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अंबिकापुर@शंकर घाट की बीमार गाय का मामला किसका काम ‘सेवा’ और किसका ‘कमाई’?

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शंकर घाट के पास बीमार पड़ी गाय को लेकर शहर में विवाद,सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप तेज

  • नगर निगम की भूमिका और पशु प्रेमियों की जिम्मेदारी पर उठे सवाल
  • नगर निगम चुप,और ‘गौ-सेवा’ के नाम पर पैसा कमाने वाले सक्रिय…


-अविनाश राहगीर-
अंबिकापुर,12 नवम्बर 2025
(घटती-घटना)।

शहर के शंकर घाट के पास एक बीमार गाय मिलने के बाद सोशल मीडिया पर पशु संरक्षण और नगर निकाय की जिम्मेदारी को लेकर बहस तेज हो गई है। घटना की जानकारी सोशल मीडिया पर सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिंह नामक नागरिक द्वारा साझा की गई। उन्होंने लिखा कि बीमार गाय की सूचना दिए जाने पर नगर निगम और पशु संरक्षण से जुड़े कुछ व्यक्तियों ने उचित सहायता करने के बजाय बहाने बनाए और पैसे की मांग की बात कही,जिससे वे आक्रोशित हुए,अरुण सिंह ने अपनी पोस्ट में कहा कि ‘जानवरों की सेवा के नाम पर कुछ लोग लोगों से पैसे लेकर अपना लाभ साधते हैं,जबकि वास्तविक सेवा नहीं करते।’ पोस्ट वायरल होने के बाद इस मुद्दे पर शहर के अन्य नागरिक भी अपनी प्रतिक्रिया देने लगे। शहर में गाय की सेवा, पशु प्रेम,धार्मिक आस्था और प्रशासनिक जिम्मेदारी तीनों ही इस घटना के केंद्र में हैं, मामला अब केवल सोशल मीडिया बहस नहीं रहा,नागरिकों ने नगर निगम और पशु चिकित्सा विभाग से स्पष्ट,जवाबदेह और पारदर्शी कार्यप्रणाली लागू करने की मांग की है।


सोशल मीडिया पर दूसरी ओर से भी आया जवाब
अरुण सिंह की पोस्ट पर ओनिमेश सिन्हा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह सिर्फ एक गाय की बीमारी का मामला नहीं,बल्कि शहर में छोड़ी जाने वाली बेसहारा गायों और दूध व्यवसाय पर आधारित बड़े स्तर की समस्या है। उन्होंने कहा कि कई लोग दूध निकालने के बाद गायों को सड़कों पर छोड़ देते हैं, जिसके चलते हर महीने कई गायों की मौत होती है। ओनिमेश सिन्हा ने यह भी कहा कि कुछ लोग धार्मिक भावनाओं के नाम पर गायों का उपयोग राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए करते हैं, लेकिन उन्हें उचित चारा, देखभाल और आश्रय नहीं देते। शहर के शंकर घाट में बीमार पड़ी गाय की घटना ने यह साफ कर दिया है कि गौ-सेवा यहाँ भावना नहीं कारोबार बन चुकी है,लेकिन न नगर निगम आया,न पशु चिकित्सा विभाग सक्रिय हुआ,ऊपर से, जिन लोगों को शहर में गौ-सेवा का हीरो समझा जाता है,उन्होंने सहायता नहीं पैसे की शर्त रख दी,गाय मर रही थी, और यहाँ सौदेबाजी हो रही थी, यही है असल ‘गौ-भक्ति ‘?
रेस्क्यू और इलाज कौन करेगा? सवालों के घेरे में प्रशासन
इस मुद्दे पर सत्यम द्विवेदी नामक युवा ने टिप्पणी करते हुए बताया कि शहर में मात्र दो संस्थाएँ ही ऐसी हैं जो बेसहारा पशुओं के रेस्क्यू का कार्य करती हैं,उन्होंने कहा कि ‘बीमार और रेबीज जैसी जानलेवा अवस्था वाले पशुओं का इलाज करना किसी संगठन के लिए आसान नहीं,इस मामले में भी संबंधित पशु पुनर्वास केंद्र से संपर्क ही नहीं किया गया।’ उनके अनुसार,यदि सही समय पर पशु पुनर्वास केंद्र को सूचना मिलती तो रेस्क्यू की प्रक्रिया बेहतर हो सकती थी।
नागरिकों ने की नगर निगम से स्पष्ट नीति बनाने की मांग
शहर में बेसहारा और बीमार पशुओं के लिए आपातकालीन रेस्क्यू सिस्टम क्यों नहीं है? नगर निगम के पास समर्पित पशु वाहन और पशु चिकित्सा टीम क्यों उपलब्ध नहीं है? दूध व्यवसाय के बाद पशु छोड़ने वालों पर कार्यवाही क्यों नहीं होती? नागरिकों का कहना है कि यह सिर्फ एक गाय का मामला नहीं, बल्कि नगर की पशु प्रबंधन व्यवस्था की गंभीर विफलता है।
नगर निगम कहाँ है? पशु चिकित्सक कहाँ है?
जब शहर में हर दिन गौमाता सड़क पर घायल मिलती है कुत्तों से बचते-बचते दम तोड़ देती है टायरों के नीचे कुचल जाती है तब नगर निगम सिर्फ दिखावे वाली गाडि़यों पर पेट्रोल फूंक रहा है। ना रेस्क्यू वैन, ना चौकसी, ना तत्काल सहायता, तो नगर निगम का पशु कर और अनुदान कहाँ जा रहा है? किसके घर भर रहे हैं ये पैसे?
अब कार्रवाई नहीं,नाम चाहिए शहर के नागरिकों की मांग
बीमार गाय के मामले में कौन व्यक्ति पैसे मांग रहा था, उसका नाम सार्वजनिक हो,नगर निगम तत्काल स्थाई पशु रेस्क्यू टीम और 24म7 हेल्पलाइन शुरू करें,दूध व्यवसाय के बाद गाय छोड़ने वालों पर एफआईआर और जुर्माना अनिवार्य हो, गौशाला और पुनर्वास केंद्रों की वित्तीय और कार्यप्रणाली की जांच हो।
शहर में ‘गौ-सेवा’ नहीं,‘गौ-व्यापार’ चल रहा है…
ओनिमेश सिन्हा ने स्पष्ट लिखाः ‘कुछ लोग दूध बेचते हैं और जब गाय बूढ़ी हो जाती है तो उसे आवारा छोड़ देते हैं, हर महीने कई गायें मरती हैं, लेकिन इनके लिए कोई कार्रवाई नहीं होती, और यह सब उन लोगों के नाम पर जो गाय और धर्म की राजनीति में आगे-आगे रहते हैं।


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