- सहकारी समिति सोनपुर में हमाली राशि को लेकर विवाद,किसान और मजदूर आमने-सामने
- व्यवस्था खर्च के बाद बचे शेष हमाली की राशि पर किसका है हक?
- हमाली की राशि किसानों से लेने का प्रावधान नहीं है पर हमाली के मजदुर तात्कालिक पैसे के लिए हमाली राशि किसानों से वसूल लेते हैं
- शासन द्वारा हमलों को देने वाली राशि समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रभारी डकार जाते है।

सूरजपुर,19 मई 2025 (घटती-घटना)। धान खरीदी के समय हर साल लाखों रुपए का वारा न्यारा होता है और यह पैसा होता है हमाली की राशि का,किसान का धान उतारने चढ़ाने के लिए शासन धान खरीदी केंद्र में मजदूर का व्यवस्था करती है और उनका भुगतान उन्हीं को करना होता है पर यह व्यवस्था सिर्फ बनी हुई है कागजों में, पर इसका पालन नहीं होता है किसान अपना धान चट्टा में चढ़ावाने तोला वाने बोरी सिलवाने का पैसा वहां पर तैनात मजदूरों को खुद दे देता है,और मजदूर भी तत्काल पैसा पाने के लिए ऐसा करते हैं और ऐसे में हमाली की राशि पूरी तरीके से बच जाती है जिसको समिति प्रबंधक या फिर धान खरीदी प्रभारी डकार जाते हैं,यह राशि हर धान खरीदी केंद्र में आता है और यह राशि लाखों में होता है और इस राशि को डकारने के लिए पूरा खेल खेला जाता है,तात्कालिक मामले पर यदि गौर किया जाए तो अभी सोनपुर धान खरीदी केंद्र में इस पेच को लेकर बवंडर मचा हुआ है, जहां किसान का कहना है कि हमने हमाली की राशि भुगतान मजदूर को कर दी है, तो यह पैसा हमारे खाते में आना चाहिए पर वहीं हमाल का कहना यह है कि हमाली की राशि उन्हें नहीं मिली है,उसका भुगतान समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रबंधक नहीं कर रहे हैं यहां पर लड़ाई चल रही है पर लड़ाई की मुख्य वजह है धान खरीदी प्रभारी व समिति प्रबंधक की आपसी लड़ाई और यह लड़ाई भी हमाली की राशि को डकारने की मानी जा रही है ऐसा सूत्रों का दावा है।
धान खरीदी प्रभारी हमलों को राशि खाते में दिलवाना चाह रहे हैं तो वहीं समिति प्रबंधक किसान को यह राशि दिलवाने का पहला कर रहे हैं और कोई किसानों के माध्यम से इस पैसा को हड़पने चाह रहा है तो कोई हमाली के मजदूरों के माध्यम से हड़पने चाह रहा है,इसीलिए यह मामला कलेक्टर कार्यालय और जनदर्शन तक पहुंच चुका है,जहां इससे पहले हमाली की राशि के लिए मजदूर शिकायत लेकर पहुंचे थे अब कई दिनों के बाद अब किसान को लेकर कुछ भाजपा नेता कलेक्टर कार्यालय पहुंचे हैं और उनका कहना है कि हमाली की राशि किसानों ने नगद भुगतान कर दिया है,अब उस राशि को किसानों को भुगतान किया जाए,कुल मिलाकर धान खरीदी प्रभारी हमालीयों के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं तो दूसरा समिति प्रबंधक किसानों कंधे पर बंदूक रखकर अपना निशाना लगाए बैठे हैं और इन दोनों के बीच भारतीय जनता पार्टी के ही कुछ नेता दोनों तरफ से रोटी सेक रहे हैं,शिकायत करने कराने में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का भी भूमिका माना जा रहा है,कुल मिलाकर प्रशासन को उलझाने का यह प्रयास भी माना जा रहा है बाकी सच्चाई से सभी अवगत है और कहानी कहां पर है यह भी सभी को पता है,जब हमला की राशि तत्काल मजदूरों को देना चाहिए था उस समय दिए नहीं,किसानों पर उसका बोझ डाल दिए और जब किसान भुगतान कर दिए तो अब हमाली की राशि को कैसे डकार जाए इस पर जोर आजमाइश जारी है,और यह कमी किसी और कि नहीं प्रशासनिक कमी ही मानी जा रही है, क्योंकि वहां पर धान खरीदी के समय किसानों से हमाली की राशि नहीं लेनी है पर किसान अपना धान बचने के लिए मजबूरन बस हमाली की राशि मजदूरों को देता है समिति प्रबंधक और धान खरीदी प्रबंधन की वजह से ही किसान वहां पर पैसा मजदूरों को देते हैं,क्योंकि समिति प्रबंधक और धान खरीदी प्रबंधक हमाल को राशि का भुगतान नहीं करते हैं जिस वजह से हमाल उन पर भरोसा न करके किसान से ही अपना मजदूरी भुगतान करना उचित समझता है और ऐसी व्यवस्था कई सालों से चली आ रही है और प्रदेश के सारे धान खरीदी केंद्र में यह व्यवस्था बनी हुई है और इस व्यवस्था का किसी को यदि लाभ होता है तो वहां के धान खरीदी प्रभारी और समिति प्रबंधक होता है क्योंकि किसान तो मजदूर का भुगतान कर देता है और जो हमाली की राशि बची है उसे इन्हीं लोग डकारते हैं।
अधिकारियों का कहना
समिति के मजदूरों को भुगतान का निर्देश दिया गया है,गुरुवार को मामले की जांच हेतु गए थे लेकिन प्राधिकृत अधिकारी से मुलाकात नहीं हुआ था। अब बहुत जल्द मामले को निपटा रहे हैं।
बजरंग पैकरा
प्रभारी उप पंजीयक,सूरजपुर
धान खरीदी प्रभारी से मजदूरों का पूरा डिटेल मंगाया गया है,उन्होंने अभितक पूरा डिटेल जमा नहीं किया है। वर्तमान में 09 मजदूरों का चेक काटकर भुगतान के लिए भेज दिया गया है।
दुर्गा चरण सिंह
प्राधिकृत अधिकारी
सहकारी समिति सोनपुर
वहीं समिति के खरीदी प्रभारी का कहना है कि मजदूरों को उनके मेहनताने का उचित भुगतान मिलना चाहिए और इसके लिए हमाली राशि जरूरी है। उनका दावा है कि मजदूरों को जो राशि किसानों से मिलती है, वह पर्याप्त नहीं होती।
विवेक चौरसिया धान खरीदी प्रभारी
क्या सोनपुर धान खरीदी केंद्र समिति प्रबंधक व धान खरीदी प्रभारी का बना जंग का मैदान?
धान खरीदी केंद्र सोनपुर इस समय जंग का मैदान बना हुआ है और यह जंग का मैदान किसी और के लिए नहीं धान खरीदी केंद्र के समिति प्रबंधक व धान खरीदी केंद्र प्रभारी के लिए बना हुआ है, हमाली की राशि इस जंग की वजह है इस राशि को हड़पना इस जंग का उद्देश्य है, यही वजह है कि जहां किसान समिति प्रबंधक के मोहरा बने हुए हैं तो वहीं हमाली मजदूर धान खरीदी केंद्र प्रभारी के मोहरा बने हुए हैं और इस समय सबसे जो आश्चर्य की बात यह है कि इस क्षेत्र में दो घूट है एक गुट समिति प्रबंधक को सपोर्ट कर रहा है तो दूसरा गुट धान खरीदी केंद्र प्रभारी को और इसी वजह से यह जंग राजनीतिक रूप भी लेती जा रही है जो मामला चार दीवाली में समाप्त होना था आज वह मामला शिकवा शिकायत तक अखाड़ा हुआ है।
क्या धान खरीदी केंद्र प्रभारी हमलों के खाते में पैसा डलवा कर उस पैसे को खुद रखना चाहते हैं?
सोनपुर धान खरीदी केंद्र के प्रभारी की मनसा हमाली राशि के ढकराने की है सूत्रों का कहना यह है कि धान खरीदी केंद्र प्रभारी को हमलों की चिंता नहीं है वह अपने 25 हमलों को आगे करके उनके खाता में पैसा डलवा कर 20-20 हजार रुपए उनसे ले लेंगे और 4500 रुपए उनके हिस्से में मिलेगा,क्योंकि वह राशि है जो उन्हें किसानों के द्वारा मिल चुका है अब ऐसे में उनका उस राशि पर हिस्सा नहीं है फिर भी धान खरीदी केंद्र प्रभारी के प्रयास से वह पैसा मिलेगा तो उसमें वह 4500 रख सकते हैं बाकी 20 हजार वह निकालकर धान खरीदी केंद्र प्रभारियों को देंगे ऐसा सूत्रों का कहना है अब यह जानकारी कितनी सही है यह तो आने वाला वक्त बताएगा पर लड़ाई कुछ इसी दृष्टिकोण से लड़ी जा रही है जो देखने व समझ में भी आ रही है।
कौन सा गुट किसके साथ?
धान खरीदी केंद्र में भी दो गुट है यह वह गुट है जो धान खरीदी केंद्र में भ्रष्टाचार को बढ़ाते हैं धान खरीदी में अनियमितता पैदा करते हैं और वहां से लाभ अर्जित करना चाहते हैं इस समय इस सोनपुर धान खरीदी केंद्र में दो गुट अलग-अलग बैठे हुए हैं एक गुट को समिति प्रबंधक पसंद आ रहे हैं तो एक गुट को धान खरीदी केंद्र प्रभारी पसंद आ रहे हैं जो लोग इस झगड़े के पीछे हैं उनकी वजह यह है कि एक गुट चाहता है कि समिति प्रबंधक हट जाए तो एक गुट चाह रहा है कि धान खरीदी केंद्र प्रभारी हट जाए अब जैसी स्थिति निर्मित हो रही है ऐसे में तो लग रहा है कि दोनों का हाट जाना ही धान खरीदी केंद्र व किसानों के लिए अच्छा होगा।
हमाली की राशि नहीं मिलने से बढ़ी परेशानी
सोनपुर सहकारी समिति बंजा में इन दिनों हमाली राशि को लेकर गहमागहमी का माहौल बना हुआ है। एक ओर जहां किसान हमाली की राशि को स्वयं दिए जाने की बात कर रहे हैं,तो वहीं दूसरी ओर समिति के धान खरीदी प्रभारी विवेक चौरसिया के नेतृत्व में मजदूर भी हमाली राशि की मांग कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि मजदूर धान बेचते समय ही किसानों से हमाली की राशि ले लेते हैं,फिर समिति से हमाली राशि की मांग करना अनुचित है। किसानों ने यह भी कहा कि उनकी फसल की लागत पहले से ही अधिक है यही कारण है कि सरकार ने हमाली राशि बढ़ाई है ताकि किसानों को राहत मिल सके। लेकिन किसानों को हमाली की राशि नहीं मिलने से उनकी परेशानी और बढ़ रही है।
प्रशासन इस विवाद का क्या समाधान कैसे निकालता है?
मामले ने तूल पकड़ते हुए स्थानीय प्रशासन का ध्यान भी खींचा है। मामले की जांच हेतु गुरुवार को उप पंजीयक बजरंग पैकरा,नोडल अधिकारी संतोष जयसवाल पहुंचे थे जहां जांच दल ने मजदूरों को राशि देने का निर्देश दिया है। समिति ने 9 अस्थाई कर्मचारियों के नाम चेक भी काट दिए हैं। वहीं जांच दल के समक्ष किसानों ने हमाली की राशि किसानों के खाते में देने की मांग की है। किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे खरीदी केंद्र का बहिष्कार करेंगे। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस विवाद का क्या समाधान निकालता है।
हमाली की राशि में हुई है वृद्धि
बीते धान खरीदी वर्ष में शासन द्वारा हमाली की राशि में वृद्धि की गई है। अब 9 रुपए के स्थान में लगभग 17 रुपए प्रति मि्ंटल की दर से हमाली की राशि आई है। जो विवाद का कारण बनता नजर आ रहा है।
किसानों की मांग,हमाली की राशि किसानों को दें
बीते दिसंबर माह में सैकड़ों किसानों ने सहकारी समिति को ज्ञापन सौंपा था,जिसमें हमाली (मजदूरी) की राशि को सीधे किसानों के खातों में जमा कराने की माँग की गई थी। किसान लंबे समय से इस व्यवस्था में हमाली की राशि में पारदर्शिता और त्वरित भुगतान की मांग कर रहे हैं।आखिर किसका है हमाली राशि पर अधिकार? सोनपुर सहकारी समिति में धान खरीदी के दौरान हमाली (मजदूरी) राशि को लेकर विवाद गर्माया हुआ है। व्यवस्था खर्च काटने के बाद जो शेष राशि बचती है,उस पर अब किसानों और हमालों दोनों का दावा है। किसानों का कहना है कि यह राशि उनकी उपज से जुड़ी है और हमाली की राशि हमने दिया है जबकि हमालों का तर्क है कि मेहनत उन्होंने की है, इसलिए अधिकार भी उनका बनता है। जिससे मामला और उलझ गया है। सवाल अब यह है कि मेहनताना किसे मिले उपज बेचने वाले किसान को या बोरियों का बोझ उठाने वाले हमाल को?