बैकुण्ठपुर,@सत्ता बदली,सरकार बदली,नहीं बदली तो किसानों की हालत

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-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर,09 दिसम्बर 2024 (घटती-घटना)। सत्ता बदली, सरकार बदली, नए चेहरे भी निर्वाचित होकर आए। चुनाव पूर्व किसानों से वादों की झड़ी लगा दी गई, सब कुछ बदला, बस नहीं बदली तो किसानों की समस्याएं। आज भी सरकार चाहे जितने दावे करे, परंतु रोजाना किसानों को समितियां में धान विक्रय करने के लिए सैकड़ो परेशानियों का सामना गाहै बगाहे करना ही पड़ता है। कभी हमाली राशि के नाम पर, तो कभी धान को खराब बात कर अवैध वसूली, प्रत्येक समिति में लगातार चल रही है। सरकार किसान के हालात और व्यवस्था सुधारने के नाम पर चाहे कितने ही वाहवाही ले, चाहे जैसे भी निगरानी समिति का गठन कर दें, परंतु किसानों समस्याओं का कोई स्थाई हल नजर नहीं आ रहा है। हर साल समितियां को लाखों रूपयों की राशि हमाली के नाम पर दी जाती है। शासन ने यह व्यवस्था दी है कि किसान अपना उपार्जित धान लेकर तय तिथि पर समिति में उपस्थित होगा और बाकी सारा कार्य समिति प्रबंधक, धान खरीदी प्रभारी और समिति में नियुक्त कर्मचारियों के द्वारा नियोजित किया जाएगा। यहां तक की धान की पलटी, तौल, सिलाई एवं चट्टा में चढ़ाने की पूरी प्रक्रिया समिति में नियुक्त एवं पंजीकृत हमालों द्वारा किया जाएगा एवं हमालों की राशि का भुगतान समितियां को जारी की गई शासन द्वारा राशि से उनके बैंक खातों में किया जाएगा। परंतु दैनिक घटती घटना ने कोरिया जिले में स्थित कई समितियां में जब जांच पड़ताल की और धान बेचने को उपस्थित किसानों से बात की तो शासन की मनसा से परे अलग ही चेहरा उजागर हुआ। किसी भी समिति में पंजीकृत हमाल नहीं है, ना तो उनका कोई रिकॉर्ड मेंटेन है। न हीं उनको समितियां द्वारा किसी प्रकार का भुगतान किया जा रहा है। जो किसान धान लेकर समिति में बेचने जा रहा है, आने-जाने से लेकर तौल करना बोरियां की सिलाई करना, बोरियों को चट्टा पर चढ़ाना या तो उसको अपने स्वयं के व्यवस्था पर करनी पड़ती है, या फिर वहां उपस्थित बगैर पंजीकृत हमालों को नगद भुगतान करना पड़ रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर शासन में पहुंच पकड़ रखने वाले रसूख रखने वालों तक किसानों ने यह बात कई बार पहुंचाई, परंतु मिली भगत ऐसी है कि राशि का बंदर बांट करने में कोई पीछे नहीं है ।
विडंबना देखें कि जहां बिचौलिए जब अपना धान लेकर समितियां में पहुंचते हैं, तो उनके धान की पलटी भी नहीं कराई जाती। बल्कि गाडि़यों से उठाकर सीधे निर्धारित स्थान पर पहुंचा दिया जाता है। आलम यह है कि जहां एक सामान्य किसान अपनी टोकन वाली निर्धारित तिथि को सुबह से शाम तक अपने धान को बेचने के लिए परेशान रहता है। वहीं बिचौलिए, व्यापारी और समिति कर्मचारियों से संपर्क में रहने वाले लोगों को सैकड़ो मि्ंटल धान खपाने में आधे घंटे का भी समय नहीं लगता। इन सब घटनाओं की निगरानी के लिए शासन द्वारा प्रत्येक समिति और धान खरीदी केंद्रों में सीसीटीवी कैमरा लगाने को निर्देशित किया गया है, और अधिकांश धान खरीदी केंद्रों में कैमरे लगे भी हुए हैं। परंतु उनकी दिशा ऐसे निर्धारित की गई है कि उनके फुटेज से भी कुछ पकड़ में नहीं आएगा। प्रत्येक खरीदी केंद्रों में नोडल अधिकारी भी नियुक्त हैं। परंतु या तो उन्हें भी मैनेज कर लिया गया है, या वे स्वयं किसानों का शोषण करने में लिप्त हो चुके हैं। यदि निगरानी समिति या प्रशासन का जिम्मेदार, ईमानदार अधिकारी सीसीटीवी कैमरा की जांच करें तो प्रत्येक धान खरीदी केंद्र में यह मामले स्वयमेव उजागर हो जाएंगे।
हमाली राशि का सालाना लाखों में होता है शासन की ओर से भुगतान, परंतु हिसाब कहीं नहीं
किसानों की सुविधाओं के लिए, उन्हें परेशानियों से बचाने के लिए और उन्हें आर्थिक परेशानी ना उठानी पड़े इसके लिए सभी समितियां और धान खरीदी केंद्रों में सरकार ने पंजीकृत हम्माल रखने को निर्देशित किया है। जिनके द्वारा किसानों के लाए हुए उपार्जित फसल को वजन कर, सिलाई कर समिति में निर्धारित स्थान तक रखने का पूरा कार्य किया जाना है। और जिसका भुगतान शासन द्वारा निर्धारित दर के अनुसार समिति प्रबंधकों को पंजीकृत हमालों के खाते में किया जाना है। बड़ी विकट विडंबना है कि अधिकांश, लगभग सभी समितियां में हमालों की संख्या तो सैकड़ो में है, परंतु उनमें से कौन पंजीकृत है, और किसका भुगतान समिति प्रबंधकों द्वारा किया जा रहा है। इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। और जानकारी उपलब्ध भी हो तो कैसे, क्योंकि इन सारी प्रक्रियाओं के लिए होने वाले आर्थिक भुगतान का बोझ तो स्वयं किसानों को उठाना पड़ रहा है। विभागीय अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में होने के बावजूद राशि भुगतान के मामले में राहत दिलाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जाती। यहां तक की विपक्ष भी आंख मूंदे पड़ा हुआ है।
ऑनलाइन टोकन प्रक्रिया में भी पेंच, यह कैसे संभव की प्रतिदिन जारी सीमा 100 प्रतिशत हो जाती है समाप्त
शासन द्वारा प्रत्येक धान खरीदी केंद्रों में प्रतिदिन की खरीदी के लिए सीमा निर्धारित की है, और इस बार किसानों की सुविधा के लिए ऑनलाइन मोबाइल ऐप के द्वारा इच्छा अनुसार तिथि को टोकन काटने की भी सुविधा दी गई है। इससे हुआ यह है कि अधिकांश जानकार किसान अपने सुविधा अनुसार तिथि को अपना टोकन घर बैठे काट ले रहे हैं और उन्हें समितियां के चक्कर लगाना नहीं पड़ रहा है। परंतु ऑनलाइन टोकन प्रक्रिया को भी जांच करने पर एक बड़ी बात सामने आ रही है की प्रतिदिन निर्धारित सीमा के बराबर ही धान समितियां में कैसे खरीदी की जा रही है। यह तो संभव नहीं की निर्धारित सीमा से ऊपर की खरीदी हो जाए, परंतु प्रतिदिन निर्धारित सीमा के बराबर ही खरीदी हो रही है, यह सोचनीय विषय है। क्योंकि जब किसान ऑनलाइन टोकन काट रहा है, तो निश्चित सीमा से कम की स्थिति का भी जब टोकन करता है, परंतु अंतिम समय तक जांच करने पर वह सीमा समाप्त हो जाती है, अर्थात उस दिन की खरीदी 100 प्रतिशत पूर्ण मानी जाती है। प्रतिदिन 100 प्रतिशत की खरीदी कैसे संभव है, जबकि प्रत्येक किसानों का रकबा, उनके धान बेचने की सीमा पृथक पृथक है। अब प्रशासन कितना सजग होकर इस वर्ष धान खरीदी कार्य को अंतिम रूप तक पहुंच पाती है, और भ्रष्टाचार में कितना अंकुश लगा पाती है, यह तो देखने वाली बात होगी। परंतु यह तय है कि किसान केवल चुनावी विषय है, जिनका ध्यान केवल चुनाव तक ही रखा जाता है। उसके बाद उनके सुध लेने वाला कोई नहीं है।
अभी तक किसी भी समिति से नहीं हुआ है धान का उठाव, इसीलिए समिति कर्मचारियों को नहीं मिला है भ्रष्टाचार का मौका
छाीसगढ़ के वर्तमान सरकार ने प्रत्येक किसान से प्रति एकड़ 21 कुंतल के मान से धान खरीदी का लक्ष्य रखा है। परंतु यह बात यह है कि सामान्य प्रक्रियाओं से खेती करने वाले किसानों का उपार्जन सामान्यतः प्रति एकड़ 15 से 20 मि्ंटल के बीच ही हो पता है। तात्पर्य है कि कोई भी किसान अपने निर्धारित रकबे में स्वयं का उपार्जित पूरा धान पूर्ति करने में सफल नहीं हो पाता। इसका फायदा समिति में पदस्थ कर्मचारी, राइस मिलरो के मिली भगत से करते हैं, और जिस किसान का रकबा बकाया रह जाता है उसे किसानों से या तो नगद पैसे लेकर या फिर उसे सौदेबाजी कर फर्जी धान खरीदी की जाती है। और यह तब संभव होता है जब धान का उठाव प्रारंभ हो जाता है। इसको इस तरह से समझे कि यदि किसी समिति को 400 मि्ंटल धान उठाव कर किसी राइस मिल में भेजना हो तो 400 मि्ंटल धान भेजने के बदले में राइस मिलर से साह्लद्ध गांठ कर, पैसों का लेनदेन कर उठाव प्रदर्शित कर दिया जाता है, और फर्जी खरीदी कर शासन को हर वर्ष समिति कर्मचारियों द्वारा करोडो का चूना लगाया जाता है। क्योंकि अभी तक प्रशासन द्वारा किसी भी समिति से धान उठाव के लिए निर्देशित नहीं किया गया है, तो अभी तक समिति में पदस्थ कर्मचारी और बिचौलियों को इस प्रकार का भ्रष्टाचार करने का मौका नहीं मिला है। यदि प्रशासन चाह ले तो समिति से उठाव वाले दिन की सीसीटीवी फुटेज के द्वारा प्रत्येक समिति में इस प्रकार से होने वाले भ्रष्टाचार का बड़ी आसानी से खुलासा कर सकता है। उससे भी बड़ी बात यह है कि समिति के कर्मचारी इस प्रकार के भ्रष्टाचार को अंजाम देने में पीछे नहीं रहते और पीछे नहीं हटते । क्योंकि अधिकांश समितियां और धान खरीदी केंद्रों में जिनके भरोसे समिति संचालित की जा रही हैं, अधिकांश कर्मचारी शासन द्वारा नियुक्त नहीं है, नहीं उनमें से अधिकांश लोगों के पास किसी प्रकार का कोई नियुक्ति आदेश है। वे केवल पैसों के बल पर और पहुंच पकड़ के दम पर समितियां में कार्यरत है। और किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार कर लेने पर भी उन्हें नौकरी जाने या किसी प्रकार के दंड भोगने का कोई भय नहीं है।


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