क्या जब तक भ्रष्ट सोच के तहसीलदार राजस्व न्याय की कुर्सी पर बैठे रहेंगे तब तक जमीन का फर्जीवाड़ा होता रहेगा?क्या तहसीलदार खुद जमीन लेने के लिए जीवित वृद्धा को मृत बता कर बिकी जमीन का नामांतरण कर दिया?सौतेले पुत्र ने जीवित वृद्धा को मृत बता बेचा जमीन,तहसीलदार की संलिप्तता पर फिर उठा सवाल।

-शमरोज खान-
सूरजपुर 28 मई 2025 (घटती-घटना)। न्याय की कुर्सी पर बैठकर भी यदि न्याय जमीन संबंधित मामलों में ना मिले तो फिर ऐसे कुर्सी पर बैठने का क्या मतलब? राजस्व के मामले तहसील कार्यालय से शुरू होते हैं और जमीन संबंधित पीड़ित इस न्यायालय से उम्मीद लगाए रखते हैं कि उन्हें न्याय मिलेगा? पर क्या इस न्यायालय के कुर्सी पर विराजमान अधिकारी इस न्यायालय के न्याय को प्रभावित कर देते हैं? जमीन के फर्जीवाड़ा बढ़ाने का क्या मुख्य वजह है यही है? क्योंकि जमीन संबंधित फर्जीवाड़ा बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और इसके मुख्य वजह जमीन संबंधित न्याय दिलाने के लिए बैठे जिम्मेदार ही है? जो जमीन के व्यापार से अपना लाभ अर्जित करने के लिए न्याय को ही बेच देते हैं, ऐसा ही मामला सामने आया है जहा जिले के भैयाथान ब्लॉक मुख्यालय से लगे ग्राम करकोटी में एक व्यक्ति ने राजस्व अधिकारियों और भूमि दलालों से मिलीभगत कर अपने सौतेली वृद्ध माता को फर्जी तरीके से मृत बता करोड़ों की भूमि का नामांतरण करा विक्रय कर दिया है। भैयाथान तहसील कार्यालय के अंतर्गत एक अजीबोगरीब का नाम सामने आया है सौतेले बेटे ने अपनी मां को अमृत बता दिया और तहसीलदार साहब ने बिना जांच उसका नामांतरण कर दिया और उसे जमीन का कुछ हिस्सा खरीद लिया वह भी अपने पत्नी के नाम क्या ऐसा कारनामा सिर्फ उसे जमीन को खरीदने के लिए तहसीलदार ने किया अब यह शिकायत पहुंच चुकी है कलेक्टर सहित उच्च अधिकारियों के समक्ष अब क्या कार्रवाई होती है यह देखने वाली बात होगी?

मिली जानकारी के अनुसार मामला भैयाथान के ग्राम करकोटी, पटवारी हल्का नं 11 का है जिसमें आवेदिका ने कलेक्टर जनदर्शन सूरजपुर के समझ उपस्थित होकर शिकायत आवेदन प्रस्तुत किया है जिसमें उल्लेख किया गया है की तहसीलदार भैयाथान ने ग्राम करकोटी स्थित सड़क से लगी भूमि में से चालीस डिसमिल भूमि तथा ग्राम कोयलारी, तहसील भैयाथान की भूमि से तीस डिसमिल के लालच में समस्त विविध प्रक्रियाओं को ठेंगे पर रखकर उसके सौतेले पुत्र विरेन्द्र नाथ दुबे के नाम कर उसे विक्रय भी करवा कर उसमें से चालीस डिसमिल भूमि अपने विश्वसनीय सहयोगी शिवम दुबे तथा संजय के नाम से ले भी ली, आवेदिका ने अपने आवेदन में उल्लेख किया है की उन्होंने 11-08-1976 को ग्राम करकोटी में 0.405 हे. भूमि क्रय की थी, भूमि क्रय के पश्चात उनका खसरा नम्बर 45/3 रिनम्बरिंग होकर 344 बना और वे उस पर काबिज रहीं, सन 2016-17 में उनकी इस भूमि के नक्शा में त्रुटि हुई और बटाँकन भी कर दिया गया, जिसकी शिकायत आवेदन उन्होंने तहसील कार्यालय भैयाथान में किया और 12-12-2022 को न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी भैयाथान से आवेदिका के पक्ष में निर्णय भी हो गया, इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अनावेदक विष्णु कुशवाहा ने न्यायालय कलेक्टर सूरजपुर के समक्ष अपील प्रस्तुत की, यह प्रकरण विचाराधीन ही था कि शैल कुमारी के सौतेला पुत्र विरेन्द्र नाथ दुबे ने अपने पुत्र कमलेश दुबे के साथ भूमि क्रय विक्रय में सक्रिय तहसीलदार संजय राठौर भैयाथान, तहसीलदार के अतिविश्वसनीय शिवम दुबे व संजय के साथ मिलकर भूमि के लालच में लगभग एक माह में जीवित को मृत बताकर आवेदिका की भूमि का नामान्तरण,विक्रय और विक्रय पश्चात नामान्तरण भी कर दिया।

शैल कुमारी दुबे से जब पटवारी मिला तो फिर चार माह पूर्व पटवारी मृत्यु होने का पंचनामा कैसे तैयार हुआ?
चौंकाने वाली की बात तो यह है कि शैलकुमारी दुबे ने यह भूमि 11-08-1976 को क्रय की थी और 09-02-1967 का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बन गया मृत्यु पहले हो गई और जमीन बाद में कैसे खरीदी गई जो व्यक्ति दुनिया में था या नहीं उसने जमीन कैसे खरीद लिया यह सवाल अब बहुत तेजी से उठने लगा है, और दस्तावेज को बिना जांचे ऐसे तहसीलदार ने जमीन का नामांतरण कर दिया कि वह तहसीलदार भी अब आरोपी के दायरे में, अब इस मामले की जांच होने अत्यंत आवश्यक हो गई है कि आखिर जमीन खरीदी से पहले का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बना कौन लेकर आया, मृत्यु प्रमाण पत्र व जमीन खरीदी के बीच 9 साल का अंतर कैसे आ गया? क्या इस फर्जी काम को करने वाला नौसिखिया था या फिर तहसीलदार को इस नौसेखियों के कंधे पर बंदूक दान कर उसे कीमती जमीन को खुद खरीदना था? ध्यान देने योग्य बात है कि शैलकुमारी दुबे ने अपने दिए गए आवेदन में आरोप लगाते हुए कहा है कि इसी ग्राम करकोटी स्थित भूमि का प्रकरण कलेक्टर न्यायालय में लम्बित था और अक्टूबर 2024 को कलेक्टर सूरजपुर द्वारा अनुविभागीय अधिकारी भैयाथान के माध्यम से बटाँकन प्रतिवेदन माँगा गया था, जिस पर वर्तमान में ही पदस्थ राजस्व निरीक्षक व पटवारी ने शैल कुमारी दुबे से सम्पर्क भी किया था और इन्हीं पटवारी ने अभी 1967 में शैलकुमारी दुबे के मृत होने का पंचनामा भी तैयार किया है, जब चार माह पूर्व पटवारी द्वारा पीड़िता से संपर्क कर प्रतिवेदन तैयार किया गया तो फिर उनके द्वारा 1967 का मृत्यु होने का पंचनामा किस दबाव में आकर तैयार किया गया? क्या इन्हें इस बात का डर नहीं था कि यह मामला फर्जी वाले का है आज नहीं तो कल उजागर हो ही जाएगा?
क्या भूमि लालच में तहसीदार साहब ने महज एक महीने में तीन पेशी में फर्जी नामान्तरण कर नामान्तरण के तीसरे दिन भूमि विक्रय से संबंधित चौहद्दी बिना पटवारी प्रतिवेदन तयार करवाया?
आरोप तो यह भी है कि शैलकुमारी दुबे का सौतेला पुत्र विरेन्द्र नाथ तो आदतन अपराधी प्रवृति का है जो पूर्व में अपनी कारगुज़ारियों के कारण जेल भी जा चुका है,पूरे क्षेत्र में नटवरलाल के रूप में कुख्यात है। ऐसे व्यक्ति पर तहसीलदार जैसे गरिमापूर्ण पद पर न्यायिक और लोकसेवक के रूप में कार्यरत न्यायिक अधिकारी द्वारा भूमि लालच में समस्त विधिक नियमों को दरकिनार करते हुए बिना डर व भय के जीविता को मृत बताकर उसके सौतेला पुत्र के साथ पीड़िता की भूमि हड़पने षड्यंत्र रचा? भूमि लालच में एक तहसीदार जैसे पद पर बैठा लोकसेवक इतना अन्धा हो गया कि महज एक महीने में तीन पेशी में फर्जी नामान्तरण कर नामान्तरण के तीसरे दिन भूमि विक्रय से संबंधित चौहद्दी बिना पटवारी प्रतिवेदन लिए ही मौका जांच भी स्वयं कर अपने ही हस्ताक्षर से चौहद्दी जारी किया और विक्रय पत्र निष्पादन के दिन ही तत्काल आनन फानन में बिना इश्तहार नोटिश जारी किए नामान्तरण भी कर दिया।
क्या तहसीलदार ने उस जमीन को अपनी पत्नी के नाम ख़रीदा?
वहीं इस मामले में सोचनीय तथ्य है यह भी है की तहसीलदार ने हल्का पटवारी को भेजे ज्ञापन व ईश्तहार में ग्राम कोयलारी स्थित भूमि का उल्लेख कर प्रतिवेदन और आपत्ति माँगी है जबकि नामान्तरण ग्राम करकोटी स्थित भूमि का किया है, वहीं इस संबंध में यह भी बताया गया बताया की इसी भूमि से चालीस डिसमिल भूमि अपने विश्वसनीय शिवम व संजय के नाम से खरीदी और शैलकुमारी दुबे के ग्राम कोयलारी स्थित सम्लित खाते की भूमि से संजय के नाम एंग्रीमेंट कराकर उसे अपनी पत्नी शारदा के नाम 05-02-2025 को पंजीयन क्रमांक सीजी-2024-25-184-1-2958 रजिस्ट्रार सूरजपुर रजिस्ट्री कराकर प्राप्त किया। पीड़िता ने बताया की तहसीलदार अपने पद, प्रभाव व धन का प्रयोग करके पीड़िता के प्रकरण में होने वाले कार्रवाही को प्रभावित भी कर रहा है। वहीं अब इस मामले में देखना यह बाकी है कि एक बुजुर्ग महिला को न्याय दिलाते हुए संबंधितों पर कोई ठोस कार्यवाही की जाती है या फिर सिर्फ यह आवेदन कागजों तक ही सीमित रह जाता है?