए उठ रहा है कि जब आपको फायदा नहीं था तो फिर अपने अनुबंध क्यों साइन किया और मुख्यमंत्री के हाथों अनुबंध की तस्वीर क्यों लोगों में साझा की गई? क्या इसके बाद मुख्यमंत्री की छवि पर असर नहीं पड़ेगा?
भीमसेन अग्रवाल सदैव कुदरगढ़ के विकास के लिए बनाते हैं योजना
भीमसेन अग्रवाल कुदरगढ़ ट्रस्ट के बहुत पुराने पदाधिकारी हैं और हमेशा ही वहां के विकास के लिए वह योजना बनाते रहते हैं,वहां का विकास होता रहे ऐसी उनकी भावना हमेशा बनी रहती है यही वजह है कि वह शहर के एक प्रतिष्ठित नेता में तो उनकी गिनती आती ही है, उनकी एक अलग प्रतिष्ठा है और ट्रस्ट में भी लोग उन्हें मानते हैं क्योंकि उनकी योजना ट्रस्ट सहित धाम के विकास के लिए होती है जिस पर वह अपने विचार निस्वार्थ भाव से हमेसा व्यक्त करते हैं।
ट्रस्ट के अध्यक्ष का चुनाव रोप-वे के लिए आनन फानन हुआ था…
ट्रस्ट के अध्यक्ष का चुनाव होना था पर रोप-वे की रूपरेखा बनाने व उसे पर अंतिम मोहर लगाने के लिए मुख्यमंत्री का आगमन होना था जिसे देखते हुए आनन फानन में ट्रस्ट का चुनाव हुआ और अध्यक्ष रामसेवक पैकरा यानी कि पूर्व गृह मंत्री को बनाया गया, साथी प्रशासन व ठेकेदार के बीच अनुबंध को लेकर भी दिक्कत आ रही थी इसलिए ट्रस्ट के अध्यक्ष का चुनाव भी करना अनिवार्य हो गया था,हर चीजों को देखते हुए अध्यक्ष चुने गए, ताकि ट्रस्ट का विकास हो सके और इसके बाद रोप-वे लगाने की पूरी रणनीति तैयार की गई और फिर श्रेय लेने के लिए मुख्यमंत्री का आगमन भी हुआ और सारी चीज योजना के तहत हो भी की गई मुख्यमंत्री ने भी इसको लेकर सराहना की, और अब उस पर अड़चन का साया मंडराने लगा है।
रोप-वे का काम जल्द शुरू होगा जहां लोग उम्मीद लगाए बैठे थे अब एक बार फिर निरस्त होने के बात सुनकर लोगों में छाई निराशा
रोप-वे का अनुबंध की खबर आने के बाद सभी लोगों में इस बात का हर्ष था कि मां कुदरगढ़ी के दर्शन के लिए रोप-वे का निर्माण हो जाएगा,जो लंबे समय से मांग चल रही थी मुख्यमंत्री के आगमन पर इस पर हरी झंडी भी मिल गई सारी चीज तय हो गए,पर अचानक ट्रस्ट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि ट्रस्ट को इससे फायदा नहीं हो रहा है इसीलिए इस अनुबंध को निरस्त किया जाना चाहिए यह खबर जैसे ही सामने आई इसकी आलोचना होने लगी और ट्रस्ट के लोगों के प्रति लोगों का आक्रोश बढ़ने लगा।
मुख्यमंत्री के समक्ष हुए अनुबंध निरस्त करने से क्या मुख्यमंत्री के मान सम्मान को नहीं पहुंचेगा ठेस
मुख्यमंत्री के समक्ष सारी तैयारी होने के बाद अनुबंध की तस्वीर साझा की गई मुख्यमंत्री को सारी चीज बताई गई थी मुख्यमंत्री भी इस पर राजी थे श्रेय लेने के लिए मुख्यमंत्री के हाथों ही अनुबंध की तस्वीर प्रसारित की गई और यह बात फैल गया कि अब कुदरगढ़ में रोप-वे अवश्य लगेगा पर मुख्यमंत्री के जाने के 2 महीने बाद अब उस रोप-वे से कमाई कैसे हो यह ट्रस्ट को चिंता सताने लगी? इसके बाद उसे निरस्त करने की बात अब हो रही है इससे मुख्यमंत्री की छवि पर भी असर पड़ेगा ऐसा लोगों का मानना है। यदि निरस्त ही करना था तो अनुबंध नहीं करना था?