लेख@पुण्यश्लोकःन्यायमूर्ति, लोकमाता अहिल्याबाई होलकर

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महारानी,इंसाफ की देवी, जनसरोकारी,अहिल्याबाई होलकर मराठा साम्राज्य की एक प्रसिद्ध शासिका और मालवा क्षेत्र में होलकर राजवंश की संस्थापक थीं। अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई, 1725 को चौंडी गांव, अहिल्यानगर जिला,महाराष्ट्र में हुआ था। उनका विवाह मल्हार राव होलकर के पुत्र खंडेराव होलकर से हुआ था। खंडेराव की मृत्यु के बाद, अहिल्याबाई ने प्रशासन संभाला और अपने राज्य को मजबूत और समृद्ध किया। लोकमाता, अहिल्याबाई होलकर न्याय की ऐसी मूर्ति कि अपने बेटे को भी सजा-ए-मौत का फरमान सुनाने से भी नहीं हिचकीं। एक बार जब अहिल्याबाई के बेटे मालोजीराव अपने रथ से सवार होकर राजबाड़ा के पास से गुजर रहे थे। उसी दौरान मार्ग के किनारे गाय का छोटा-सा बछड़ा भी खड़ा था। जैसे ही मालोराव का रथ वहां से गुजरा अचानक कूदता-फांदता बछड़ा रथ की चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। थोड़ी देर में तड़प-तड़प कर उसकी वहीं मौत हो गई। इस घटना को नजरअंदाज कर मालोजीराव आगे बढ़ गए। इसके बाद गाय अपने बछड़े की मौत पर वहीं बैठ गई। वो अपने बछड़े को नहीं छोड़ रही थी।
कुछ ही देर बाद वहां से अहिल्याबाई भी वहां से गुजर रही थी। तभी उन्होंने बछड़े के पास बैठी हुई एक गाय को देखा,तो रुक गईं। उन्हें जानकारी दी गई। कैसे मौत हुई कोई बताने को तैयार नहीं था। अंततः किसी ने डरते हुए उन्हें बताया कि मालोजी के रथ की चपेट में बछड़ा मर गया। यह घटनाक्रम जानने के बाद अहिल्या ने दरबार में मालोजी की धर्मपत्नी मेनाबाई को बुलाकर पूछा कि यदि कोई व्यक्ति किसी की मां के सामने उसके बेटे का कत्ल कर दे तो उसे क्या दंड देना चाहिए? मेनाबाई ने तुरंत जवाब दिया कि उसे मृत्युदंड देना चाहिए। इसके बाद अहिल्याबाई ने आदेश दिया कि उनके बेटे मालोजीराव के हाथ-पैर बांध दिए जाएं और उन्हें उसी प्रकार से रथ से कुचलकर मृत्यु दंड दिया जाए, जिस प्रकार गाय के बछड़े की मौत हुई थी। बेटे की जान लेने खुद रथ पर चढ़ गई थीं देवी अहिल्याबाई इस आदेश के बाद कोई भी व्यक्ति उस रथ का सारथी बनने को तैयार नहीं था। तब अहिल्याबाई खुद आकर रथ पर बैठ गईं। वो जब रथ आगे बढ़ा रही थी, तब एक ऐसी घटना हुई, जिसने सभी को हैरान कर दिया।
वही गाय रथ के सामने आकर खड़ी हो गई थी। जब अहिल्याबाई के आदेश के बाद उस गाय को हटाया जाता तो वो बार-बार रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती। यह देश दरबारी मंत्रियों ने महारानी से आग्रह किया कि यह गाय भी नहीं चाहती है कि किसी और मां के बेटे के साथ ऐसी घटना हो। इसलिए यह गाय भी दया करने की मांग कर रही है। गाय अपनी जगह पर रही और रथ वहीं पर अड़ा रहा। राजबाड़ा के पास जिस स्थान पर यह घटना हुई थी, उस जगह को आज सभी लोग ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जानते है।
पुण्यश्लोक,त्याग की प्रतिमूर्ति, अहिल्याबाई ने मालवा की रानी के रूप में 1737 से 1795 तक शासन किया। उन्होंने हमेशा अपने राज्य और अपने लोगों को आगे बढ़ने का हौंसला दिया। ओंकारेश्वर पास होने के कारण और मां नर्मदा के प्रति श्रद्धा होने कारण महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया था। महारानी अहिल्याबाई होलकर ने प्रजा हित के लिए आगे बढ़ीं और सफल दायित्वपूर्ण राजशाही का संचालन करते हुए 13 अगस्त, 1795 को दुनिया को अलविदा कह गईं। महारानी अहिल्याबाई होलकर के जीवन, समर्पण, न्याय, विकास, संस्कार और जन कल्याण के कार्यों को भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। शत-शत नमन!


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