
नदी हमारे लिए प्रकृति की एक अनुपम भेंट है। नदी शब्द सुन नदी की जल की तराने,नदी के आसपास हरियाली नुमा वातावरण, नदी के किनारे पक्षियों की चहक,जीव जंतुओं का आगमन हमारे मन को हमेशा प्रफुल्लित करता देता है। नदी हमें केवल जल ही प्रदान नही करती बल्कि जल के साथ साथ जहां से होकर नदी गुजरती है उस स्थान को हरियाली और अन्न धन से सम्पन्न करती है,साथ में उन स्थानों की मृदा को कृषि योग्य उपजाऊ बनाती है,और उद्योग के लिए जल प्रदान करती है। नदी पर बांध बनाया जाता है और नदी प्राकृतिक रूप से कहीं कहीं जलप्रपात का सृजन करती है। नदी पर बना बांध जल विद्युत उत्पादन का एक साधन बनता है। यह बांध और जलप्रपात एक पर्यटक स्थल को जन्म देता है,जिससे मनुष्य की बहुत सारे व्यवसाय का सृजन होता है। यदि नदी को आर्थिक सम्पन्नता का द्योतक माना जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। नदी हमारी आर्थिक विरासत के साथ सांस्कृतिक विरासत भी है। हमारे भारत में कई ऐसे नदियॉं हैं जिसे हम देव तुल्य मानते हैं,जैसे गंगा, यमुना,सरस्वती, गोदावरी,कावेरी, कृष्णा,इंद्रावती,महानदी और क्षीप्रा नदी आदि। नदी समाज को समानता और समरसता का संदेश देता है।गंगा का जल,धरा के हर इंसान को चाहे कोई भी कौम से आता हो ,सबको पावन करता है। नदी का जल कभी भी किसी मानव या जीव जंतु के साथ भेद नहीं करता। मानवीय व्यवहार के कारण नदी का स्वरूप बदलते जा रहा है।आज रेत उत्खनन के कारण नदी में चमकता हुआ रेत विलुप्त की कागार पर है,जो नदी की सौंदर्यता को कम कर रहा है। औद्योगिकी करण और नगरीकरण के विराट रूप के कारण गंगा सम समझे जाने वाले बहुत से नदी का जल प्रदुषित हो रहा है। नदी के जल के ऊपर आश्रित रहने वाले प्राणियों के लिए जल संकट मंडरा रहा है। आज गांव हो या शहर धरा पर कांक्रीट का जाल बिछा हुआ है, जिसके कारण लगभग बारिश का साठ से सत्तर फीसदी पानी बह जाता है। फलस्वरूप जिस औसत मात्रा में जल का धरा पर अवशोषण होना चाहिए वह नहीं हो पाता, फलस्वरूप भूमिगत जल का स्तर गिरना स्वाभाविक है। आज हम कृषि के क्षेत्र में दलहन तिलहन के स्थान पर हम धान का उत्पादन ले रहें हैं,जो भूमिगत जलस्तर को गिराने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। और उक्त सारे गतिविधियों का संबंध नदी के जल से जुड़ा हुआ है,जो नदी को जल विहीन कर रहा है।
आज ऐसे ऐसे मोटर पंप है जो जमीन के अंदर स्थित जल को खींच कर बाहर निकाल देता है, फलस्वरूप एक नदी में जल का स्रोत रहता है उसको भी खींच कर बाहर निकाल देता है। अतः आज बहुत से नदियॉं गर्मी के दिनों में सुख जाता है। यहां तक की कल-कल बहने वाली नदियों मे एक बूंद पानी नहीं मिलता। सुना और पढ़ा है की रेगिस्तान में मरीचिका होता है,पर आज हालात ऐसी बन गई है कि बड़े बड़े नदियॉं मरीचिका प्रतीत हो रह है।
लक्ष्मीनारायण सेन
खुटेरी गरियाबंद (छ.ग.)