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मैनपाट@खदान पर फैसला या सौदेबाजी? सोशल मीडिया में उठे दलाली के आरोपों ने खोली सिस्टम की पोल

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-न्यूज डेस्क-
मैनपाट 01 दिसम्बर 2025 (घटती-घटना)। मैनपाट में बॉक्साइट खदान विस्तार के विरोध का दायरा रविवार की जनसुनवाई से आगे बढ़कर अब सोशल मीडिया तक पहुंच गया है,जनसुनवाई में पंडाल उखाड़ने और हंगामे के बाद ग्रामीणों और नेटिज़न्स ने नेताओं पर खदान कंपनी से पैसे लेने, ग्रामीणों को मैनेज करने और पत्रकारों तक को ‘सौदा’ में शामिल करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। बता दे की मैनपाट में प्रस्तावित बॉक्साइट खदान विस्तार ने पूरे सरगुजा संभाग की राजनीति और प्रशासनिक तंत्र को हिला दिया है,रविवार को नर्मदापुर मिनी स्टेडियम में हुई प्रशासनिक जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों द्वारा पंडाल उखाड़कर विरोध प्रदर्शन किए जाने के बाद अब मामला सोशल मीडिया पर विस्फोट बनकर उभरा है। नेताओं से लेकर अधिकारियों और पत्रकारों तक पर पैसे लेने, सौदेबाजी करने और जनता को मैनेज करने के आरोप लगातार सामने आ रहे हैं, जिससे पूरा मामला अब तीव्र विवाद में बदल गया है।ग्रामीणों का कहना है कि मौजूदा खदानों ने खेतों की उपजाऊ क्षमता खत्म कर दी, जलस्रोत सूख रहे हैं, हाथियों का रहवास क्षेत्र नष्ट हो रहा है, अब खदान विस्तार के लिए ‘जनता की सहमति खरीदने का खेल’ चल रहा है। जिला पंचायत सदस्य रतनी नाग ने भी जनसुनवाई में खुलकर विरोध किया और दावा किया कि कुछ को शराब पिलाकर राय बदलने की कोशिश हुई।
जनता बनाम सिस्टम…
मैनपाट की ताज़ा हलचल केवल बॉक्साइट खदान विस्तार की सहमति या असहमति का मामला नहीं है; यह उस गहरे सवाल का पुनरुत्थान है जो दशकों से ग्रामीण भारत में गूंजता आया है क्या जनता की आवाज़ वास्तव में सुनी जाती है या सिस्टम पहले ही तय कर चुका होता है कि क्या होना है? जनसुनवाई का मंच जनता के लिए बनाया गया था,लेकिन रविवार को जो दृश्य सामने आया,उसने यह समझा दिया कि जनता अब केवल सुनने नहीं आई थी जनसुनवाई को ‘जनता की सुनवाई’ में बदलने आई थी, पंडाल उखाड़ने का प्रतीकात्मक क्षण सिर्फ गुस्से की अभिव्यक्ति नहीं था,वह संकेत था कि लोग अब औपचारिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की दिखावेबाज़ी को स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं, सबसे चिंताजनक प्रश्न यह है कि ग्रामीणों के वास्तविक चिंताओं पर्यावरण को हो रहा नुकसान,खेती का मरता भविष्य,सूखते जलस्रोत,हाथियों का बिगड़ता रहवास,इन सभी मुद्दों पर चर्चा कम,और ‘किसने कितना लिया, किसने किसको मैनेज किया’ जैसे आरोप ज़्यादा गूंज रहे हैं,सोशल मीडिया ने इस पूरे घटनाक्रम को और ज्वलंत बना दिया है, नेताओं पर 80 लाख लेने का आरोप हो,ग्रामीणों को 3-3 हजार बाँटने की बात हो,पत्रकारों पर दलाली का तंज हो, या अधिकारियों की मिलीभगत की चर्चा हर टिप्पणी उस विश्वास के टूटने का प्रतीक है जिसे लोकशासन की नींव माना जाता है। सवाल यह नहीं है कि आरोप सही हैं या गलत,सवाल यह है कि यह आरोप उठ क्यों रहे हैं? और जवाब सरल है क्योंकि जनता को भरोसा नहीं है कि सिस्टम के निर्णय जनहित में होते हैं, एक दौर था जब खनन परियोजनाएँ विकास की भाषा में बेची जाती थीं। आज जनता पूछ रही है विकास किसका और विनाश किसका? मैनपाट की लड़ाई इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ जनता केवल खदान का विरोध नहीं कर रही,वह यह भी घोषित कर रही है कि उनकी सहमति खरीदी नहीं जा सकती, उनकी जमीन और जंगल सिर्फ आंकड़े नहीं हैं,और पर्यावरण कोई ‘कागज़ों की मंजूरी’ भर नहीं है,यह संघर्ष सत्ता बनाम विपक्ष की राजनीति नहीं है यह जनता बनाम सिस्टम का वह संघर्ष है जहाँ जनता ने पहली बार इतने खुले रूप में कहा है सुनवाई अगर नाटक है, तो हम दर्शक नहीं रहेंगे,सिस्टम को यह समझना होगा कि विश्वास खो देने के बाद मनाया नहीं जाता दोबारा कमाया जाता है और मैनपाट आज यही संदेश दे रहा है।
जनसुनवाई में हंगामा…प्रशासन की मौजूदगी में ग्रामीणों ने उखाड़े पंडाल…
कंडराजा और उरगा क्षेत्र में खदान विस्तार प्रस्ताव के विरोध में बड़ी संख्या में ग्रामीण जमा हुए, जिला पंचायत सदस्य रतनी नाग के नेतृत्व में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि मौजूदा खदानों ने खेतों को बंजर कर दिया,जलस्रोत खत्म होने की कगार पर हैं, हाथियों का रहवास क्षेत्र बर्बाद हुआ है,और अब खदान विस्तार से पर्यावरणीय खतरा और बढ़ेगा, ग्रामीणों के गुस्से के आगे पुलिस और प्रशासनिक अमला बेबस दिखाई दिया जनसुनवाई तनावपूर्ण माहौल में पूरी हुई और किसी भी बिंदु पर सामंजस्य नहीं बन सका।
हंगामा,विरोध और अब सोशल
मीडिया पर आग…प्रशासन दबाव में…

नर्मदापुर मिनी स्टेडियम में हुई जनसुनवाई में ग्रामीणों ने पंडाल उखाड़ दिए प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस मौके पर मौजूद थे,लेकिन भीड़ को रोक नहीं सके, आरोपों की तीव्रता इतनी बढ़ चुकी है कि अब पूरा मामला सड़क पर विरोध से निकलकर सोशल मीडिया ट्रायल तक पहुँच गया है, और इससे प्रशासन और खदान कंपनी दोनों पर सवाल और दबाव बढ़ गया है।
नेटिज़न्स के आरोप…नेता कंपनी से पैसा खा रहे हैं,अधिकारियों की मिलीभगत
कुछ और गर्मागर्म प्रतिक्रियाएँ कुल 10 लाख का हिसाब देना होगा, 1.45 हजार का पता है,बाकी 8.55 हजार कौन खा गया? जिले के अधिकारी सब + की एक ही चटे बटे हैं,मीडिया वाले भी दलाली करके पैसा ले रहे हैं,ऐसा पत्रकार दीपक कश्यप ने कहा ‘नेता दलाली नहीं करेगा तो क्या करेगा? जनता उन्हें जूते मारे तभी सुधरेंगे, कुछ टिप्पणियों में कहा गया कि किसने कितना पैसा लिया, इसका ‘सबूत जल्द जनता के सामने लाया जाएगा’।
ऑडियो-वीडियो के सबूत…
कई यूज़र्स ने नेताओं को ‘दलाल ‘, ‘चोर ‘, ‘मध्यस्थ’ तक कहा और दावा किया कि पत्रकारों तक पर ‘रकम लेने’ के आरोप लगे हैं, ग्रामीणों का आरोप—पहले से ही पर्यावरण तबाह, अब सौदेबाजी शुरू, कई यूज़र्स ने यह भी लिखा कि उनके पास ‘लेनदेन और ऑडियो-वीडियो के सबूत’ हैं, जो समय आने पर जनता के सामने रखे जाएंगे।
नेता-अधिकारी-पत्रकार तीनों
सवालों में,प्रशासन दबाव में…

अब आरोप इतने व्यापक हो चुके हैं कि विरोध केवल सड़कों पर नहीं रहा,बल्कि सोशल मीडिया की अदालत में भी चल रहा है, प्रशासन के लिए चुनौती है कि जनसुनवाई की विश्वसनीयता कैसे बहाल हो? लेनदेन के आरोपों का सत्यापन कैसे हो? ग्रामीणों के पर्यावरणीय मुद्दों का समाधान क्या है? खदान कंपनी ने अभी तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है, नतीजा मैनपाट में खदान विस्तार का मामला अब सिर्फ खनन नहीं,बल्कि ‘जनता बनाम सिस्टम’ की लड़ाई बन गया है ग्रामीणों के प्रतिरोध,जनसुनवाई की अव्यवस्था,सोशल मीडिया में वायरल आरोप,नेताओं की भूमिका और प्रशासन की चुप्पी, सब मिलकर यह दिखा रहे हैं कि मैनपाट अब एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बन चुका है।
सोशल मीडिया पर आरोप…80 लाख लिए गए, 3-3 हजार बाटे जा रहे हैं- फेसबुक पर दर्जनों पोस्ट और कमेंट वायरल हो रहे हैं,कुछ प्रमुख आरोप ऐसे
– सूत्रों की माने तो भाजपा के नेता ने 80 लाख लिए हैं…ग्रामीणों को देखने के लिए?— यूजरः सुशिल कुमार बखला
– खदान के नाम पर 3-3 हजार रुपये बांटे जा रहे हैं…गजब दलाली है—पोस्टः सुमित सिंह
– बड़ी कंपनी को फर्क नहीं पड़ता, अधिकारियों को कमीशन चाहिए… सारा सिस्टम सेट है भैया— पंकज शुक्ला
– नेता अधिकारी सब दलाली में लगे हैं, जनता का हित कौन देखेगा?’ — (यूजर)
– 10 लाख में से 1.45 हजार का हिसाब मिला, बाकी 8.55 हजार कौन खा गया?— रानू राज पांडे
– ‘नेता दलाली नहीं करेगा तो क्या करेगा? सब चोर हैं ‘— दिवस दुबे
– जनता का दर्द किसी नेता-अधिकारी को नहीं— वशिष्ठ यादव
सोशल मीडिया का गुस्सा
80 लाख की दलाली का आरोप 3-3 हजार रुपये बाँटने की चर्चा, नेताओं-अधिकारियों-पत्रकारों तक पर सवाल सिस्टम सेट है, दलाली चरम पर है जैसे कमेंट वायरल


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